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" क्या वह सच में चली गई अपने कान्हा के पास... ? !!" (कहानी)

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  " क्या वह सच में चली गई अपने कान्हा के पास... ? !!"© प्रेम के विषय में अब क्या है कहना ! , आप सब ने भी कभी ना कभी तो इसके खट्टे मीठे अनुभवों को जिया ही होगा | हम मनुष्यों के लिए प्रेम सिर्फ दो इंसानों के बीच का रिश्ता है , पर क्या हो अगर प्रेम का पावन रिश्ता एक भक्त और भगवान की बीच में हो? यह कहानी भी एक भक्त की ही है, जो भक्त के साथ दीवानी थी ! .... अपने कान्हा की | उठते-बैठते बस कृष्ण-कृष्ण ! ,अपनी छोटी से छोटी बात वह कान्हा को बताती, उनके लिए खाना बनाना, उनके विषय में बातें करना... इन सभी कामों में उसे  बहुत आनंद आता | कृष्ण को वो अपना सब कुछ मानती ;  पिता,भाई, मित्र,पति ,पुत्र | कभी मां का प्यार देती... तो कभी  बहन बन राखी बांधती | परंतु उसे सबसे प्यारा संबंध दोस्ती का लगता, क्योंकि इन सभी संबंधो का आधार प्रेम था , और प्रेम का आधार मित्रता , दिल से आत्मा की मित्रता | अरे, मै तो आप सभी को उस कृष्ण दिवानी का नाम  बताना ही भूल गई ! राध्या नाम था उसका .... मैं उससे पहली बार अपने स्कूल में मिली , मुझे वह बाकियों से थोड़ी अलग लगी ; इसके दो कारण थे, पहला उस...

लालीलाल जु ....

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  श्री लाली जु आज शर्माते हुए श्रृंगार कर रही थी...आखिर उनके परम् प्रिय प्रीतम ने यमुना किनारे कुछ खास बात के लिए मिलने का वादा जो किया था.... लाली जु श्रृंगार करते हुए अपने प्रीतम को याद कर रही थी... ऐसा लगता  वो श्रृंगार खुद का नहीं आप के प्रीतम का कर रही हो...अपने प्रीतम के ख्याल में इतनी खो गयी कि अपने प्रतिविम्भ मे उनको अपने प्रीतम की स्वर्ण रूपी छवि दिखने लगी.... ये देख वो और शर्माने लगी... प्यारी लाली जु जब भी शर्माती उनकी आँखे छोटी हो जाती...और गालों की लालिमा अपने आप बढ़ जाती...मानो उनकी सुंदरता में पूर्णिमा सा चाँद जन्म ले लिया हो!!! वो अपने ख्यालों में खोई ही थी तभी उनकी माता श्री ने किसी काम से रसोई घर मे बुलाया...अब प्रीतम से मिलने की चाह में गो इतनी खो रही थी कि उनके हाथ से बर्तन अपने आप गिर जाते....  माँ को लगा शायद उनकी लल्ली को कमजोरी हो गयी हो... उन्होंने उन्हें दूध गर्म करके उनके कमरे में ऊपर जाने को कहा.... परन्तु लाली जु कोई भोला सा बहाना बनाकर घर से जैसे तैसे निकली...उनके कोमल पैर तीर्व गति से अपने गंतव्य की ओर चले जा रहे थे...यमुना किनारे वो कृष्ण क...

7-8-25

  कृष्ण तुमसे अगर मैं कहु की तुम मुझे मनुष्य रूप में मिलो ? तो क्या ये सही रहेगा ? क्योंकि मैं तुमको वो बनने को कह रही हो जो तुम हो ही नही.... मनुष्य  कौन है ? जिसने अपनी सत्य की चेतना को इस शरीर रूपी कैद में बंद किया है...तो अगर मैं तुमको मनुष्य बनकर आने को कहूंगी तो ये तो वही हुआ तुम्हारी अनंत चेतना को कैद करना चाह रही हूँ... यानी मेरी वजह से तुमको तकलीफ होगी.... और अगर मुझे तुमसे मिलना होगा.... तो पहले मुझे अपनी सत्य चेतना को मुक्त करना होगा... तो ये कष्ट कही न कही अच्छा है मेरे लिए....क्योंकि इसके जरिए मैं अनन्त से जुड़ जाऊंगी अनन्त के पास जाकर... !! खैर आज 7 अगस्त है यानी तुम्हारा जन्मदिन...आज ही के दिन तुम मेरे घर पर आए थे... याद है... कैसे पूरी रात भर तुम मेरे साथ थे... लग रहा था कोई पुराना जान पेहचान वाला आया.... फिर मैंने पहली बार अकेले अपना जन्मदिन तुम्हारे साथ मनाया था... तुमको पता है अभी तक का खास जन्मदिन है वो मेरा... उस दिन तुम पहली बार साथ थे... और अभी 2024 में ... कैसे मैंने तुम्हारा अपना जन्मदिन मनाया.... बस हम दोनों... और हमारी बातें.... और इस साल 12 बजे मैं...

कृष्ण का फोंनम्बर!! ( एक उपाय कृष्ण के लिए...)

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  कुछ दिन पहले मेरे पास एक मेल (mail) आया था... जिसमे उन्होंने उनके ठाकुर जी से जुड़ा कुछ अनुभव सांझा किया था और उसके साथ ही उन्होंने एक विधि भी सांझा की थी.... जिसके द्वारा उन्होंने ठाकुर के साथ अपना जुड़ाव और ज्यादा प्रबल महसूस किया.... ये बिल्कुल कृष्ण का फोंनम्बर जैसा ही है....उनकी(सखी) ही इच्छा से मैं आप सभी के समक्ष भी वो विधि सांझा कर रही हूँ....श्री लाली लाल की कृपा से !! ★ रात को सोने से पहले अपने ठाकुर को जरूर याद करे.... क्योंकि नींद एवं स्वप्न की दुनियां को जादुई दुनियां भी कहते है.... और ये भी कहा जाता है कि इसके जरिए आप दूसरी दुनिया मे प्रेवेश भी कर सकते है.... तो सोने से पहले ये सबसे ज्यादा लाभदायक होगा| ★ सोने से पहले अपने ठाकुर से जुड़ा कोई भजन सुने.... उदहारण के लिए - गीत गोविंदम.... कहा जाता है ये ठाकुर का सबसे प्रिय गीत है.... बाकी आप अपने अनुसार कोई भी भजन, या नामजाप भी सुन सकते है| ★भजन सुनते समय अब आपको.... चिंतन करना आरंभ करना है... ऐसा चिंतन जिसमे आपकी सभी इंद्रिया सम्मिलित हो.... उदहारण के लिए.... गीत गिविंदम सुनते हुए आप मानसिक चिंतन कर रहे है आँखे बंद क...

कौन हो तुम जग्गनाथ?

  हे जगन्नाथ कौन है आप ?? आखिर कैसा जादू कर दिया मुझ पर.... बस मन कर रहा है आपको ही देखती रहूं.... पहले मुझे भीड़ पसंद नही थी.... मुझे नही पसंद था कि जब मैं आपसे मिलने आऊँ... तो भीड़ का हिस्सा बनू.... पर आज....आज तो मुझे भीड़ भी नही दिख रही.... अगर कुछ दिख रहा है तो.... बस आपकी दो बाहें... दो नयन.... दो कुंडल....और एक हृदय.... जो मुझे पुकार रहा है....मानो कह रहा है कि.... इस अधूरे हृदय को पूर्ण करदो....मेरे थोड़ा और समीप आ जाओ....!! जानती हूं प्रेम के बारे में किताबो में यही लिखा है कि प्रेम में दो नही एक होना होता है... पर हे प्राणनाथ.... मेरा ये हृदय तो पहले से आपका ही है.... तो कैसे करूंगी आपके अधूरे हृदय की पुकार को पूरा.... किताबो के हिसाब से मुझे आपमे मिलकर पूर्ण होना है...पर मेरे पूर्ण होते ही.... आपको कैसे निहारूँगी.... कैसे पहले ही भांति आधी रातों तक जगकर इंतज़ार करूँगी.... कैसे तुमको ताने दूँगी....और कैसे तुमसे अपने प्रेम का इजहार करूँगी ??? मुझे किताबो वाला प्रेम नहीं.... केवल तुम्हारा प्रेम चाहिए....जैसे मेरा हॄदय पहले से ही तुम्हारा है....मैं बस चाहती हु ये स्वास भी तुम्...

कृष्ण रोग

कृष्ण रोग    आज पता नहीं क्यों लग रहा है कि ये कोई सपना है.... यकीन नही जो रहा अभी इस वक्त मैं वृंदावन में हूँ.... मतलब सब पता नहीं कैसे अपने आप हो गया....सफर तो मेरा उत्साह में ही बीता आखिर क्या होगा कैसे दर्शन हूंगे.... वहाँ पहुँच कर भी आनंद महसूस हो रहा था.... मुझे तो पहले लगा था कि ठाकुर बारात लेकर करेंगे स्वागत पर जब कोई न दिखा तो लगा शायद व्यस्त हूंगे....अब यही है भगवान से प्रेम करने का परिणाम.... उनके हर फैसले को ऐसे ही कुछ बहाना बनाकर दिल बहलाना पड़ता है.... अरे माफ करना अभी जो मैं लिख रही हूं ये मैं अपनी नहीं किसी और कि कहानी लिख रही हूँ....और यहाँ अलग अपना रोना लेकर बैठ गयी... तो हुआ ये की हम जब वृंदावन पहुँचे तो उस वक्त शाम हो चली थी... तो हम दर्शन कही नही कर पाए औऱ एक धर्मशाला जैसी जगह रुक गए थे... अचानक सब सो रहे थे तब रात में आंधी शुरू हो गयी.... बाहर से डरावनी आवाज के कारण मुझे नींद नही आ रही थी.... तो फोन के टोर्च जलाकर मैं बाहर निकली .... वहाँ के बंद आंगन जैसी जगह में....और काँच जी खिड़की से बाहर की ओर देखने लगी....सब सो ही गए थे .... रात के 3 बज रहे थे.... मैं ...

सोच ले अच्छे से !!!

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  हल्के हल्के मैं तुम्हारे तरफ बढ़ रही हु....जानती हूँ ये तुम नहीं तुम्हारी मूर्ति है...वो मूर्ति जिसकी सब पूजा करते है.... जिससे सब प्रेम करते है.... पर मैंने तो प्रेम तुमसे किया है न कि तुम्हारी तस्वीर से....ये तो वही बात हुई.... प्रेमिका को विवाह से पहले बस तस्वीर दिख दी अपने प्रेमी की जो कि उसका दूल्हा है.... और कहने लगें.... अब इसी से विवाह करो... यही है तुम्हारा सब कुछ.... धत्त!!!!!.... हमको बेवकूफ न बनाओ....माना मैं थोड़ी बुधू सी हु.... पर अंतर पता है हमको असली नकली में....अरे रे....जानती हूँ ....अब कहेगा तू .... अरे ओ पगली हम भगवान है मूर्ति में भी वास है हमारा.... तो सुन मूर्ति में रहने वाले बड़े साहब...मूर्ति में तू भले ही रहेगा पर रूप तो तेरा मूर्ति वाला रहेगा न.... जैसे तू मूर्ति में कैद है.... आजकल की तस्वीर जैसे.... तो एक बात बता जब तुझे गले लगाने को मैं आगे बड़ूंगी तो ये तुम्हारे प्रिय पंडित जी तो मुझे मंदिर से डांठ कर बाहर निकाल दिंगे न.... ऊपर से तुझे देखने को लाइन ही इतनी ज्यादा लगी रहती है.... तो तू उस समय मुझे लाइन क्यों मरेगा ??? सबके सामने तो तुझे दस किरदार एक स...

कब भी आ सकते है मिलने वो...!!

  आह....कृष्ण....तुम पर ये पिला कपड़ा कितना सुंदर लगता है.... उनके मूर्ति के सामने खड़े होकर मैं उनको निहारते हुए बोल रही थी.... पिला रंग तुम्हारे तन पर सोने जैसा चमकता है...मंदिर में इतनी भीड़ हो रही थी कि... मेरा वाक्य अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि किसने मुझे धक्का मारकर आगे की ओर धेकेला... जिससे मेरा सर उनके गर्भरह की चौखट पर जा लगा... और मेरे आखों के सामने अंधेरा छाने लग गया.... मैं ऐसा लग रहा था मेरापुर शरीर घूम रहा है... पता नही चल रहा मेरे साथ क्या हो रहा है...अचानक से मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कोई है मेरे पास...मैं इससे पहले अपनी आँखें खोलती .... ऐसा लगा किसी ने मुझे छुआ.... और उसके छूते ही... एक अलगसे अहसास हुआ मानो पूरे शरीर मे तरंगे दौड़ गयी हो...मैंने घबराकर आँखे खोली.... तो पाया.... की वो ही मेरे पास थे... जिससे मिलने मैं आई थी.... पर एक ऐसे रूप में जो कल्पना से भी परे था... उनकी आँखें जादुई सी.... जो किसी नन्हे बालक के भाती निष्छल हो... जब वो अपनी पलके झपका रहे थे... तो मानो लग रहा था... मेरे हॄदय पर बाण चला रहे हो...उनका मुख ऐसे चमक रहा था मानो कोई पुष्प अपने यौवन के चरम सीमा प...