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क्या लगता है? आएगा कृष्ण....!!

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  क्या लगता है? आज कृष्ण आएगा मिलने.... या फिर नही.... ये प्रश्न मैं खुद से कर रही थी या कृष्ण से पता नहीं.... पर द्वार पर नजर टिका कर बस मन मे कुछ न कुछ बड़बड़ाई जा रही थी.... कभी कृष्ण को कोसती तो कभी प्रेम जताती... आज बाहर मौसम खराब था.... पर मेरे हृदय की आंधी ज्यादा तीर्व थी बाहर के मौसम से.... " तुम भगवान हो न कान्हा... इसलिए न आते हो न .... मैं तो तुछ हु.... काहे करोगे प्रेम.... ये मैला तन.... ये मैला मन.... तुमको कीचड़ समान लगता होगा.... इसिलये नहीं आते हो न.... मैं भिखारिन हूँ.... इसीलिए रोज तुझसे प्रेम की भीख माँगती हूँ.... और तू राजा है तभी तो अकड़ में रहता है.... आखिर राजा रंक का कैसे प्रेम संबंध हो सकता है ?? क्यों सही कह रही हूँ मैं?.... क्यों देगा तू जवाब.... तेरा गला दर्द करने लगेगा....अपनी जुबान को मेरे लिए क्यों देगा तकलीफ तू??.... तेरी क्या लगती हु मैं.... और रिश्ता क्यों जोड़ेगा.... क्योंकि तेरा कोई फायदा थोड़ा होगा रिश्ता मुझसे जोड़ कर.... मुझे पता है तू क्यों नही आता मिलने मुझसे....तुझको शर्म आती है क्योंकि मुझको अपना कहने में....तभी तो प्रेम का इजहार करने में कतराता...

कृष्ण कुछ कहना था... बुरा तो नहीं मानोगे ?

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  तुम कौन हो ? वो मोरपंख वाले... जिसके सिर पर घुंघराले है बाल... या फिर हो वो ग्वाला जो चलता है हिरन की चाल... हे स्वांग रचने वाले अभिनेता!! कितना तू खुद को रंगेगा और कितनी तू परतों में खुद को ढेकेगा... जितना तुझको जानना चाहूँ उतना ही तुझमे उलझ जाती हूं न जाने कैसे तेरे पास आने की जगह तुझसे दूर मैं अपने आप हो जाती हूं... जानती हूँ मेरी इन बेतुकी बातों का अर्थ तू ही है... और तेरे मेरे बीच की दीवार भी मेरा ये मैं ही है !! प्रेम समझने के लिए उस दिन मैं तेरे द्वार पर आई थी... तुम्हारा रास्ता तो मुझे नही पता है कृष्ण... पर उस दिन तुम खुद ही द्वार तक ले आए थे... शायद उस दिन प्रेम सीखने का ही दिन था... यानी प्रेम का दिन... मेरी हिम्मत नही हो रही थी द्वार खतखाने की...लग रहा था किस हक से तुमको बुलाऊ.... अगर तुम्हारा नाम लुंगी सीधे तो ये तो तुम्हारे ईश्वर होने का अपमान होगा... कैसे मुझसे महान व्यक्तित्व को उसके नाम से बुला रही हु.... और अगर तुमको अपना कहकर बुलाऊँ... तो फिर मन कहता क्या सच मे तुमको अपना कहने का हक है मुझे.... ये द्वंद मेरे मन मे चल ही रहा था .... कुछ देर बाद म...

ताशी 2 - "एक अनोखी मुलाकात"

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ताशी 2 - "एक अनोखी मुलाकात" दिनांक - _ | _ |20_ _ सबसे पहले तो प्यारी डायरी तुमको राधे राधे और ढेर सारा प्यार ... तो आज मेरा जन्मदिन है और आज ही एक दिन से मैं तुम्हारे साथ एक नई शुरुआत करने जा रही हूँ ... मैं रोज तो लिखना भूल जाती हूँ अपने आलास की वजह से पर कोशिश करूँगी तुम्हारे साथ कुछ खास और अहम पल बांट सकू ... तुमको तो पता ही है वो सब होने के बाद कितना अकेला महसूस हो रहा है ... चारो तरफ डर का माहौल है केवल ... मुझे समझ नही आता किस से करू दिल की बाते में ... तो अब तुम मिल गयी हो न...सब अच्छा होगा क्यों ?  ● दिनांक - _ | _ |20_ _ सुनो ... मुझे यहाँ अब अच्छा नही लगता कुछ भी पहले जैसा नहीं है ... पर पता नहीं आजकल मेरा दिल ज्यादा धक धक कर रहा है...लगता है कोई मेरा नाम लेता है कोई बुलाता है पता नहीं कौन ...!! शायद वो तो नहीं| ● दिनांक - _ | _ |20_ _ आजकल तो बाहर निकल पर भी पाबंदी हो गयी है ... बस डर का माहौल है ... तुमको पता है मुझे अब डर लगना बन्द होगया है जब से मेरे साथ वो हादसा हुआ है ... मैं अभी जल्दी में हूँ जल्दी तुमको सारी बात विस्तार से बताऊंगी ... जाती हुँ | ● दिनां...

कृष्ण पगली

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             रात बहुत हो चुकी थी  आसमान में काले बादल छाए हुए थे,  ऐसा लग रहा था मानो किसी भी वक्त बरसात हो सकती हो | आसपास के सारे होटल बुक हो चुके थे जिन्हें देख हमे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा था क्योंकि समय ही कुछ ऐसा था ... 1 सप्ताह बाद जन्माष्टमी आने वाली थी  | हिम्मत न हारते हुए , श्री राधे का नाम लेकर हम आगे किसी छोटे से सराहे की तलाश में निकल पड़े | थोड़ी दूर जाकर हमें एक धर्मशाला दिखाई दी वह थी तो पुरानी पर उस वक्त हमारे लिए किसी फाइव स्टार होटल से कम न थी |  अंदर जाकर वहां के मैनेजर से हम बात कर ही रहे थे कि तभी जोरदार बारिश शुरु हो गई  झमाझम.... झमाझम ...! | मैनेजर के द्वारा हमें पता चला कि वहाँ पर कोई कमरा कमरा खाली नहीं बचा हुआ था परन्तु वक्त की नज़ाकत और बारिश की कृपा को देखते हुए उन्होंने हमें छोटे से  स्टोर रूम का कमरा दे दिया रात बिताने के लिए | मेरे साथ मेरी दोस्त ईश भी आई हुई थी , वही माध्यम थी मुझे यहां वृंदावन में जन्माष्टमी पर लाने के लिए ;  अचानक यह सब कैसे तय हुआ कुछ पता  ही नहीं चला | क...