ताशी 2 - "एक अनोखी मुलाकात"
ताशी 2 - "एक अनोखी मुलाकात"
दिनांक - _ | _ |20_ _
सबसे पहले तो प्यारी डायरी तुमको राधे राधे और ढेर सारा प्यार ... तो आज मेरा जन्मदिन है और आज ही एक दिन से मैं तुम्हारे साथ एक नई शुरुआत करने जा रही हूँ ... मैं रोज तो लिखना भूल जाती हूँ अपने आलास की वजह से पर कोशिश करूँगी तुम्हारे साथ कुछ खास और अहम पल बांट सकू ... तुमको तो पता ही है वो सब होने के बाद कितना अकेला महसूस हो रहा है ... चारो तरफ डर का माहौल है केवल ... मुझे समझ नही आता किस से करू दिल की बाते में ... तो अब तुम मिल गयी हो न...सब अच्छा होगा क्यों ?
●दिनांक - _ | _ |20_ _
सुनो ... मुझे यहाँ अब अच्छा नही लगता कुछ भी पहले जैसा नहीं है ... पर पता नहीं आजकल मेरा दिल ज्यादा धक धक कर रहा है...लगता है कोई मेरा नाम लेता है कोई बुलाता है पता नहीं कौन ...!! शायद वो तो नहीं|
●दिनांक - _ | _ |20_ _
आजकल तो बाहर निकल पर भी पाबंदी हो गयी है ... बस डर का माहौल है ... तुमको पता है मुझे अब डर लगना बन्द होगया है जब से मेरे साथ वो हादसा हुआ है ... मैं अभी जल्दी में हूँ जल्दी तुमको सारी बात विस्तार से बताऊंगी ... जाती हुँ |
●दिनांक - _ | _ |20_ _
कितना अजीब है हम कई बार जब लोगो को पहली बार देखते है तो वो पुराने से लगते है...मन तो करता है बात करू पर समझ नहीं आता... तुम ही बताओ न क्या करूँ मैं ...!!
●दिनांक - _ | _ |20_ _
कृष्ण... मुझे नहीं पता मैं कैसे तुम्हें धन्यवाद दू... सुनो क्या कभी हम मिलेंगे? ... अगर हाँ तो मुझे तुम्हारे साथ उगता हुआ सूरज देखना है नदी किनारे... चलोगे न तुम? साथ ...!!
●दिनांक - _ | _ |20_ _
तुमको पता है कल मुझे उनकी इतनी याद क्यों आ रही थी...कृष्ण के ही तो कारण मेरा यहाँ से निकल पाना सम्भव हुआ है ... अगर मैं उनसे न मिलती शाम को कल तो आज मैं खुली हवा में साँस नहीं ले पा रही होती ... अभी 1-2 दिन सफर में ही शायद बीते वैसे तो हम जल्दी पहुँच जाते पर इस माहौल की वजह से इतनी देर लग रही है ... आसपास मेरे इस वक्त बस में लोग सो रहे है शायद काफी थक गए हुंगे... अभी तो सिग्नल भी नहीं है फोन पर ...तो लोगो के पास अब सोने के इलावा कोई चारा है भी नहीं... पर मुझे नींद नहीं आ रही तुमको अपनी कहानी बता कर शायद हल्का लगे मुझे क्यों...तुमको पता है किसी ने नहीं सोचा था कि सब अचानक से होगा मतलब बात तो चल रही थी पर अचानक से क्या हुआ पता ही नहीं चला... जुलाई का टाइम था तब अचानक से इस बार गर्मी ज्यादा पड़ने लगी फिर एक दिन भूकंप के झटके हमे आधी रात को लगें हम कुछ करते उससे पहले ही सब कुछ तहस नहस होगया ...मुझे तो पता नहीं कब भूकम्प आया ... क्योंकि उससे पहले मैं बस भागे जा रही थी क्योंकि भूकम्प लगातर महसूस हो रहा था जब आँखे खुली तो देखा मैं मलवे या पत्थर था शायद उसमें अंदर थी और एक मोटा से पत्थर गिरने को था मेरे ऊपर पर वो किसी चीज से अटका था मैं जैसे तैसे बाहर आई ... और देखा जिस वजह से वो अटका था वो कोई और नही कान्हा की सुंदर सी मूर्ति थी नीले रंग की ... मेरे बाहर आने के बाद आँसू ही नहीं रुक रहे थे ... मैं जब बाहर आई जो हालात थे मैं बयाँ नहीं कर सकती शब्दो मे ... मैं चाहकर भी भूल नही सकती ... मुझे हवा मे घुटन महसूस हो रही थी... मैंने जब अपनी जेब टटोली तो फोन पाया था उसमें पर सिग्नल नही थे जब आसपास थोड़ा पता किआ तो पाया किसी को कुछ नही पता क्या है कोई समाचार की खबर नही थी... बहार से मदद का इन्तज़ार था क्या हुआ ... कोई बोलता युद्ध है इसका कारण तो कोई प्राकृतिक आपदा ... घर पर भी मैं बात नहीं कर सकती अभी भी उनकी चिंता बहुत है न जाने कैसे हूँगे ... जिस प्रकार कान्हा तूने मुझे बचाया उसी प्रकार उनको भी बस बचा ले ... कुछ समय हम बचे लोगो को निकाल रहे थे मिलकर फिर कैम्प बनाकर रह रहे थे... पता है बीच बीच मे कभी कभी भूकम्प के झटके आरे थे बहुत डर लगता था न जाने अब क्या हो... मुझे नहीं करना फिर से ये सब याद !! खैर मैं आगे बढ़ती हूँ ... आखिर क्या हुआ ... जो पास का एक मंदिर था न छोटा सा कोने में वो बचा था तो मैं कभी कभी वहाँ जाती थी... खाना वही बनता था सबका तो मदद भी कर लेती थी ... और पता है उस दिन से कृष्ण की वो मूर्ति हमेशा साथ रखती हुँ... क्योंकि जैसे उन्होंने मुझे बचा कर प्रेम जताया अब मेरी बारी है न... मैं तो इसे चमत्कार बिल्कुल नहीं कहूँगी क्योंकि उन्होंने बस अपना प्रेम निभाया है और अब मेरी बारी है निभाने की प्रेम |
●दिनांक - _ | _ |20_ _
कल मैं बताना ही भूल गयी कि मैं यहाँ कैसे आई असल मे मंदिर में कुछ लोग नंदा देवी रज जत यात्रा के लिए जा रहे थे क्योंकि उनका गांव है वहाँ ... तुम्हारी मूर्ति देख पता नहीं क्यों, उनको लगा उनको मुझसे भी पूछना चाहिए तो मैं भी मान गयी... पता नही क्यों मेरा दिल बहुत था वहाँ जाने को अब लग रहा माँ का यही है बुलावा |
● दिनांक - _ | _ |20_ _
गाँव मे आकर बहुत अच्छा लग रहा है सब कुछ नया नया सा लग रहा पर शांति है ... भूकम्प तो यहाँ भी आया था पर फिर भी शहर से शांति है यहाँ ...
सुना है पड़ोस के गाँव मे एक कृष्ण का मंदिर है कल वही जा रहीं हूँ मैं |
●दिनांक - _ | _ |20_ _
....
...
...
पता है आज क्या हुआ मेरे साथ मैं न मंदिर में आरती के समय ही पहुँची थी ... और जब आरती शुरू हुई तो ऐसा लगा जैसे मुझे पूरे शरीर मे करंट सा लगा हो ... मैं कृष्ण की मूर्ति के सामने खड़ी थी बस उनको देखते जा रही ... मन मे चीख चीख कर उनको बुला रही थी ... आरती में घण्टीओ की टन टन मुझे कृष्ण की पैरो की आवाज से लग रही थी ... बस कृष्ण कृष्ण ही ... सुनाई और महसूस हो रहे थे चारो ओर... लग रहा था अभी कृष्ण आएंगे और मुझे गले लगा लिंगे ... तुमको तो मैं बताना भूल गयी वो मूर्ति न मेरे पास ही थी तो मैं उसको पकड़ कर कृष्ण की कल्पना कर रही थी और पता नहीं क्यों मुझे बेहद शर्म आ रही थी ... काफी दिन से मैं उनसे मन की बात करना चाह रही हूँ पर नहीं कर पा रही ...
पर मैं अब कुछ दिन में कर दूंगी ... खैर पता है एक बड़ा सा हादसा हुआ मेरे साथ !! ...जब मैं मंदिर में खोई हुई थी कान्हा के खयालो में ... फिर से वहाँ भूकम्प आगया पहले तो मुझे पता नहीं चला पर अचानक से किसी ने मुझे धक्का दिया... मंदिर में भगदड़ मच गई थी, मुझे कुछ समझ नही आ रहा था मैं क्या करूँ तभी किसी ने मेरा हाथ और मुझे मंदिर की अंदर वाली गुफा की ओर लेजाने लगा ... मैं बस चली जा रही थी एक हाथ से सीने से लगाए कृष्ण की मूर्ति मैंने पकड़ी हुई थी और दूसरे हाथ से उसका हाथ... चलने के साथ साथ मेरे दिल की धड़कने भी बढ़ रही थी... मैं उसकी शक्ल नही देख पा रही थी बस उसके बाल जो उसकी गर्डन तक आते है वही मुझे उड़ते हुए दिख रहे थे |
वो मुझे गुफा के रास्ते शायद बहार की ओर ले आया था ... बाहर से लोगो की चिल्लाने की आवाज आ रही थी मैं भी डर के मारे काँपने लगी ... मैंने रास्ते मे ही रुक कर मूर्ति को कस कर पकड़ लिया ...वो मेरे पास आया ... मैंने उसको पहली बार इतनी पास से देखा... पहली बार इसीलिए क्योंकि... वो जाना पहचाना था ये वही है जो मुझे पहले जहाँ रहती थी वहाँ मिला था ... मुझे अब भी याद है ये मंदिर में भजन गा रहा था राधा रानी का इसकी सुरीली आवाज सुन कर मैं इसको देखने के लिये आई थी पर बहुत भीड़ थी इसके पास तो कभी मिल न सकी ... हमेशा इसको देख ऐसा लगता था जैसे जानती हूँ इसको , पर लगता क्या पता दिमाक कोई खेल तो नहीं खेल रहा ... ऊपर से इसके आसपास हमेशा लड़कियो लड़को की भीड़ रहती तो मुझे लगता क्या पता इसीलिए मुझे ये आकर्षक लगता हो मैंने कभी इसीलिए इससे बात न करने की सोची ... क्योंकि दूर से तो सब अच्छा ही लगता है न... खैर आज पास से देख कर भी कूछ खास नहीं लगा ... बस दिल की धड़कने थोड़ी बढ़ गयी ... वो भी शायद इस माहौल की वजह से ... वरना मेरे मदन गोपाल से ज्यादा कौन ही आकर्षक है इस दुनिया में जो मैं किसी और को देखु ...मैने एक नजर उसको आँखों मे देखी और फिर तुरंत आँखे बंद करके कृष्ण का नाम लेने गयी ... मैं कृष्ण के विग्रह को धन्यवाद देने लगी ... इस पर वो अपने हाथ मोड़ते हुए बोला "ओ... मेरे बदले इनको थैंक यू वाओ !! ये भी पूछ लो कि ये ठीक है या नहीं अब मूर्ति की कीमत इंसानों से ज्यादा हो गयी है वहाँ !! क्या संसार बनाया तूने भगवान ..!! "
"अरे... पर होता तो सब उनकी कृपा से होता है ... तुमको भी थैंक यू बस खुश !!"
"ओ ... अहसान तो मत करो ये अपना थैंक यू बोल कर ...!! " वो बनावटी गुस्से से बोला !!
"अरे सॉरी ऐसी बात नहीं है न..." मैं हिचकिचाते हुए बोली
"सॉरी ?? रहने दो तुम अभी जरा बाहर निकलने का देखने दो मुझको !! "
वो बाहर निकलने का रास्ता देखने लगा मैं उसको देखे जा रही थी इतने दिन से इसको देख कर लगता था जैसे जानती हूँ ... आज उसको सामने से इतने पास देख लग रहा था जैसे उसको पहचानने की कोशिश करी हुँ पर पहचान नहीं पा रही हूँ ...!!
"ओ ....सपनो से बाहर निकलो जरा ...!! इधर चलो ... या फिर यही रहने का ही इरादा है तुम्हारा ...!! "
मैं सर हिलाते हुए उसके पीछे चल दी उसने फिर से मेरा हाथ पकड़ा और फिर से बाहर की ओर जाने लगा ...
"डरना बन्द करो अब ... अपने इन कान्हा पर जरा विश्वास रख लो !!"
हम थोड़ी देर बाद बाहर पहुँच गए थे ... आसपास थोड़ा अंतर था पहले से , नुकसान ज्यादा नहीं हुआ था पर काफी अजीब सा माहौल था बाहर ...
" अब तो हम बाहर आगये न..." वो मेरी आँखों मे देखते हुए बोला |
" हाँ... ठीक हो न तुम " मैंने भी उसकी आँखों मे देखते हुए बोला |
" नहीं ..." वो मेरी ओर घूरता हुआ बोला
"मतलब ..." मैं हिचकिचाते हुए बोला
"मेरे हाथों को अब तो छोड़ दो !! " वो मुस्कुराता हुआ बोला !!
"अ... अरे सॉरी !!"
"सॉरी... ???? मेरा जो ये तुमने इतनी तेज से हाथ दबाया है न... देखो तो पूरा लाल कर दिया " अपना हाथ दिखाते हुए वो बोला |
"अरे अरे गलती से होगया सॉरी ...!!"
" गलती कितनी करती हो यार तुम !! "वो फिर से मुझको देख कर हँसने लगा |
" अच्छा अच्छा " मैं कह कर जाने लगी क्योंकि मुझे अजीब लग रहा था ... ऊपर से मुझे समझ नहीं आरा था मैं क्या बोलू मेरा दिमाक खाली होगया था उस वक्त |
"अभी ...? जा रही हो और कितने दर्द दोगी"
"मतलब क्या तुम्हारा " मैंने उससे पूछा
"अभी न जाओ छोड़ कर ... ये दिल अभी भरा नहीं !!" वो अपनी कुछ ज्यादा ही सुरीली आवाज में ही गाने लगा |
" क्या ?मतलब "मैंने सवाल भी नजरो से उससे पूछा |
"तुम्हे क्या लग रहा है ये मैं तुम्हारे लिए बोल रहा हूँ ...ये जो तुम्हारे हाथ मे है न ... ये उनसे बोल रहा हूँ !"
"इनके लिए ?? "मैंने मूर्ति को ऊपर उठाया !!
"जो ये तुम्हारे हाथ में है न... वो मेरे ही है !!"
"ऐसे कैसे ??"
"तुम ये वो मंदिर से लाई हो न... जहाँ से मुझसे अलग होगये !! " वो मूर्ति को पकड़ते हुए बोला
"अरे... मैं ऐसे कैसे मान लू" मैं बोलते हुए पीछे हट गई
"चोरी भी करती हो और बातें भी मनाती हो... इनके ये मित्रगण सब चोर ही होते है क्या ? " वो हँस गया
"तुम क्या हो इनके ?" मैंने उत्साहित होकर पूछा
"तुमसे मतलब ?" वो मुँह बनाने का नाटक करने लगा
" मैं क्यों दू ये मेरे है अब ..."मैं उससे अकड़कर बोली
"अच्छा....तुमको पता है ये मेरे है और फिर भी तुम ये ड्रामा कर रही हो... रखो इनको अपने पास पर... पहले मुझे तुम विश्वास दिलाओ इनका ध्यान सही से रखोगी !! "
"अरे... क्यों नहीं रखूंगी इनका ध्यान ये तो मेरे प्राण है!!"मैं उस विग्रह की आँखों मे देखते हुए बोली और उसको सहलाने लगी |
"यहाँ तुम किधर को रुकी हो ? "
"वो पास के गाँव जिधर माता का मंदिर हैं ऊँचे पहाड़ वाला बड़ी दीवारे वाला !"
"रहता हैं उधर कोई तुम्हारा?"
"मैं नन्दा देवी की यात्रा देखने आई हूँ "
'"मेरे साथ चलोगी उधर को जहाँ से शुरू होगी यात्रा ? उधर ही रुका हूँ मैं ..."
"क्यों पर ?" मुझे उसके अचानक से ऐसे प्रश्न से अजीब लगा
"जब तुमको वही जाना है कुछ टाइम बाद ही ... तो अभी चल लो "
"मैं तुम जैसे अनजान पर विश्वास क्यों करू?"मैंने एकदम से उसको बोला |
"ये जो तुम्हारे हाथ मे है उनको जानती हो तुम ?"
" बोला तो प्राण है ये मेरे..."मैं उनको आगे करते हुए बोली
"तो है ये मेरे ही वापिस करो इनको या फिर मुझे इनका परिवार वाला समझ कर चलो साथ"
"तुम बोल क्या रहे हो ये ..."
"जो तुम सुन रही हो !! हाँ या न बोलो अंधेरा होने को है मुझे निकलना भी है !!"
"अरे सोचने तो दो"
"सोचो ... सोचो ... एक काम करता हूँ आज रात हम यही टेंट लगा देते है फिर तुम रात भर इन जंगली जानवरो के साथ सोचते रहना और सुबह अगर जिंदा बच गयी तो मुझे बता देना !! ठीक ...."
"अरे ... क्या बोल रहे हो ये तुम !! "
"बोल तुम रही हो ...मैं जा रहा हूँ !! देर हो रही है मुझको !!"
"रुको... आती हुँ मैं भी ..." मैंने उस वक्त जल्दी ही फैसला ले लिया साथ चलने का... वैसे भी मैं यहाँ कान्हा के भरोसे आई थी ... तो आगे उनकी इच्छा सोच मैं चल दी उसके साथ |
वो मुझे पैदल पैदल ही ले जाए जा रहा था खुद मुझसे 7 कदम आगे चल रहा और पीछे मुड़ कर भी नहीं देख रहा था ऊपर से ... मुझे उस पर बड़ा ही गुस्सा आ रहा था पर ये सोच की क्या ही बोलू एक हाथ मे कृष्ण और दूसरे में बैग लेकर चल पड़ी ... रास्ते के गांव में जहाँ मैं रुकी थी वहाँ से मैंने बचा हुआ समान लिया और हम दूसरे गांव की ओर चल पड़े |
इस माहौल के कारण उस समय ज्यादा गाड़िया नहीं चल रही थी तो हम रोड के किनारे चले जा रहे थे वो मुझे पता नहीं क्या क्या बताया जा रहा था चलते चलते ... बोलता कि आजकल लोग बात करना भूल गए है मुझे हैरानी हुई कि ये किस वजह से और ऐसा क्यों बोल रहा है तो वो बोलने लगा कि लोग खुद में उलझे इतने रहते है कि प्रकृति से बात करना ही भूल जाते है ... फिर थोड़ी देर बाद हँस कर कहने लगा कि प्रकृति तो बहुत बड़ी की बात हो गयी लोग आजकल अपनो से हाल चाल पूछना नहीं चाहते है ... फिर थोड़ी देर बाद मुझको देख कर बोलने लगा और तुम यहाँ भगवान के हाल चाल जानना चाहती हो |
एक तो वो बोले जा रहा और खुद में हँसे जा रहा था और अपनी हर बात मुझसे जोड़ मुझको बार बार परेशान कर रहा था | थोड़ी देर बाद एक सफेद फूल मुझे तोड़ कर देते हुए बोला ये लो !! मुझे समझ नहीं आया तो बोलने लगा कि तुम फूल से भी डरती हो क्या अब... एक तो वो हर बार अजीब तर्क देता है ...मुझको तो मुझको उसकी बात सुननी ही पड़ती है , मैंने जब फूल लिया तो मेरे हाथ मे जो कृष्ण की मूर्ति थी उसमें फूल को सजाने का प्रयास करने लगी तो वो मुझे बीच से रोकते हुए बोला ... अपने बाँकेबिहारी से बोल देना ये उनसे ज्यादा तुम पर अच्छा लगेगा ...!! ये सुनते ही मेरी धड़कन तेज होगयी तुमको पता है न क्यों ... क्योंकि यही लाइन बिल्कुल कुछ समय पहले मेरे सपने में आई थी और मैंने उन अजीब सपनो को जोड़ कर ताशी कहानी को लिखा था |
मैं चुपचाप फिर नजरें नीची करते हुए चलने लगी क्योंकि मुझे समझ ही नहीं आ रहा था उस वक्त क्या कहूँ मेरा पूरा शरीर काँपने लग गया था ... मैंने उससे बोला मैं और नहीं चल सकती अब क्योंकि हम बस कबसे चले ही जा रहे थे फिर बड़ी मुश्किल से एक ट्रक को रोक और हम पीछे बैठ गए ट्रक में लकड़ियां और घास थी हम आराम से वहीं बैठे थे ... उसने मेरा अचानक से हाथ पकड़ा और बोला तुम क्या ठाकुर जी को बोर कर रही हो आओ उनको जरा हवा खिलाओ ठंडी ... हम ट्रक के पीछे खड़े होकर पहाड़ के नजारे देख रहे थे ... मैं ठाकुर को सीने से लगाए थी ... पता है मुझे ऐसा लग रहा था जैसे ठाकुर और मैं साथ मे खड़े हो ... बहुत आनन्द आया ठंडी हवा में और पहाड़ों के नजारे में |
● दिनांक - _ | _ |20_ _
अभी रात है हम शायद सुबह तक उस जगह पहुँच जाएँगे ट्रक रुका है हम ऊपर ही सो रहे है ... पता है उस लड़के का क्या नाम है उसका नाम काशी है... हुई न हैरानी मैंने तो वो अपने सपने वाले लड़के का नाम युही काशी रखा था और अब सच का काशी है ... ये ठाकुर जी लगता है सच मे मेरी परीक्षा ले रहे है पहले अजीब सपने और अब ये काशी पर ये मेरे ठाकुर काशी वाला बिल्कुल नहीं है ये तो पूरा दिन बोलता ही रहता है बस और सिर्फ बकवास करता है जब देखो मुझे परेशान करता है मैंने अभी अपने बाल कटवाए थे कुछ समय पहले तो बोलने लगा कि लड़कियां बाल क्यों कटवाती है ये वो फिर थोड़े देर बाद बोलने लगा तुम कटवाओ या न कटवाओ लगना तुमको एक सी है कौनसा सकल बदलेगी तुम्हारी | पता नहीं मैंने कही गलती तो नहीं करी या फिर क्या पता ठाकुर कुछ और ही चाहते हो |
अभी तो वो सो रहा है और मैं आसमान में चांद सितारे जो साफ तो नहीं दिख रहे है पर फिर भी है उनको देख रही हूँ ... ठाकुर पता है मेरे ऊपर गोदी में है उनके साथ यू अकेला रहना कितना सुकूँ भरा है न ... समझ नहीं आता किस चाँद को देखू |
●दिनांक - _ | _ |20_ _
माफ करना प्यारी डायरी आज काफी समय बाद मिल रही हूँ यू कहुँ कई महीनों बाद ऐसा नहीं है कि मैं लिखना नहीं चाहती और अचानक याद आई तुम्हारी क्योंकि मैं अकेली हूँ ... असल में अब मुझे उतना अकेला महसूस ही नहीं होता है पता है क्यों.... क्योंकि मुझे अब ऐसा लगता है जैसे हर पल ठाकुर पास है मेरे ... तुमको पता है काशी ऐसा नहीं जो मुझे पहले लगता था जब मैंने आखिरी बार तुम पर लिखा था पता है सुबह उठ कर उसने मुझसे क्या पूछा कि तुम ठीक तो हो ... जब मैंने हाँ बोला तो वो बोला सच बोल रही न ... तुम सोच रही होगी न इसमें क्या खास बात है ... क्योंकि पहले कभी किसी ने मुझसे ये नहीं पूछा बल्कि मैं ही ये अपने ठाकुर से पूछती रहती थी कि अब सच मे ठीक हो न !! मुझे बहुत अच्छा लगा था ... हमने माँ नन्दा देवी की त्योहार में भाग लिया और अद्भभुत आनन्द प्राप्त हुआ , पता है तुमको काशी को काफी ज्ञान है हर चीजो का ; उसने मुझे काफी नई चीज सिखाई है और वो तो मेरे साथ मेरे ठाकुर का भी ध्यान रखता है ... मैंने उससे बोला था कि मुझे एक बार ठाकुर के साथ नाचना है पता है उसने खुद गाना गाया और मुझसे बोला आँख बंद करो और मुझे वो बोल के सहारे ठाकुर की कल्पना कराने लगा फिर पता है ऊपर से फूल गिरा रहा था ... ऐसा लगा कोई बॉलीवुड का सीन हो मेरा ठाकुर हीरो और मैं हीरोइन हूँ बता नहीं सकती मैं आनन्द कितना आया फिर पता है थोड़ी देर बाद हम तीनों ने मिलकर गाना डांस साथ किया
... सुबह सुबह पता है काशी मुझे जल्दी उठा देता है जबरदस्ती साथ मे सुरुदय देखने ले जाने ले जाता है मैं ठाकुर और वो ...
इतना सुंदर लगता है मानो कोई सपना हो हम लोग असपास सारा दिन लोगो की मदद में निकालते है बाकी वो अपना वर्क फ्रॉम होम का काम करता है और पता है उसने क्या बोला है मुझसे की तुम मेरी सेक्टरी बन कर रहो साथ तुमको मैं खाना, खर्चा , पानी देता रहूँगा जब तक वापिस न जाओ ... तो मैं उसके लिए खाना बना देती हूँ और उसकी कामों में मदद करती रहती हूँ अरे तुमको एक बात तो बताना भूल गयी पता है हम सूर्यास्त के समय रोज क्या करते है राधेश्याम की बचपन की लीलाओं की चर्चा करते है अध्भुत ही आनन्द मिल जाता है वो एक को कथा को ऐसे बताता है जैसे उसकी ही बचपन की कहानी हो तो और भी मजा आता है उसके साथ चर्चा में |
आज हम वापिस निकल रहे है यहाँ से अब मैं वापिस घर को जाने का सोच रही हूँ माहौल शायद अब शांत हो गया है पहले से तो ... और तुम पर ये मत समझना वो बहुत अच्छा भी है वो बहुत चालक भी है लोगो से बड़े आसानी से काम निकाल लेता है और पता है अभी भी मुझको बहुत तंग करता है वो |
पर तुमको पता है वो पहला है जिसके साथ मैं खुल पाई हु मुझे अच्छा लगता है उसके साथ रहना ठाकुर ने मुझे एक बहुत अच्छा दोस्त दिया है धन्यवाद प्यारे |
●दिनांक - _ | _ |20_ _
आज मुझे आखिरकार तुमसे मिलने का समय मिल ही गया ... पता है जब हम जा रहे थे न घर को तो फिर से भूकम्प आगया था तो हमको रास्ते में ही रुकना पड़ा और मुझे वहाँ अपने दो पुराने कॉलेज के दोस्त मिल गये तो अब हम जहाँ रुके है वहाँ पास में वो भी रुके हुए है और तुमको पता है हम वृंदावन के पास में रुके है तो एक दिन वहाँ भी जाएंगे फिर अब घर को जाऊंगी मैं |
पता है आज शाम हम लोग एक पार्क में गए जो बन्द था तो अब हम जहाँ रुके है वहाँ पास में वो भी रुके हुए है और तुमको पता है हम वृंदावन के पास में रुके है तो एक दिन वहाँ भी जाएंगे फिर अब घर को जाऊंगी मैं |
पता है आज शाम हम लोग एक पार्क में गए जो बन्द था तो काशी ने झूला ऑन किया और हम सब मिलकर झूले अब तो मैं ठाकुर को लेकर खुले आम घूमती हुँ काशी की वजह से मुझमे हिम्मत आई है ठाकुर को सबके सामने लाने की ... मुझे बहुत बेताबी है एक बार वृंदावन जाने की अब |
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अरे तुमको पता है मैं आखिरकार वृंदावन जाकर आगयी और पता है ऐसा लगा ठाकुर ही मुझे घुमा रहे हो ... मेरे एक हाथ मे क्योंकि वहीं थे और तुमको पता है काशी मुझको उनकी लीलाओ की जगह ले गया और वो मुझे लीलाएँ ऐसे बता रहा था जैसे कि ठाकुर जी अभी सामने आकर लीलाएँ करेंगे , आजकल ब्रज की गलियां थोड़ी सुनी सुनी है तो ऐसा लग रहा था कि ब्रज के अकेले हम तीनों ही घूम रहे हो ... दर्शन करते समय भी आंनद महसूस हो रहा था मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई सपने में जी रही हो मानो ... अभी मैं ब्रज से तो आगयी पर वही सब लग रहा है मानो अब भी वही ही हूँ |
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अजीब सा हुआ कुछ मेरे साथ वो जो बताया था न मेरा दोस्त है कॉलेज वाला ... मैंने तुमको पहले नहीं बताया पर उनमें से एक वो भी था जिसको मैं पहले पसंद करती थी ... पर जब मिली न अभी तो कुछ उसके लिए महसूस ही नही हुआ वैसा ... क्योंकि अभी मैंने सब कुछ ठाकुर को माना है अपना अब मुझे मन ही नहीं करता उनके इलावा किसी और के बारे में सोचने का ... तुमको पता जब आज हम उस झूले मे गए थे पार्क में तो उस समय मैं और वो ही लड़का वहाँ अकेले था तो उसने मुझसे बोला कि वो मुझे पसंद करता है और बात आगे बढ़ाना चाहता है ... उस समय उसने अचानक से पूछा तो मैं कुछ बोल नहीं पाई ... उसने मुझे कल सुबह तक का वक्त दिया है अब देखो क्या होगा |
●दिनांक - _ | _ |20_ _
इस वक्त मैं ये सब सुबह लिख रही हूँ क्योंकि मुझे समझ नहीं आ रहा किससे करू बात आज मेरी ठाकुर से भी नजरे मिलने की भी हिम्मत नहीं हो रही है ... कल रात को मैं वही सब सोच रही थी कि उससे क्या कहूँ ... तो मैं छत पर चली गयी थी अकेले पहले वहाँ कोई नहीं था ... फिर थोड़ी देर बाद वहाँ काशी आगया और वो मुझसे उदासी का कारण पूछ रहा था ... मैंने उसको बतया की नहीं मैं उदास नहीं हूं बस अजीब से घबराहट हो रही है मुझको ... तो वो मेरे सर पर हाथ रख बोलने लगा ... जो मन मे है बोल दो विश्वास नहीं करती क्या मुझ पर ... मेरे हाथ मे उस वक्त भी ठाकुर थे ... तो मैंने ठाकुर को उसको पकड़ा कर बोला ... ये जब मेरे जीवन मे नहीं थे तो भी मैं जी तो रही थी पर पता नहीं कैसे और क्यों ये समझ नहीं आता था ... और आज जब ये आए है तो बस यही हो गए जीवन ... अब पुरानी सब यादे ताजा हो रही है तो अजीब सी हलचल हो रही है मन मे बस |
"तुम खुल कर बताओ ..." उसने मुझसे पूछा
" ठाकुर के इलावा किसी और को चुनना क्या सही है ? क्योंकि वो मेरे पुराने साथी है न किसी नए के अजाने से उनको छोड़ना क्या सही है !!" मैंने उसकी ओर देख कर कहा |
"वही करो जो तुम्हारा दिल कहता है " वो बोलकर मुस्कुराने लगा |
" हाँ वही ही करूँगी ...." इतना कहकर मैने उसके हाथ से मूर्ति ली और सीने से लगा ली |
पता नहीं कैसे पर अचानक वहाँ बारिश शुरू होगयी ... मैंने ठाकुर को और जोर से पकड़ लिया ताकि वो भीगे न ... और मैं नीचे की ओर जाने लगी ... तभी काशी ने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा ...
"सुनो ... अगर मैं तुम्हारा ठाकुर होता तो क्या तुम अभी मुझे चुनती !! इस मूर्ति की जगह "
" मतलब क्या है तुम्हारा ...? " मैंने हैरान होकर उससे पूछा
"मतलब तुमको पता है ... अगर ठाकुर मैं होता तो तुम मुझको चुनती न ... "
"नहीं ..." मैंने काशी की आँखों मे देखते हुए बोला ... बारिश की बूंदे उसकी पलको से बार बार टकरा रही थी फिर भी वो एकतक होकर मुझे देखा जा रहा था |
"पर क्यों ... मैं ठाकुर होता तो फिर ये मूर्ति क्यों ..."
" वो किसमे नहीं है ये बताओ पहले ...तुम अगर वो भी हो फिर भी मैं उनके उस रूप से प्रेम करती जो सबके भीतर है जो प्रेम का रूप है ... तुम ठाकुर हो या नही भी पर मैं फिर भी इस मूर्ति से ही करूँगी प्रेम ये संसार मे सब कुछ वैसे भी झूठ है मुझे एक झूठ और मानने को मत बोलो ... मुझे भले ही वो मनुष्य वाला प्रेम न दे ... पर शांति जरूर दे सकते है जो मुझे उनकी मुस्कुराहट से मिलती है | "
इतना कहकर मैं जाने लगीं क्योंकि मेरा मन नहीं था अब रुकने का वहाँ पर ...फिर से काशी ने मुझे अपनी ओर खींचा और वो मेरे बिना कुछ बोले गले लग गया... सब अचानक से हुआ मुझे कुछ समझ नहीं आया मेरा शरीर कांप रहा था मुझे अजीब सा महसूस हो रहा था लग रहा था मानो असपास सब सुन्न पड़ गया हो मैं झटके से पीछे हुई ... अचानक से मूर्ति हवा में उड़ने लगी और काशी के अंदर समा गई और काशी अचानक से एक दिव्य प्रकाश में बदल गया जो मुरली वाला श्याम बन गया था ... मेरे आँसू टपकने लगे थे और मैं दौड़ कर गई मैंने उनको गले लगा लिया ... मेरे पास कोई शब्द ही नहीं थे ... मैं बस रोइ जा रही थी उन्होंने मुझे संभाला और मेरी आँखों मे देखने लगे ... और फिर से वो काशी के रूप में आगये उस वक्त मैं बया नहीं कर सकती कि मुझको कैसा लग रहा था ... वो कमरे का दरवाजा खोलता और मुझे अलग अलग जगह घूमता कभी हम बर्फ देखने जाते तो कभी बदलो में उड़ने ... मैं बस उसको ही देखी जा रही थी ... कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या बोलू क्योंकि सारी बाते वो खुद ही समझ जा रहे थे मन की |
" तो फिर ... मुझसे मिलने का होगया सपना पूरा न तुम्हारा !! "
"हम्म ..."मैंने सरमाते हुए कहा
"मैंने अपना वादा निभाया अब मुझे जाना होगा ...बस यहाँ तक था साथ हमारा !"
"मतलब क्या है आपका ?" मैंने चौकते हुए पूछा
" मतलब यही की बस हमारी मिलने तक कि बात हुई थी ... अब मिल लिए तो... क्या करूं मैं यहाँ और बिना काम मैं कही नहीं रुकता !! " वो ये सब मुस्कुराते हुए बोल रहे थे |
" आपको क्या लगता है कि खेल खेलना सिर्फ आपको आता है ? जब मन चाहा जीवन मे आए और गए ? "
"ऐसा कहाँ है... मैं तो हमेशा से ही पास हूँ तुम्हारे "
"आपको पता है मैंने आपको काशी रूप में मना क्यों करा था चुनने को क्योंकि आप तो सभी मे हों....मैं नहीं चाहती पर बाहर खोजते हुए अपने भीतर के श्याम प्रेम से दूर हो जाऊं..."
"तो अब ठीक है रहना तुम यादों के सहारे ... जाना होगा मुझको "
"एक वादा दे सकते है जाने से पहले"
"वादे में मुझको मत मांग लेना " वो मेरे आँखों के पास आकर बोले
"वादा करो ये सब मुझे एक सपने सा लगेगा ... याद तो रहेगा पर सपने जैसा ..."
"सोचलो ... तुम एक सुंदर याद जीवन से मिटा रही हो "
" और जो आप मुझे खुद से दूर कर रहे हो ... वो क्या सही है ? "
"कौन बोला दूर मैं तो हमेशा तुम्हारे पास हुँ न ... और ये मूर्ति तो रहेगी पास ही तुम्हारे जो अभी मेरे पास रखी है ..." मेरे पास आते हुए वो बोले
"तो यादे मिटा दो न... क्या फर्क पड़ेगा आपको ... मेरी यादों से !! रहना तो नहीं है न साथ " मैं दूर जाते हुए बोली
"बड़ी गज़ब हो तुम ... मेरे साथ याद बनाने के लिए लोग तरसते है और तुम मिटाने की बाद कर रही हो !! "
" आपको लोगो को छोड़ना आता है न बस... तो अब आप भी देखिए क्या होता है जब अपने जाते है छोड़कर"
"मेरे लिए इसमें कोई नया नहीं है ... सब छोड़ कर चले ही जाते है मुझको ...!!"
"तो फिर ठीक है आपको जब कोई फर्क नहीं ही पड़ेगा तो मिटा देना यादे ... " मैं इतना बोलकर अंदर चली गयी ... मेरे अंदर पीछे मुड़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी |
सुबह जब उठी तो ये अजीब सा सपना याद था पर ये अब सच है या नहीं मुझे अजीब लग रहा ... सोच रही हूँ एक बार काशी के पास जाऊँ और बातों ही बातों में उससे पुछू |
जब मैं बाहर गयी तो काशी पौधों में पानी डाल रहा था मैं उसके पास गई और पूछा "कल रात ... किधर थे तुम ?"
"क्यों किधर होना चाहिए था मुझको !!" वो मेरे पास आकर बोला ... उसके पास आते ही फिर से वो सपना मुझे याद आने लगी मैं हड़बड़ा कर पीछे की ओर जाने लगी क्योंकि आखिर कैसे मैं किसी को कृष्ण की जगह देख सकती हूँ ... ऊपर से वो सपना इतना सच सा लग रहा था तो मन को लग रहा रहा कि सब सच हो ... समझ नहीं आ रहा कि कैसे पता करू... मैं अब जब भी काशी को देखती मुझे अजीब ही लगता ... कही ये मन का दोखा तो नही क्योंकि ऐसे सपने मुझे आए तो थे पहले भी पर इतना अजीब सा नही लग रहा जो असल जिंदगी से जुड़ा हो !! |
काशी अब जब भी मुझे देखता या बात करता तो मुझे अजीब ही लगता पता है वो हम जब सुबह को मंदिर जा रहे थे तो मैं उससे टकरा गई मुझे कैसा लग रहा बता नही सकती ...!!
●दिनांक - _ | _ |20_ _
आज काशी को लेकर मन मे कई सवाल थे जब भी वो पास आता तो मन करता पूछ लू पर हिम्मत नही हुई मुझे ग्लानि हो रही थी एक तो... कृष्ण की जगह किसी और को देने में ... अगले दिन सुबह को मेरा वो दोस्त आगया था तो मैं उसके बहाने ही काशी से दूर रहने लगी ...ताकि मुझे उसके पास न जाना पड़े बड़ी मुश्किल से वो दिन निकला ... पर मुझे लग रहा है उसको अंदाजा हुआ है कुछ तो वो उदास था ...पर मूझे क्या वो नाराज रहे या न रहे |
● दिनांक - _ | _ |20_ _
आज सुबह ही मेरा दोस्त दरवाजे पर आया अचानक से बोला कि जब कि गाड़ी मिल गयी उसको ... तो मैने सारा सामान समेटा और मैने कान्हा की मूर्ति ली जो की सपने में काशी के पास थी पर मेरे पास तो हमेशा ही थी इसी वजह से मुझे वो सब सपना ही लग रहा था ... दिमाक का खेल |
मैं बिना बताए काशी को ... अपने वही दोस्त साथ चल दी क्योंकि मैं नही चाहती थी कि उसको मैं देखु और कान्हा की जगह उसके बारे में सोचु ... मैं उसका सामना करना नहीं चाहती थी !!
रास्ते भर मेरा मन अजीब सा हो गया था समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ ... क्यों अजीब लग रहा घर वापिस जाने में ... घर मे सब सही थे मुझे देख वो और खुश होगये पर मैं अंदर से खुश नहीं हो पा रही थी ... मुझे रात में नींद नहीं आ रही थी तो मैं मूर्ति को पकड़ कर लेट गयी ... बार बार दिमाक में वही सपना आ रहा था ... मेरे पता नहीं क्यों उसके बारे में सोच और आँसू आते ... रोते रोते मुझे ऐसा लग कुछ तो मेरे चेहरे पर गिरा थोड़ा डरते हुए मैंने लाइट खोली तो देखा बाँसुरी के छेद में से एक पेज का पत्र है ... पत्र पढ़ने के बाद तो मेरे आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ...रुको मैं सुनाती हूँ तुमको |
प्रिय ,
आशा करता हूँ तुम रोना अब बन्द कर चुकी होगी ... जानता हूँ तुम जिद्दी हो... पर अपनो से हर बार कैसी जिद ? ये पत्र तुम्हारे ठाकुर के पास मैंने ही पहुँचाया ... क्योंकि हम एक ही है ... हाँ तुम सही सोच रही हो... वो सपना सच था तुम्हारा ,तुम सोच रही होगी आखिर क्यों मैं याद कराने आया... !! क्योंकि मुझे याद काफी कुछ कराना था तुमको तो सोचा शुरुवात क्यों न यहीं से करू !
तुमको पता है जब पहली बार तुमने मन्दिर में मुझको देखा था ... मेरा मन तो वही था तुमसे बात करने का पर मुझे लगा शुरुआत मैं क्यों करू आखिर... मैं रोज नए बहाने लाता ताकि तुम बात करो पर तुम तो अलग ही मुझे गुंडा समझने लगे गई थी ... बाद में जब तुम लड़कियो को देख जली थी न मेरे साथ मुझे बड़ा आनन्द आया था तब| मैं उस दिन तुमको जब मन्दिर में भुकम्प में पहली बार बचाने आया था तो मूर्ति को छोड़ गया था पास तुम्हारे ... असल मे मुझे लगा कि हमारी अचानक से ऐसी कैसे होगी मुलाकात और मेरी आदत भी नहीं है डायरेक्ट क्रेडिट लेने का !! तो मैं बस चुपचाप भाग गया वहाँ से | बाकी जब हम मिले तो तुमको तंग करने में मुझे बड़ा आनन्द आया तुम्हारी अजीब बातें और मुझे उनका उत्तर देना बहुत पसंद है | और जब तुमने मुझे अपना प्राण कहकर बुलाया था ...पहली बार आह !!! मुझे बहुत शर्म आ रही थी ... जब भी तुम्हारा हाथ पकड़ता था तो अपने आप मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती इसीलिए उस वक्त मैं अक्सर तुमसे नजरे चुरा लेता था !! याद है न तुमको ...एक तो तुम कभी बाते तुरंत सुनती नहीं थी तो मुझे इतनी मेहनत से हर बार हर बात के लिए तुमको मनाना पड़ता ... तुमको याद है जब मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुमसे आगे आगे चल रहा था मैं उस वक्त पीछे क्यों नहीं मुड़ रहा था पता है ... क्योंकि उस वक्त मुझे खुद अजीब सा लगने लगा था ... मन था हमेशा युही हाथ पकड़ कर चलता राहु तुम्हारा साथ साथ पर तुमको पता है न... मैं तो सारथी हुँ मेरा काम बस रास्ता दिखाने ही है |
वो सारे पल जो हमने साथ बिताए मैं बता नहीं सकता कितने अनमोल है वो सब मेरे लिए...मैं मानव रूप मे मानो मानव बन गया था ऐसा लगने लगा था मुझको ... उस दिन जब मैंने तुम्हें तुम्हारे श्याम संग डांस कराया था याद है न... उस समय मुझे लगने लगा मूर्ति की जगह मुझे होना चाहिए !! बस उस दिन के बाद से मुझे लगने लगा जैसे तुम श्याम में अंतर करती हो|
आसमान में जब तुम सोते हुए उसको सीने से लगा कर मुस्कुराती हो और उससे इतने प्यार भरे सवाल करती हो... तो कई बार मैं तुमको चुपके से ताक कर सोचता कि तुम मुझसे भी पूछती ये सवाल मुझे भी निहारती ... तुम्हारे हाथ का पहले निवाले का स्वाद तो मुझे मूर्ति के सहारे आता पर वो प्रेम मुझे खटकने लग था!
चलो इतना सब मैं संभालने लगा था इतने में तुम्हारे दोस्त वहाँ आगये ... तुमको पता नहीं है मुझे कैसे उन्होंने परेशान किया... मैं ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था क्योंकि वो नियति के हाथों का खेल था |
पता है तुम्हारे वो दोस्त का दोस्त मुझे तुमसे दूर रखता उस दिन जब तुम एक रसोई में साथ खाना बना रहे थे तो मुझे उस समय लग रहा था कि आज समय की गति लम्बी क्यों होगयी इतनी और ऊपर से वो दोस्त का दोस्त मुझे तुम्हारी प्रेमविवाह का पुलाव खिलाता जबरदस्ती |
मैं जब भी तुम्हारे पास आने की कोशिश करता तो वो दोस्त का दोस्त मुझे अलगकर तुम्हे उसके दोस्त के पास लाने की कला पूछता ... यहाँ वैसे ही मेरा गुस्सा लाल हो जाता था और उसी वक्त तुम किसी बात पर मुस्कुरा देती और मैं भूल जाता गुस्से का कारण |
और जब तुम्हारे दोस्त ने तुमसे दिल की बात कही थी तुम्हारे साथ मेरे दिल की धड़कन भी बढ़ गयी थी ... इसिलये मैं तुरंत आगया था तुमसे बात करने |
वो सभी सपना नहीं सच था ... तुमने भुला दिया और बिना बताए आ भी गयी थी छोड़ कर ... एक बार भी नहीं सोचा कि दोस्त पर क्या बीतेगी |
तुम मेरा प्रेम और मेरी कहानी नहीं समझ सकती ...पर मैंने ताक्षी का वादा निभाया है...और उसका काशी उसके लिए वापिस आया है ... तुमको नहीं पता जब तुम मुझसे जबरदस्ती दूर जाने का प्रयास कर करने लग गयी थी मैं बता नहीं सकता मेरा दिल दर्द करने लग गया था ... पर मैं तो भगवान हूँ मुझे कहाँ ही होता होगा न दर्द ... तुमको नहीं पता उस दिन सुबह तुमको न देख मेरी क्या हालत हुई जनता हुँ मैं यहाँ तुम्हारे पास ... यहाँ तक तुममे भी हूँ ... पर काशी को आदत हो गई थी तुम्हारी ... पर कोई नही तुम अगर मिलना नहीं चाहती हो !!
मैं कहाँ कुछ करता हूँ और कहता हूँ |
अपना ध्यान रखना ... हो सके तो भूल ही जाना मुझको ... क्योंकि शायद अब तुम मुझसे नहीं मिलना चाहती हो |
धन्यवाद
तुम्हरा पुराना मित्र
काशी
मैं रोती ही रही रात भर अगले दिन भी चुपचाप थी...समझ नहीं आ रहा था अंदर के दर्द को कैसे बाहर निकलू बार बार उनके बारे में सोच मुझे अत्यधिक पीड़ा होती |
●दिनांक - _ | _ |20_ _
अगले दिन आचनक दरवाजे की घण्टी बजे मेरा दिल भी तेजी से ढक ढक करने लगा था
... काशी आया था !! वो घर मे आया तो उस दिन दोस्त बन कर ही था पर पता नहीं कैसे सदस्य बनता चला गया और अब आज फिर वो आने को है !! मैं इस राज को दिल मे दफन किए उनके लिए खाना बना रही हूँ ताकि फिर हम साथ मे मिलकर खाए और वो हमारे साथ मुस्कुराए ||
✨❤️राधे राधे❤️✨
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Radhe Radhe 🙏🙏
May krishna bless you 💝
Hare Ram Hare Ram Hare Krishna Hare Krishna 🙏🙏