ताशी - 4 (अंतिम भाग )

 ताशी - 4 ( अंतिम भाग )



दिनांक - __|__|____


प्रिय डायरी ,
तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद अब तक के लिए साथ देने का ... तुमको लग रहा होगा कि मैं ऐसा क्यों बोल रही हूँ ? क्योंकि अब मैं एक नए जीवन की शुरुवात करने जा रही हुँ ... और वहाँ बस मैं और मेरा श्याम ही हुंगे और हमारे आगे के सारे पल के साक्षी भी हम दोनों ही रहेंगे ...ऐसा नहीं है कि मुझे अब तुम्हारी जरूरत नहीं ... पर आगे के आने वाले समय मे शायद अब शब्दो की आवश्कता ही नहीं पड़ेगी ... मुझे नहीं बताना इस दुनिया को की मैं कौन हूँ ... क्योंकि अगर ऐसा होगा तो मेरा अस्तित्व कृष्ण से दूर हो जाएगा ... मैं बस कृष्णमय होना चाहती हूँ अब ... केवल और कृष्ण ही ... कृष्ण की ... कृष्ण से ... !! |

तुमको याद है ...आखिरी बार जब मैं परेशान थी कि आखिर उससे मिलने ऊपर जाऊ या नहीं , पता है फिर क्या हुआ ?  घर वाले जब सब बाहर से आकर सो गए थे तो करीब 2-3 बजे मैं दबे पाव मैं ऊपर की ओर जाने लगी ... मेरा दिल उस वक्त भी ढक ढक कर रहा था ... मुझे नीचे इतनी बेचैनी हो रही थी मानो कोई कीमती चीज मैं चोरों के पास छोड़ आई हूँ ... मैं सीढ़ियों में हल्के हल्के कदम बढ़ा रही थी ... और मेरी आँखें केवल उनको ही ढूंढ रही थी...  मैं उनके कमरे की ओर गयी वहाँ लाइट बन्द थी मैं बिना आवाज करे अंदर आई ... अंधेरे के कारण मुझे कुछ दिख नहीं रहा था तो मैंने कोने में लगे स्विच से लाइट ऑन की ... और देखा कि बिस्तर खाली था वहाँ कोई नहीं था ... मुझे ऐसा कग रहा था उस समय जैसे किसीने मेरे शरीर पर हजारों वार एक साथ कर दिए हो ...मेरे आँखे अपने आप भर आई सर भारी सा होने लगा ... जैसे तैसे संभालते हुए मैं बाहर की ओर जाने लगी , मैंने धीरे से लाइट बन्द की और मैं आँखों से आँसू टपकाते हुए कमरे के बाहर जाने लगी... मेरा शरीर उस वक्त मुझे इतना भारी लग रहा था कि उस समय मैं कृष्ण नाम तक नहीं बोल पा रही थी ... मुझे अजीब सी चुभन महसूस हो रही थी ,जैसे तैसे कदम बढ़ रहे थे कि अचानक से मुझे किसी ने पीछे की ओर खींचा ... मैं पीछे की ओर मुड़ी और देखा वो तो वही काशी ही था , उसने एक हाथ मेरे मुँह में रखा और एक हाथ से मुझे पकड़ा हुआ था ... मैं तो बस उसको ही देखे जा रही थी ...हल्की सी रोशनी में उसकी आँखें चमक रही थी ... और मेरा दिल भी चमकने लगा |


थोड़ी देर तक मुझको देखने के बाद उसने मुझे खुद से अलग किया और बोला " तुम्हारे आँशु ने देखो मेरा हाथ गिला कर दिया !!"
मैं बस उसको ही देख रही थी... वो दूर जाने का डर अब भी मेरे मन मे था |
"इतनी रात तुम क्यों आई मेरे कमरे में ... मेरा समान चोरी करना है तुमको क्या ? "
मैं बस एकटक हो कर देख रही थी ... मेरे आँखों मे आँसू भी बहे जा रहे थे और वो बोले जा रहे थे ... मैं एक दम से उनके पैरो में गिर गयी
" कान्हा ... मत जाना अब मुझसे दूर ... प्लीज मत जाओ दूर मुझसे !! "

वो भी नीचे बैठ गया और अपने कोमल हाथों से उसने मेरे गाल पकड़ कर मेरा चेहरा ऊपर की ओर किया और बिना कुछ बोले मेरे आँसू पोछते हुए वो मूझको देखने लगे और एक दम से उन्होंने मुझे गले लगा लिया ...इस बार जैसे ही उन्होंने मुझे गले लगाया मानो एक अलग ही दुनिया मे मैं पहुँच गयी थी मुझे कभी किसी के रोने का दृश्य कभी कही विचित्र जगह का दृश्य , मुस्कुराने का दृश्य ... तरह तरह की चीजें दिख रही थी ... और मेरा दिल अजीब सा बेचैन होने लगा मानो ऐसा लग रहा था मैं कोई सपनो की दुनिया मे कैद होगयी हूँ ... मैंने झटके से खुद को उनसे दूर किया , वो मुझे देख रहस्मयी मुस्कान देकर मुस्कुराने लगे  ... और मेरे थोड़ा पास आकर कहने लगे
" दूर वो जाते है जो अलग होते है ... मैं तो हमेशा से ही साथ हुँ तुम्हारे... बस अंतर इतना है कि अभी माया का रूप लेकर आया हूँ !! "

मैंने उनके दोनों हाथों को जोर से पकड़ लिया और बोलने लगी उनसे "तो आप माया के रूप में रह लो न हमेशा मेरे साथ ऐसे ही यहाँ !!"

उन्होंने हाथ छुड़ा कर मेरे सर पर रखा और मेरे बाल सहलाते हुए कहने लगे !!
" यहाँ पर हमेशा क्या रहती है ? इस नश्वर  संसार की नश्वर माया है ... और नश्वर नियम भी !! "

"तो आप तोड़ दो सारे नियम ...!!  " मैंने उनसे कहा

" उससे क्या होगा ? नश्वर संसार तो नश्वर ही रहेगा न !! " वो मुस्कराते हुए मेरे गाल छूने लगे जो पुराने आँशु थे वो उनको पोछ रहे थे |

" आपको अच्छा लगता है क्या ऐसा करना ?? " मैंने उनका हाथ झटकते हुए बोला !!

वो बिना कुछ बोले अचानक से मेरी गोद मे लेट गए और मेरी तरफ देख कर बोले "अच्छी तो मुझे तुम लगती हो !! "फिर मुस्कुराने लगें !!

एक तो मुझे बहुत गुस्सा , डर भी लग रहा था और वो अब ऐसे प्यार से देख कर ऐसी बात बोल दिए थे कि मैं शर्माने लग गई और वो भी मुस्कुराए जारे ... समय ऐसा लग रहा था बस रुक सा गया हो ... मन कर रहा था काश ये समय खत्म न हो कभी !! उनको देखते हुए मुझे पता ही नहीं चला कब नींद आगयी और जब उठी तो देखा मैं तो अपने बिस्तर में सोई थी ... घरवालों से पूछने पर पता चला कि काशी सुबह को जल्दी निकल गया उसको जरूरी काम आगया था |


मेरा दिल फिर से टूट सा गया क्यों वो ऐसी अजीब सी मुलाकात करते है और यू चले जाते है ...समझ ही नहीं आता मुझे !! उनकी वो मूर्ति भुखार के कारण इतने दिन मुझसे थोड़ा दूर थी मैं बस उससे ही अकेले में दिल की बात कहती ... समझ नहीं आता किससे क्या कहूँ ... कृष्ण नाम से लेकर दिन तो कट रहे थे मेरे पर ये स्वास चुभ रही थी ...वो ऐसे खेल खेल कर मानो प्यास बड़ा देते है !! मेरा ध्यान केवल उनको यादों में और उनके नाम लेने में जाता |


मुझे पता नहीं चला कि कैसे दो महीने बीत गए ... या सच कहूँ मुझे एक एक दिन रात याद है ...मैं ऊपर कमरे में बैठ जाती थी जहाँ वो रुके थे ... मैं सोचती कभी की वो मौफलर में कैसे लगते हुंगे ...कभी वो कथाए याद करती जो वो काशी बन अपने बचपन की मुझे सुनाते थे ...मैं कृष्ण के विग्रह को सीने से लगाए ... उनसे बात करती वो स्पर्श उनका महसूस करती ...!! मैं नहीं बता सकती इससे ज्यादा उस अहसास को जो मुझे उस वक्त महसूस हो रहा था |


दो महीने बाद थोड़ा बहुत बाहर का वातारण ठीक हुआ था कि जरूरी काम से मुझे पुराने कालेज की पास वाली जगह जाना पड़ा ... जब मैं रास्ते मे गाड़ी में थी वो कृष्ण का विग्रह पता नहीं नींद में कहाँ गायब होगया था ... मेरा तो दिल अलग ही मानो बैठ गया हो ... मुझे समझ नही आरहा करू क्या मैं !!  जैसे तैसे संभालते हुए मैं कालेज की ओर गयी थी काम किया और कुछ पुराने दोस्त भी मिल गए थे उन लोगो का घूमने का पास में प्लान बन रहा था क्योंकि सब काफी समय बाद मिल रहे थे ... मैं तुमको बताना भूल गयी इसमें वो भी था मेरा वो दोस्त जिससे मैं पहले मिली थी... हम लोग समान लेकर आगे बढ़ रहे थे तभी मूझको ऐसा लगा काशी की आवाज है वो मुझे बुला रहा है ... पर मैं नही रुकी क्योंकि मुझे कगे भ्रम होगा मेरा पर मेरे दोस्तों ने भी बोल तब मैं पीछे मुड़ी तो देखा वो काशी ... कृष्ण ...ही थे |

अचानक से यहाँ ऐसे सबके सामने देख मैं चौंक गई थी उनको मुझे कुछ समझ ही आरहा क्या बोलु मैं तो फिर से मूर्ति बन गयी थी उनके सामने |

पता है जब मेरे दोस्त लोग मुझसे पूछ रहे थे ये कौन है तो ये अपना इंट्रोडक्शन खुद दे रहे थे पता है क्या बोले ...ये बोले कि ये मेरे सबसे खास दोस्त है और वो भी इतनी बड़ी स्माइल के साथ |

सबके सामने उनके साथ चलने में एक तो मेरे गाल लाल हो चुके थे और ये अलग ही बाते करे जा रहे थे कि ये तो मुझे बचपन से जानते है पर मुलाकात हमारी ऐसी हुई ... मैं ऐसी हु ये ऐसे है पता नहीं क्या क्या ...और मैं बस इनको तिरछी नजरो से देखी जा रही थी और कई बार हमारी आँखे भी टकरा जाती एक दूसरे को चुपके चुपके देखते हुए और फिर दोनों मुस्कुराने लगते |

जब भी मेरा वो दोस्त मुझसे कुछ बात करने की कोशिश करता तो ये बीच मे आजाते फिर अपना अलग ही खेल खेलते ... मैं बता नहीं सकती तुमको क्या क्या खेल खेले है इन्होंने ...
अच्छा चलो उनमें से एक खतरनाक वाला बतातीं हुँ ... जब हम सब होटल का रूम ले रहे थे तो ये अचानक से बीच में आगये और बोले एक मिनट मेरा और इसका रूम एक ही बुक करना ... और सब हमको घूरने लगे तो ये मेरी तरफ देख कर बोलने लगें "अरे तुमने बतया नहीं इनको हमारे बीच मे क्या है ? "
"क्या" मेरे मुँह से जोर से निकल गया !!
"फियोंसी हुँ मैं तुम्हारा और शादी से पहले तुमको जानने के लिए साथ अकेले में वक्त तो गुजरना पड़ेगा न !! "

मैं बता नहीं सकती ये बोलकर वो चाभी लेकर अंदर निकल गए और सब मेरे दोस्त मूझको ही घूर रहे थे ... मुझे हँसी भी आ रही थी और शर्म भी ... !!


मैं कमरे गयी जब तो वो महाराजा की तरह बिस्तर पर बैठे थे और मेरे आते ही बोलने लगें "फिर कब है आपकी शादी ? "

" आपको पता होगा वो !! " मैं शर्माते हुए बोली


" मुझे क्या पता मैं अब जा रहा हूँ हमेशा के लिए ... शायद अंतिम हो मुलाकात हमारी ये!!"

मुझे उनकी ये अटपटी बाते कभी समझ नहीं आती थी ... मैं उनके पैरों के पास बैठ कर बार बार ये करने का कारण पूछ रही थी |

" नियति को बदलना इतना आसान नही है पर नामुमकिन भी नहीं ... यहाँ जो तुम्हारी नियति में था वो तो मैंने बदल दिया पर अब बाकी मैं नहीं कर सकता !! "

" क्यों इतना सब घूम घूम कर बाते बनातें हो आप ? "
मैंने उनसे पूछा |

" क्योंकि सीधी बात किसी को समझ नहीं आती है ... जीव को घूमना पसंद है और घूमी ही बाते भी !! " वो मुस्कुराने लगे

"पर ? आप क्यों जा रहे हो ? और कब आओगे मत जाओ ..."

" सवालों का उत्तर थोड़ी बदलेगा अब ... जैसे तुम्हारी ये सुंदरता नहीं बदलती है " मेरे बालों में हाथ फेरते हुए मेरी आँखों मे देखते हुए वो बोले |

वो रात मेरी जिंदगी की सबसे सुंदर रात थी ... मैं उनसे सवाल करती वो बस मुस्कुराते हुए उत्तर देते गोल मटोल ... और मैं उनको देखती रहती ऐसे की मानो बस तस्वीर उतार लू मन मे अपने |



इस बार भी वो चुपचाप ही चले गए थे ... शायद उनको विदा लेना नहीं आता था इसीलिए वो ऐसा करते है ... वो विग्रह शायद उनके पास ही था वो छोड़ कर वो गए थे |

फिर कुछ समय बाद मैं भी आगयी थी वापिस घर ... मैंने घर पर ही वृंदावन जाने का मन बना लिया और वही एक नौकरी भी मिल गयी आराम से तो घर वालो को दिक्कत भी नहीं हुई भेजने में वृंदावन |


वृंदावन में प्रेवेश करते हुए मुझे वही पुराने पल याद आ रहे थे मैं आँखों मे आँसू लिए खुद को संभालते हुए आगे बढ़ रही थी ... हर गली मुझे बस उनकी याद दिला रही थी लग रहा था कि जैसे अभी वो मेरा नाम पुकारते हुए आएँगे पीछे से ... पर वो नहीं आए ...मुझे कमरा मिल चुका था ...मैं उनके विग्रह को सीने से लगाए अगले दिन भोर को मंगला आरती के बाद वहाँ के प्रसिद्ध मंदिर के बाहर खड़ी थी इतने में एक छोटा सा बालक कोई 5-8 साल का होगा वो फूलो की टोकरी लेकर मेरे पास आया और बोलने लगा कि फूल लेलो ... मन्दिर में बहुत भीड़ थी उस दिन तो मैं बाहर ही खड़ी थी देर भी हो गयी थी मूझको क्योंकि आरती अब खत्म हो चुकी थी तो मैं उसको मना करने लगी |

उन गुलाब की टोकरी में उसने हाथ डाला और गुलाबों के बीच मे से एक सफेद फूल निकाल कर मेरे कानों में लगाते हुए बोला " अपने बाँके बिहारी से कह देना ये फूल उनसे ज्यादा आप मे अच्छा लग रहा है " इतना कहकर वो भाग गया वहाँ से और मैं सुन्न हो गयी एक दम से मेरे आँखों के सामने पुराने दृश्य घूमने लगे !!
मैं खुद को संभालती उससे पहले ही मेरा सर भारी सा होने लगा ...मैंने आँखे उठा कर अपने  आसपास देखा तो पाया कि जो सारे लोगो की भीड़ थी वो सब एक एक करके कृष्ण रूप ले रहे है ... मैं पागलो की तरह चली जा रही थी लोगो को चौंकते  हुए देखते हुए ... जैसे तैसे मैं यमुना किनारे पहुँची वहाँ के पास एक पेड़ था जिसके सहारे मैं खड़ी थी वो भी कृष्ण में बदलने लगा ... मुझे यमुना जु भी कृष्ण लग रही थी ... मुझे तो ये समझ नही आ रहा था कहा कृष्ण नहीं है ...इस वक्त मैं उसी यमुना किनारे वाला जो पेड़ है जो कृष्ण रूप ले लिया है उसके नीचे बैठी ये लिख रही हूँ पर ऐसा लग रहा है मानो कृष्ण के कंधे के सहारे बैठी हुँ ... बृज की माटी मुझे उनका वो स्पर्श याद दिला रही है ... और मैं यहाँ खुद को उनमे खोती जा रही हुँ...  इससे ज्यादा शायद ही अब कुछ मैं लिख पाऊँ क्योंकि मैं अब खोना चाहती हूँ इसी बृज में कृष्ण के संग ... कृष्ण के पास |

वैसे उस अंतिम रात की अधूरी मुलाकात से चीजे अधूरी छोड़ देती पर वो अंत नहीं था ... अंत बताना तुमको जरूरी था ...क्योंकि अंत ही आरंभ है ||



★ राधिका कृष्णसखी

🙏✨❤️राधे राधे ❤️✨🙏

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