जन्माष्ठमी स्पेशल ... कृष्ण







 जन्माष्टमी भी नजदीक आ चुकी थी और मैने अभी तक कोई तैयारी नहीं कि थी ... करने का मन ही नहीं हो रहा था ... मन मे आता भी नए-नए पकवान बनाऊ पर फिर मैं रुक जाती , क्यों करू आखिर उनके लिए ये सब !? कौन है वो मेरे ... वो तो केवल ईश्वर है ना , उनसे मेरा और कैसा संबंध ? |

मन्दिर में लगे पर्दे के पीछे से वो अक्सर मुझे निहारते थे ... जब भी हवा का झोंका आता मैं मुस्कुरा देती .. तुम मुझे ऐसे क्यों देखते हो ?? ये प्रश्न कर मैं शर्मा देती !
पर आज न मुझे शर्म आ रही थी न ही चेहरे पर मुस्कुराहट ... मैं बस उन्हें पर्दे के पीछे बैठ ताक रही थी , पर्दे को उठाने का न ही मेरा मन था और न ही मेरे अंदर सामर्थ था !! हवा चलते ही मुझे पुनः उनकी एक झलक दिखी ... इस बार मुस्कुराहट की जगह आसुंओ ने लेली .. न ही वो कुछ बोले और न ही मैंने कुछ सुना !!
फिर भी इंतज़ार करते करते आँख लग गयी ... धरती की भोर तो हो चुकी थी पर मेरे मन मे अब भी रात थी अमावस्या की ...!!
दिन तो मेरा रोज की तरह काम मे बीत चुका था पर रात में फिर से मैं वही आकर खड़ी हो गयी ... पर्दे के पीछे उन्हें फिर बन कुछ कहे देख रही थी ... कहने को भाव तो काफी थे पर शब्द अब थक चुके थे !! |

मैं आज फिर वही ही सो गई ... उनका नाम मन मे पुकारते हुए क्योंकि अब होठों की शक्ति श्रीन हो चुकी थी मेरे इंतज़ार के भांति ... अचानक से रात में फोन की घण्टी बजी ... " सुन  ...तू क्या बनेगी कृष्ण ? "
मैंने कोई जवाब नहीं दिया ... "कोई नहीं मिल रहा कृष्ण बनने को , देख मेरे पास समान सारा है कल तू बस समय से आ जाना जन्माष्टमी की झांकी के लिए !! "

हम्म ... मैं बस इतना ही कह पाई थी कि फोन कट चुका था ... हिम्मत कर मैंने पर्दे को हटाया ,, मैं बिन कुछ कहे रोने लगी ... क्या कहूं उनसे समझ नहीं आ रहा था बस उनका नाम ले रही थी मन ही मन में पता नही किस आस में ... !! |

ढूंढ़ले से सपनो में तो वो आए थे पर वो सच था या नही ...ये नही पता ..., मैं फिर से उन्हें देखने लगी इस बार झूठी मुस्कान के साथ जो मेरे झूठे सपने जैसी थी !!

मुझको कृष्ण बनना था आज ... उनसे बस इतना ही प्रश्न कर पाई ... सच मे क्या मैं तुम बन जाऊंगी ?
काम और कृष्ण के विचारों को समेते-समते शाम आ चुकी थी ... मेरे कृष्ण बनने का समय , मुझे नहीं पता कि मुझे बनना चाहिए भी था या नही ..., मैं बस आगे बढ़ी जा रही थी |

" ये लो कृष्ण के पीले वस्त्र पहन लो !!"
ऐसे ही वस्त्र उनकी माँ भी तो उन्हें पहनाती होगी ना ... कितना मुश्किल रहा होगा एक दिन अचानक से ये सब छोड़ कर नई जिंदगी शुरू करना ..., अपना प्रेम छोड़ संसार का प्रेम चुनना !! उस वक्त उन्हें किसने संभाला होगा ... संभालने वाले तो यही छूट गए थे !!
" अरे ...इतना समय क्यों लगा रही हो ... तुम्हे टीका भी लगाना है अभी ... जल्दी से पहनो वस्त्र !!"

वस्त्र पहनते हुए मैं उनकी वृंदावन की लीलाओं को याद कर रही थी ... एक माता पिता को दूसरे माता पिता के लिए छोड़ना क्या आसान रहा होगा ? अपने सखी सखाओ के बिना कैसे तैयार हो गए हुंगे वो ?

टिका लगना शुरू हो चुका था ...ये तो निशानी है न उनकी भक्ति प्रेम की ... ऐसे ही कई निशानी वो धरती पर छोड़ कर चले गए थे ... उन्हें पुनः क्या दोबारा मन नहीं होता होगा वापिस इनको छूने का ... समय रोकने का ... शायद वो रोक भी लेते हुंगे ... पर संसार के लिए उन्हें चलना पड़ता है होगा आगे !! "


मैं लगभग तैयार हो चुकी थी , शीशे के सामने खुद को देख पता नहीं क्यों मुझे कुछ अधूरा सा लग रहा था ...बाकी सब तैयार होने में व्यस्त थे और मैं खुद में क्या अधूरा है ये खोजने में व्यस्त थी !!

मैंने अक्सर कहते सुना था ...हम भगवान के ही टुकड़े है ... ये जो हमारी प्राणशक्ति है ये वो ही है ... यानी उनका भाग ... जब हम उनका भाग होकर इतना कुछ महसूस करते है ... सुख और दुख को ... पीड़ा को ... खुशी को ... विरह को ... मिलन को ...
तो उन्हें भी तो ये सब महसूस होता ही होगा ... जब हम उनका भाग होकर के ये सब सहन नही कर पाते तो वो तो अपने भागो का भार अकेले कैसे उठाते हुंगे ...
हमारी पीड़ा उन्हें किस प्रकार चुभती होगी ... हम उनसे कही न कही जुड़े है ... अपना दर्द तो बांट भी लेते है उनसे पर उनके दर्द का क्या !??
उनके प्रेम के लिए थोड़ा वक्त तो निकाल ही सकती हूँ न मैं ? मैंने खुद से प्रश्न किया ...
वो क्या उत्तर देने आएंगे ?? मेरे पीछे श्याम के चित्र को देख मैं उनसे पूछने लगी ...
आज भी मैं मौन थी ...मेरी दोस्त मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बाहर की ओर ले गयी ... "तू कहाँ खोई है ,, देख आगया तेरा टाइम अब ,, सब इंतज़ार कर रहे है तेरा !! "

बाहर सब कृष्ण के नाम की जयजयकार लगा रहे थे ... मुझे उस वक्त एक विचित्र सा अहसास हो रहा था ..., कृष्ण के वस्त्रों में ... मैं जिसे बयां नहीं कर सकती !!

अब समय आगया था उनके भक्तों को भोजन परोसने का ... मैं दूर से बैठ देख रही थी सब ... मैं कृष्ण बनी थी तो सब आशीर्वाद ले रहे थे मेरा ...अचानक मेरे मन मे क्या हुआ कि मैं खाने परोसने को चल दी ...
पता नहीं पर एक गजब सा संतोष मिल रहा था ... शायद मुझे कृष्ण उत्तर देने आगये थे ...
उनकी सेवा तो बहुत लोग करते है ... पर उनकी भक्तो की सेवा ?? वो ... वो भी तो करना है ... जिन भक्तो को चिंता में वो रात दिन लगे रहते है क्यों न मैं उनकी चिंता कम करने का प्रयास करूँ ...
शायद कभी तो मैं भी बन जाऊँ उनकी मुस्कान का कारण ... वो कुछ बोले भले ही न ... बस मुस्कुरा ही दे मुझको देख ... आज भी बिन कहे वो मुझे मेरे अनेक प्रश्नो के उत्तर दे गए थे ... मेरे शरीर के श्रृंगार में बसे हुए कृष्ण के साथ साथ आज मुझे संसार कके प्रत्येक कण-कण में बसे हुए कृष्ण नही नजर आ रहे थे !!



जय श्री राधे 🙏

~ राधिका कृष्णसखी



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