कृष्ण रोग

कृष्ण रोग 



 आज पता नहीं क्यों लग रहा है कि ये कोई सपना है.... यकीन नही जो रहा अभी इस वक्त मैं वृंदावन में हूँ.... मतलब सब पता नहीं कैसे अपने आप हो गया....सफर तो मेरा उत्साह में ही बीता आखिर क्या होगा कैसे दर्शन हूंगे.... वहाँ पहुँच कर भी आनंद महसूस हो रहा था.... मुझे तो पहले लगा था कि ठाकुर बारात लेकर करेंगे स्वागत पर जब कोई न दिखा तो लगा शायद व्यस्त हूंगे....अब यही है भगवान से प्रेम करने का परिणाम.... उनके हर फैसले को ऐसे ही कुछ बहाना बनाकर दिल बहलाना पड़ता है.... अरे माफ करना अभी जो मैं लिख रही हूं ये मैं अपनी नहीं किसी और कि कहानी लिख रही हूँ....और यहाँ अलग अपना रोना लेकर बैठ गयी... तो हुआ ये की हम जब वृंदावन पहुँचे तो उस वक्त शाम हो चली थी... तो हम दर्शन कही नही कर पाए औऱ एक धर्मशाला जैसी जगह रुक गए थे... अचानक सब सो रहे थे तब रात में आंधी शुरू हो गयी.... बाहर से डरावनी आवाज के कारण मुझे नींद नही आ रही थी.... तो फोन के टोर्च जलाकर मैं बाहर निकली .... वहाँ के बंद आंगन जैसी जगह में....और काँच जी खिड़की से बाहर की ओर देखने लगी....सब सो ही गए थे .... रात के 3 बज रहे थे.... मैं कान्हा को याद करके आंधी में उनको खोज रही थी.... तभी अचानक से मुझे बाहर कोने में खड़ी रक लड़की दिखी.... धूल के कारण उसकी आँखें नही खुल पा रही थी....हालात बहुत खराब थी... फिर भी वो एकटक होकर खड़ी थी ....मानो किसी का इंतज़ार कर रही हो ...  मैंने थोड़ा सा दरवाजा खोला...और भागकर उसके पास गई.... और बिना बोले उसको अंदर ले आई खींच कर....और ला कर कुर्सी में बैठा दिया.... फिर उनसे एक के बाद एक सवाल पूछने लगी...वो बस एक तक होकर मुझे देख रही थी बिना कुछ बोले...और बिना कुछ बोले उनकी आँखों से आँसू आने लगे....




" क्या हुआ सब ठीक है....? आप चिंता न करो कान्हा जु सब ठीक कर दिंगे...!!" मैंने उनका चेहरा साफ करते हुए कहा

"जे उनके लिए तो आँसू है री.... न पोछ इन्हें.... उनका पेट मेरे आसुनं देख कर भरे अब....!!" इतना कहकर उनके और टपटप करके आँसू बहने लगें !!

"अरे ऐसा क्यों कह रही हो आप.... वो तो मुस्कान चाहते है आपकी.... और आप अभी वृंदावन में हो.... वो देखना आपसे टकरा जाएंगे....!!" बात को पलटने की कोशिश करते हुए मैंने कहा....


"टकराने के लिए बराबरी का होना जरूरी होवे ....वो तो पत्थर है न री ..... तो उनके वास्ते मैं भी पत्थर बनने की कोशिश कर रही.... वो पत्थर जिसको सुख दुख का होश नहीं... आंधी से जिसको कोनो फर्क नही....और जो केवल दूसरे पत्थर से ही टूटेगा.... और वो ही ह वो पत्थर..."

"आप उनको पत्थर क्यों कह रही ???" मैंने पूछा


"जो प्रेम का झांसा एक प्रेमी वास्ते देकर .... यहाँ अपना सब कुछ छोर झूठे सपने दिखा कर बुलावे है.... फिर खुद मुहलो में अपने दास दासियो साथ मिलकर .... हमारे संग अनजाने जैसा व्यवहार करें .... आप ही बताओ क्या दिल होवे ऐसे जन के पास ???.... हम जैसे मूर्ख से अच्छे तो वो सारी भीड़ है जो इनके पत्थर रूप के दर्शन करने आवत है....!!एक हम है मूरख जो बस सपने के दुनिया को सच मानकर यहाँ घर बार छोर आगये....!!"  आंसू की बढ़ती रफ्तार साथ वो बोले जा रही थी


" अरे आप शांत हो जाओ.... पानी लेकर आती हु मैं....!!"ये कहकर मैं पानी लेने उठी ही थी इतने में वो बोली
" सुन री.... एक बात ध्यान रखियो.... दुनिया में सब रोगों का तो इलाज मिल सके है....पर जे नन्द के पूत का प्रेम रोग का इलाज कही न मिल सके.... बच सके तो बच लेना इससे.... नहीं तो तोको न जाने क्या बना देगा.... झरना.... फूल.... पट्टी.... !!!"

आखिरी वाक्य कहते हुए वो रुक गयी फिर आँखों मे आंसू भर बोली...." जब दर्शन करें उनको जावे.... तो ज्यादा न करना बात उनसे....!!"

मैंने बस सर हिलाया और पानी लेने को अंदर चली गयी.... जब बाहर आई तो वो वहाँ नहीं थी.... बस थी तो धूल जो उनकी चरणों मे लग कर अंदर आई थी....
मेरे दिमाक में अभी भी वो ही चल रही थी...और उनकी चरणों की धूल माथे पर लगाते हुए मैं सोचने लगी..... कल अपने प्रेमी बिहारी से मिलने जाऊँ.... या भक्तो के बिहारी से मिलने जाऊँ ||

●राधिका कृष्णसखी

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