ताशी

                



                " ताशी "




जनवरी के महीने की शुरुवात के साथ-साथ हमारी सर्दियो की छुट्टियाँ भी शुरू हो चुकी थी हर बार की तरह नानी के घर जाने की तैयारी हमने शुरू कर दी | पैकिंग लगभग पूरी हो गयी थी कि तभी मुझे अचनक से वो चीज याद आई और मैं दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ भागी | मेज पर से थैला उठाकर भागते हुए कार की तरफ जाने लगी ; मम्मी मुझे देरी करते देख गुस्सा कर रही थी |


"सॉरी माँ ! देरी के लिए ... पर जिस वजह से जा रही हूं वही ही भूल गयी थी !!" कार में बैठते हुए मैं बोली |


" अरे ! ये तू और तेरा कान्हा हर बार हमें देर ही करवाता है | " माँ ने हँसते हुए उत्तर दिया ,


मुझे पता था माँ कान्हा के नाम पर कभी गुस्सा हो ही नहीं सकती थी क्योंकि ये कृष्णप्रेम मुझे उनकी ही तो देन है ! मेरे नाना जी भी कृष्णभक्त है ... और कृष्ण भी उनसे इतना प्रेम करते है कि उन्होंने उन्हें पुजारी ही रख लिया अपने मन्दिर में ; कृष्णा की ही कृपा थी कि माँ की शादी पापा से हुई ... अरे ! ये कृपा नहीं तो और क्या मेरे पिता जी के पूर्वज पूजनीय चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रहे थे , और इसी प्रकार माँ और पिता जी दोनों की तरफ से राधेश्याम की भक्ति मुझे उपहार में मिली | 

बचपन से मेरे घर मे धार्मिक माहौल रहता था , सुबह की।शुरूआत भजन से और रात में आरती के द्वारा प्रभु जी को धन्यवाद कहने से ही हमारा दिन पूरा होता |

प्यारे कृष्ण जी की आवभगत में सारे दिन घरवाले व्यस्त रहते ... उनको वो कोई कमी नही होने देते , परिवार को देखते देखते मुझे भी कृष्ण से प्रेम हो गया और वो मेरे सबसे प्यारे दोस्त यानी मेरी दुनिया बन गए | 

पता है !! कई बार तो मैं उन्हें डाँठ भी लगा देती ... पर फिर बाद में माफी भी मांगती ; जैसे ही मुझे पता चला नानी घर जाने की योजना बन रही थी , उसी वक्त मैंने कान्हा के लिए उपहार ले जाने का सोच लिया था , ठंड को देखते हुए मैने उनके लिए टोपी और साथ में उनके लिए कड़ा लेने का सोचा |

अभी वही तो लेकर आरही थी मैं अपने कमरे से ,माँ को पता था इसके बारे में तभी तो वो मुस्कुरा दी और पिता जी तो वैसे भी कान्हा और मेरे बीच कुछ कहते ही नहीं | 


कार में भजन बज रहे थे इस कारण सफर और भी सुहाना लग रहा था , पता नहीं कब मेरी आँख लग गयी फिर माँ की आवाज से नींद खुली | हम पहुँच चुके थे नानी घर ; वृंदावन के कुछ दूरी पर वो छोटा से गाँव मे था उनका घर , अक्सर ब्रज वासी आते रहते और राधे नाम की महिमा गाते ...आह !! आनन्द ही आ जाता है ... ब्रज वासियों के मुख से लीलाओ का वर्णन सुनने में , ऐसा लगता मानो उनके सामने घटी घटना का वो वरण कर रहे हो |


नाना नानी के पास जाकर मैंने उन्हें सादर पूर्वक प्रणाम किया और फिर हम गपशप और खाने पीने में लग गए | इसी तरह न जाने कैसे रात हो गई पता ही नहीं चला और हम सो गए |


सुबह ब्राह्ममुहूर्त में मेरी खटपट की आवाज से नींद खुली , नाना नानी दोनों मन्दिर के श्याम की प्रातःकालीन आरती की तैयारी करने में जुटे हुए थे | मेरा मन भी हो रहा था अपने कान्हा से मिलने का और मैं उन्हें उपहार देने के लिए भी उत्साहित थी तो जल्दी से स्नान कर नाना जी के साथ मैं भी चल दी | 

मन्दिर घर से 10 मिनट की दूरी पर था , रास्ते मे नानाजी और मैं भजन गाते गाते चल रहे थे और घर पर नानी छोटे लड्डू गोपाल को उठाने की तैयारी करने में जुटी हुई थी |  

मन्दिर आ चुका था , नानाजी मुझसे फूल लेकर आने को कहकर आरती की तैयारी में जुट गए ; मेरे हाथ मे कृष्ण जी का उपहार था उसे मैं मन्दिर की सीढ़ियों में रखकर , पास के बगीचे में फूल तोड़ने में जुट गई |


मैं श्याम को याद कर अभी फूल चुन ही रही थी कि तभी बगीचे में किसी के आने की मुझे आहत हुई , उसे नजरअंदाज कर मैं 'अच्युतम केशवं 'भजन गाते-गाते फूलो को चुनने में पुनः जुट गई | अचनक मेरी नजर एक सफेद चमचमाते हुए पुष्प पर पड़ी , पानी की ओश के कारण वो चमक रहा था ; मैं चाह कर भी खुद को रोक नहीं पाई और उसकी ओर बढ़ने लगी |

वो मुझसे थोड़ी दूरी पर था , मैं बस उसे निहारते हुए उसकी ओर चलने लगी ; मैं उसे अभी बस छूने ही वाली थी कि तब तक किसी और का हाथ तेजी से आया और उस हाथ ने उस अनोखे पुष्प को मुझसे पहले तोड़ लिया , उसके इस प्रक्रिया के दौरान हमारा हाथ आपस मे स्पर्श हो गया ...| 


" आह !! इसे मैं तोड़ने वाली थी " मैं एकाएक बोल पड़ी थी |  स्पर्श से न जाने क्यों मेरे शरीर मे तिंरगे दौड़ पड़ी थी  !! ; मैने शर्माते हुए उस हाथ के स्वामी की ओर देखा ... पता नहीं क्यों उस वक्त मुझे शर्म आ रही थी |


वो एक किशोर था , बाल लंबे थे ... ज्यादा नहीं बस कान से थोड़े नीचे ... आँखों को छू रहे थे मानो वो भी उसकी सागर जैसी आँखों का दीदार करने चाह रही हो , रंग न ज्यादा कला न गोरा न ही सवांरा ... पता नहीं !! 

वो सफेद रंग की शर्ट और उसके ऊपर आधी बाजू वाली स्वेटर पहना हुआ था , नीचे शायद काली जीन्स या लोअर था | 

मैं उसे देखते ही पीछे हट गयी , "ये फूल मैं तोड़ने वाली थी " मैंने हल्के से बोला |

"किस लिए चाहिए था तुम्हे ये !! "उसने मुझसे हल्की सी मुस्कान बिखेरते हुए पूछा |

" बाँकेबिहारी जी के लिए !!" मैं उसकी आँखों मे देखते हुए बोली ...वो पता नहीं क्यों मुझे अपनी ओर खींच रही थी | 


" तुम भी वृंदावन से हो क्या ?! " उसने चौकते हुए मुझसे पूछा | 


" नहीं तो ...क्यों क्या हुआ !"


"अरे !! तुमने बाँकेबिहारी नाम लिया ... इसीलिए मुझे लगा तुम भी वही से होगी ... मैं भी वही का ही हुँ !! वैसे क्या नाम है तुम्हारा ? "


" हमारे बिहारी जी तो हर जगह  ... वृंदावन में ही थोड़ा ही रहते है ... वैसे मेरा नाम ताक्षी है !! और आपका ..?"  मैंने भी मुस्कुराकर अपनी बात उसके सामने रख दी ;

"आप कितने भाग्यशाली हो जो वृंदावन में जन्में हो !! हमारे श्याम के पास !!" मैं उत्साहित होकर बोल पड़ी |



"इसमें क्या भाग्यशाली होने की बात है ... छोटा सा शहर ही तो है वो !! और मैं यहाँ छुटियां मनाने ही आया हूँ वैसे भी .... हाँ ... काशी नाम है मेरा  "


काशी !!?? ये कैसा नाम है ? मैंने चौकते हुए पूछा , 

जैसे तुम्हारा नाम ताक्षी है ... मेरी ओर मुस्कुराकर वो बोला !!

" अच्छा !! ....  " मैं बस इतना ही बोल पाई |


क्यों अच्छा नहीं है क्या ?? मेरी ओर कदम बढ़ाते हुए वो बोला !! ... 

अच्छा है ... मैंने आँखे नीची करली !! 



उसने फूल को मेरे बालों में अटकाते हुए कहा ... " तुम पर ये ज्यादा अच्छा लग रहा है , अपने बांकेबिहारी जी से कह देना " 


फिर मुस्कुराता हुआ वो निकल गया बगीचे से ... मैं बस उसको ही देखती जा रही थी ... वो न जाने कौन था ...,उससे मेरी मन और शरीर की आँखे नजरें ही नहीं हटा पा रही थी ... मैं बस मुस्कुराई जा रही थी उसके बारे में सोच , तभी नानाजी की आवाज़ आई मुझे बुलाने के लिए ... मैंने जल्दी जल्दी फूल तोड़े और मन्दिर की ओर जाने लगी | 


नानाजी मुझसे पूछ रहे थे कि मैंने इतना समय कहाँ लगा दिया पर मैं सिर्फ मुस्कुरा दी दोबारा उस लड़के को याद कर ... पता नही क्यों वो मेरे दिमाक से जा ही नहीं रहा था !!  आरती में भी मेरा ध्यान उस पर ही था ...,मैंने मन को समझाया भी की ये गलत है पर ये उसी तरफ खिंचा जा रहा था जहाँ इसे नहीं जाना था |


आरती बाद मैं मन्दिर की सीढ़ियों में बैठ खुद को समझाने लगी की ये गलत है .. खुद के विचारों को मुझको काबू में करना चाहिए !! 


"ताक्षी !! तुम यहाँ बैठ कर क्या कर रही हो , जाओ अपना उपहार देदो कान्हा को अपने " नानाजी सीढ़ियों से उतरते हुए बोले !!


" हाँ ... ठीक है !! "

" अरे ...उपहार तो यही ही रखा था मैंने ...!!"

" कंगन है यहाँ तो सिर्फ ...,  अरे अब ये टोपी कहाँ गयी ... "

 मैं परेशान हो चुकी थी उदास सा चेहरा लेकर ऊपर सीढ़ियों की तरफ जाने लगी जहाँ पर बिहारी जु की मूर्ति थी , नानाजी अब तक जा चुके थे |


"सॉरी कन्नू तुम्हारे लिए मैं बड़े प्यार से टोपी लेकर आई थी और देखो न जाने वो कहाँ चली गयी ... माफ करदो मुझको ... मैं अब नई टोपी लेकर आऊंगी तुम्हारे लिए  ... !!  "


"ये कंगन देखो ... इसे पहनो ना !! ...काश तुम्हे मैं इसे पहना पाती ... काश तुम सच मे होते कान्हा ... कितना आनन्द आता ... मैं तुम्हे कभी नही भूल सकती , और मुझसे ज्यादा तुमसे कोई प्यार नहीं कर सकता समझे तुम !! "


मैं मुस्कुरा दी ये कहकर और मूर्ति को कंगन पहनाने लगी | 



पीछे से नानाजी की बुलाने की आवाज़ भी आ चुकी थी तो मैं पहनाने के बाद घर की ओर चल दी उनके साथ |



मैं घर तो पहुँच गयी थी पर मन अब भी उस लड़के काशी के पास ही था |



बस मन उसे दोबारा देखने को चाह रहा था ... खैर कैसे भी मैंने अपने मन को उस दिन समझाया ... कितना अजीब था न जिसके बारे में मैंने आज पूरा दिन सोचा वो मेरे सपने में आया ही नहीं , मैं सुबह आज फिर खटपट की आवाज़ से उठी ,  दोबारा उससे मिलने की आश ने मुझे रात को ठीक से सोने ही नहीं दिया ... मैं जल्दी जल्दी तैयार होकर नानाजी से पहले ही निकल गयी मंदिर ... मेरा मतलब बगीचे की तरफ ! | 


मेरे हाथ मे फूलो की टोकरी थी , बाग के फूलों की बजाय मैं अपने मन के नए उगे पुष्प को ढूंढ रही थी ! , पर आज तो उसका कही से कही तक नामोनिशान ही नहीं था ; फिर भी मैं बस उसके आने का इंतज़ार कर रही थी न जाने पहली मुलाकात ने कैसा जादू कर दिया था ! | मेरी टोकरी तो पुष्पो से भर गई थी पर मन नहीं भर रहा था , मैं मंदिर की ओर जाने लगी ... नानाजी वहाँ पहुँच कर आरती की तैयारी कर रहे थे , मैंने उनको फूल दे दिए , वो बोले " ताक्षी देखो तो तुम्हारे कंगन कितने जच रहे है बांकेबिहारी पर !! " 

मैंने बाँकेबिहारी को देखा ... कितना अजीब है ... इतनी दूर से मैं उनसे मिलने आई और उनको ही भूल गयी ; मैं नाना जी की तरफ देख कर मुस्कुरा दी ... और मन ही मन कृष्णा से मांफी मांगी | कृष्ण ... मैं कल के लड़के की वजह से तुमको भूल गयी , नहीं कृष्ण ऐसा अब नहीं होगा अब मैं अपने मन को समझाऊंगी और उसको अपने मन से निकालूंगी | इतना अपने मन ही मन कृष्ण से कहकर मैं झूठी मुस्कान के साथ मंदिर से नीचे आगयी ... पर फिर भी मन को समझना मुश्किल हो रहा था , पता नहीं क्यों !! मैंने कितनी बार राधा नाम जाप भी किया मन को शांत करने के लिए पर उस लड़के को पता नहीं क्यों ढूंढ रहा था ... !! ये रात भी कट गई ... अगले दिन मैंने बाहर से तो नाटक किया कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है ... पर अंदर ही अंदर मैं उसको आज भी बाग में ढूंढ रही थी ! , इस बार मैंने कृष्ण से अपनी दिल की सारी बात कर दी ! की मैं उसको पसंद करने लगी हुँ ... और तुमको देखो कैसे भूलती जा रही हूँ उसकी वजह से , तुम मेरी सहायता करदो | 

पता नहीं क्यों अपना मन खाली करके मुझे काफी शांत महसूस हो रहा था , उसको ढूढ़ना तो कम नही हुआ पर अब मैं शांत थी , और ज्यादा याद नही कर रही थी ... मेरा चौथा दिन बहुत आराम से श्याम के साथ खुशी खुशी गुजर गया | 

दिन दिन गिनते गिनते पता नहीं कब एक सप्ताह बीत गया पता ही नहीं चला ...अब तो उसका दिया हुआ फूल भी सूख चुका था | 


एक हफ्ते बाद मैं जब नाना जी के साथ सुबह मंदिर आई थी आरती के लिए तब घर को वापिस जाते हुए मैंने उसको देखा ... वो काशी ही था ...भक्तो की लाइन में खड़ा ... मैं सीढ़ियों से उतरते हुए रुक गयी और उसको तिरछी निगाहों से उसको देखने लगी ... मैं खुद को उस समय रोक नहीं पा रही थी ... आखिरकार हिम्मत कर मैं उसके सामने की ओर आगयी ...फिर से उसकी उन गहरी आँखों में देखने लगी ... उसकी आँखें भी टकराई मेरी आँखों से ... उस पल लग रहा था मानो ये समय ही रुक जाए !!



मन मे कई सवाल आ रहे थे , काफी बाते भी थी पर शब्द मेरे सारे गायब हो चुके थे | मैं चुपचाप बस देख रही थी उसको कोने से और वो भी मुझको तिरछी नजरो से लाइन में खड़ा देखा जा रहा था | 


थोड़ी देर बाद जब वो मंदिर में चला गया तो मुझे भी दिखना बन्द हो गया मैं चुपचाप सीढ़ियों में जाकर बैठ गयी ... पता नहीं क्यों पर मेरे दिमाक में उसकी वही मुझको देखती निगाहे ही छाई हुई थी , अचानक से पीछे मुझे कान के पास किसी के फुसफुसाने की आवाज आई ... मेरे शरीर थम सा गया था जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा ... क्योंकि ये वही था... काशी |



"तुम यहाँ ...?" मैंने चौंकते हुए बोला


"क्यों तुम मुझे बुला नही रही थी क्या ??" वो मुस्कराते हुए बोला 


मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था ये सुन कर और तेज हो गया ... मैं डर सी गयी थी ...!! 


"नहीं तो !!" मैंने झूठी मुस्कान से साथ जवाब दिया | 


" शब्द झूठे हो सकते है पर आँखे नही !! " मेरी आँखों मे देखते हुए वो बोला | 



"फालतू बात मत करो तुम ... वो ... तो ... मैं रोज आती हूँ मंदिर !! " मैंने मुँह फेरते हुए कहा 



"अच्छा जी ... तो आप मंदिर क्या करने आती है ?? जरा बताना ?? "


"क्या करने आती हो से क्या मतलब है तुम्हरा  ... भगवान के लिए आती हु " मैंने हल्के से गुस्से से उसकी तरफ देखा |


"पर देख तो तुम मुझे रही थी !! " ये कहकर वो मुस्कुराने लगा |



"ओ... ऐसा कुछ नहीं है ... वो तो बस तुम मुझे जाने पहचाने लगे तो देख रही हूँगी !! समझे  " 

ये बोल मैं उठ गई ..."अच्छा मुझे अभी काम है मैं जाती हूँ ... " मैं हड़बड़ा कर जाने लगी |




"अरे सुनो तो ....!! " उसने पीछे से इतना बोला ही था कि मेरा दिल रुक सा गया , मैं वही मूर्ति की तरह रुक गयी |


वो पीछे से आया और अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला ..."लो ... ये प्रशाद तो लेती जाओ ... जिस भगवान से मिलने आई थी उनका ही दिया है  "

मैंने चुपचाप से हाथ आगे किया और प्रशाद लिया , मैं फिर से बढ़ने लगी आगे की ओर ...इतने में वो फिर से बोल पड़ा |


"क्यों कैसा लगा वो फूल तुम्हारे बालों में सजा तुम्हारे बिहारी जी को !! "



मैंने बस उसको मुस्करा कर देखा और मैं आगे बढ़ गयी बढ़ती हुई धड़कनों के साथ |





घर पहुँच मैंने दरवाजा बंद किया और डायरी में बंद जिए उस दिन हमारी पहली मुलाकात में फूल को मैं निहारने लगी ...पता नही क्यों मैं मुस्कुराए जा रही थी ... उसकी वो आँखे ... वो आवाज मुझे तो बस वही याद आ रहा था ,मन मचल रहा था उससे मिलने के लिए ...मैं भाग कर खिड़की के पास गई और पता नहीं क्यों उसका इंतजार करने लगी ये पता होते भी की वो नहीं ही आएगा |



शायद गो मुझे अब अच्छा लगने लगा था ... ये सोच मैं मुस्कराने लगी और कान्हा से उससे एक बार फिर से मिलाने की जिद करने लगी |



रात होने को थी पर मुझे नींद नहीं आ रही थी ...मैं बार बार वो काशी नाम के लड़के की कल्पना करती ,  कैसे वो मुझे मिलेगा , हमारी क्या बात होगी ... मेरा समय ऐसे ही बीत रहा था और नींद कब आगयी पता ही नहीं चला | 


मैं सुबह जल्दी उठ गई क्योंकि मुझे रात भर केवल उसकी याद आरही थी मैं तैयार होने लगी थोड़ा बहुत मेकअप भी किया और मन्दिर की ओर चल दी उससे मिलने के लिये |



मैं मन्दिर की ओर तो चल रही थी पर ध्यान मेरा काशी में ही था , मेरा मन बार बार बोल रहा था कि वो जरूर आएगा |


मैंने मन्दिर के गर्भ गृह में अभी प्रवेश किया ही था तभी मूझे मन्दिर के घण्टे की आवाज आई टन.... मेरा हृदय भी बजने लगा... मैं पीछे मुड़ी ... वो ही था !! 


वो फिर से उसी तरह मेरी आँखों मे देखने लगा ...  पता नहीं क्यों मुझे घबराहट होने लगी थी ... मुझे देख वो मुस्करा दिया और आगे बढ़ने लगा मन्दिर की ओर , 

मैंने भी पूजा करी और नाना जी की मदद करने लगी ... जब अंदर आने की उसकी बरी आई मेरा दिल फिर से धक धक करने लगा ...मैं चुपचाप अपना काम कर रही थी मैंने उससे आँखे फेर ली मैं उसकी तरफ देखना तो चाहती थी पर देख नहीं पा रही थी | 



वो मेरे नाना जी के पास आकर कुछ बात करने लगा ... मैं सुन नहीं पाई भीड़ की आवाज के कारण ... और थोड़ी देर बाद वो चला गया ... मैं बस उसको ही ताकती राह गयी | 


मेरा उससे मिलने का बहुत मन हो रहा था पर हर बार हमारी मुलाकात अधूरी सी ही रह जाती थी ... मैं दुखी मन से कृष्ण से उससे मिलने की प्राथना करने लगी ;मुझे पता ही नहीं चला कब मेरा सारा दिन ही निकल गया | 



अगले दिन जब मैं उससे मिलने की आस में मन्दिर निकली वो मुझे नहीं दिखा ... दुखी मन से मैं बाग से फूल लेने निकल गयी ... वहाँ मुझे काशी फूलो की टोकरी के साथ दिखा ... उसके साथ मे कोई लड़की भी थी | मुझे बहुत जलन हो रही थी दोनों को साथ देख ...मन तो बहुत था काशी से बात करने का पर गुस्से में मैं पीछे छिप गयी और घर की ओर भागने लगी | 


मेरा मन बहुत रोने का कर रहा था मैं बता नहीं सकती उस वक्त मुझे कैसा लग रहा था ... दो दिन तक मैं मन्दिर नहीं गयी मुझे काशी से नाराजगी थी पर पता नहीं किस चीज की ... तीसरे दिन मैं मन्दिर गयी और वो भी काशी को देखने क्योंकि भले ही मेरा दिल टूट गया हो पर आँखे अभी भी बेकरार थी मिलने को उससे |


मन्दिर में मैं भरे हुए मन से जा रही थी ...मैंने देखा वो मन्दिर की सफाई कर रहा है ; पता नहीं कहाँ से पर उसको देख चेहरे में मुस्कान अपने आप आ गयी... मैं हल्के हल्के उसकी ओर बड़ी ... पर उससे कुछ भी कहने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी पर फिर भी मैन उससे बात करने की फिराक में पूछा |


"क्यों आगये आप बिहारी जी से मिलने ? "


"क्यों आप नहीं आई है क्या यहाँ उन्ही से मिलने !!" उसने मुस्करा कर मुझसे ही  प्रश्न किया |


"हाँ... मैं उन्हीं से तो मिलने ही आऊंगी !!  "


"हाँ मैं तो भूल ही गया था ... लोग मन्दिर में भगवान से ही मिलने आते है !!" ये कहकर उसने बड़ी सी मुस्कान दी और सफाई के काम में लग गया | 



मुझे समझ ही नहीं आ रहा था क्या ही बोलू उसको ... हल्के से फिर मैंने कहा ..."तो इधर सफाई क्यों कर रहे हो ?"


"बिहारी जी गन्दी सीढ़ियों से तुमको आते हुए क्या अब अच्छे लगेंगे ?? "


वो मुझको हर बात का उल्टा ही जवाब दिया जा रहा था मैंने फिर उससे कुछ नहीं कहा मैं अंदर नाना जी के पास चली गयी | 



"नाना जी वो लड़का कौन है सीढ़ियों पर ?"


"वो आया है यहाँ समय दान करने... सुनो... उसको काम सीखाने में जरा मदद कर देना तुम मुझे यज्ञ की तैयारी करनी है अभी !! "


इतना बोलकर वो वापिस काम मे लग गए और मैं खुशी से उछल गयी |


मैं बाहर जा कर उसको कोने से निहारने लगी ... इतने में नाना जी ने मुझे किसी काम से घर भेज दिया और मुझे जाना पड़ा ... पर मेरे चेहरे से मुस्कान जाने का नाम ही नहीं ले रही थी |



घरपर मेहमान आए थे तो मैं दोबारा उस दिन मन्दिर नहीं जा पाई थी ... मुझे तो बस अब कल उससे ही मिलने का इंतज़ार था मन मे बार बार ये आ रहा था न जाने कल क्या होगा |


मैं अगले दिन नाना जी से पहले ही चली गयी मन्दिर कि ओर और पहले ही फूल तोड़ लाई फिर जाकर सीढ़ियों के पास बैठ गयी उसके इंतज़ार में ... जब वो आया तो मैंने हाव भाव से जाहिर नही होने दीया मैं उसका इंतजार कर रही थी मैं फूलो की माला बनाने में लग गयी , वो आया उसने झाड़ू लगाई बिना बोले और थोड़ी देर बाद वो चला गया | 





उसको जाते देख मुझको बहुत बुरा लग रहा था मैं मन मे सोच रही थी ... कैसा है ये एक बार क्या मेरी ओर देख भी नही सकता | 

उस दिन बेमन से मैंने काम किया और फिर अगले दिन मैं पहुँच गयी मन्दिर ... अंदर गुस्सा तो था पर उससे मिलना भी था मुझको ... आज भी वो आया अपना काम किया उसने और चुपचाप चला गया | 



मैं भी अकड़ में थी क्यों रोकू उसको भला ये सोच मैं सारा दिन चिड़चिड़ी रही और उसको याद करने लगी | अब अगले दिन मन्दिर की समिति ने गांव के बच्चों के साथ मिलकर रामायण का छोटा सा नाटक रूप में चित्रण करने का कार्यक्रम रचाने का फैसला लिया जो करीब 3 दिन चलता ... मैं बहुत उत्साहित थी क्योंकि मुझे हमेशा से हिस्सा बनना था रामायण का श्याम से जुड़ी हर चीज का ... मैंने माता सीता बनने की मांग रखी जो कि सबने मान ली असानी से क्योंकि उस वक्त गांव में मैं ही बड़ी लड़की थी बाकि बच्चों से ...अब बात थी राम कौन बनेगा ... हम लोगों को गंभीर और तेजवान से चेहरे की तलाश थी तो उस दिन थोड़े बहुत किरदार बाँटने में और राम जी मे बारे में सोचने में निकल गया |


सुबह सुबह हमने मन्दिर पर मीटिंग बुलाने का तय किया था क्योंकि आज शाम से प्रैक्टिस शुरू करनी थी |सुबह सुबह मैं पहुँच गयी मन मे काशी से मिलने की भी ख्वाईश थी ... उसको देखे बैगर मेरा दिन नही जाता था | 


मन्दिर मे बैठ हम बात कर ही रहे रहे थे तभी काशी झाड़ू लगाने को आया मैं तिरछी नजरो से उसको ताके जा रही थी ... मन बोल रहा था एक बार बोलू ये कैसा रहेगा राम पर नहीं बोल पाई मैं तभी किसी एक नए काशी को टोकते हुए पूछा |

"सुनो राम बनोगे क्या ? "

"राम .... मतलब ??!!"

"वो हम रामायण कर रहे है उसके लिए तुम सही लग रहे हो हमको ...!! "

"हाँ ... कोशिश कर सकता हूँ !! "

"ठीक है आज दिन में 2 बजे मिलना यही पर "

"हाँ ..."

ये बोल कर वो काम मे लग गया वापिस और थोड़ी देर बाद चला गया वहाँ से | 



मैं मन ही मन बहुत खुश थी आखिर उससे मिलने की अब एक और वजह जो मिल गयी थी मुझको ...शाम को सज धज कर मैं पहुँची ... वहाँ वो पहले से आया था वही लड़की के साथ जिसके साथ मुझे पहले भी दिखा था ... ये देख पता नहीं क्यों मेरा मुँह उतर गया था | 


जब सब आगये तो काशी ने लड़की के बारे में बताया कि उसकी वो पड़ोसी है जो कि शहर से आई है छुट्टियों पर यहाँ ... उसको भी लेना था इसमें भाग ... जब सबको रोल मिल रहे थे तो उसको मेरी बहन बना दिया गया ...काशी और वो कुछ ज्यादा ही पास रहते मुझे दोनों को साथ बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था | 


कल से प्रैक्टिस शुरू होगी बोलकर मीटिंग रद होगयी ...मैं घर की ओर जाने लगी तभी वो लड़की मुझे रोक कर बोली | 


"सुनो आप पुजारी जी के परिवार से हो न... देखा है मैंने आपको !! "

"जी ..."मैंने ये बोलकर हल्का सा मुस्कराया |

"ये काशी भी वही समय दान कर रहा है जरा इसका ख्याल रखना !! " ये बोलकर वो हँसने लगी | 

काशी इतने में बोल पड़ा ... 

"ख्याल रखने की जरूरत मुझे नही तुमको है जाओ आराम करो ... !! "

"अरे ये कुछ भी बोलता है मुझे बस थोड़ा भुखार ही तो है !! "

"यहाँ आने की क्या जरूरत थी जब भुखार थोड़ा था अब बढ़ जाएगा न ...!! " काशी चिंता के लहजे में बोला | 


"तुम चुप ही रहो ...घर जा रही हूँ मैं कर लुंगी तब आराम !! "


"मेरे नाना जी के पास एक जड़ी बूटी है ...ले आती हूँ मैं तुम लोग इंतज़ार करना !! " मैंने बोला 



" अरे नहीं नहीं जरूरत नही है इसकी ... "वो मना करते हुए बोली | 


"रिया ...तुम अभी जाओ घर मैं ले आऊंगा आराम करो तुम !!! "


थोड़ी देर न नुकर करने के बाद वो चली गयी ...और अब बचे मैं और काशी ही !!! 


मुझे बहुत शर्म आ रही थी और घबराहट भी हो रही थी अकेले उसके साथ | 



कुछ देर हमारे बीच बिल्कुल सन्नटा रहा फिर मैंने हिम्मत कर बात करनी शुरू की ...."दवाई को पानी के साथ ही लेना है !! "

"ठीक है मैं बता दूंगा !!"


मुझे समझ नहीं आरहा था आगे क्या कहूँ मैं...फिर वो ही बोल पड़ा ..." तुम यही ही रहती हो क्या ? " 


"नहीं नानी घर है मेरा यहाँ ...!!!"


"तो यहाँ सिर्फ अपने नाना नानी से ही आई हो क्या मिलने ? "


"हाँ ... !!" मैंने हल्के से उत्तर दिया ... मेरा हृदय कॉप रहा रहा था उस समय | 


"तो बांकेबिहारी कुछ नही लगते है क्या तुम्हारे ?"


"सब कुछ लगते है वो मेरे ..."



"उनसे नहीं आई थी मिलने ?"


"उनसे भी आई हूं ... "



"यहीं ही है न पंडित जी का घर ... तुम दवाई लेकर आओ मैं यही इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारा !!"


मैं चुपचाप अंदर चली गयी दवाई लेने ... इतना मुस्करा रही थी मैं अंदर ही अंदर बता नही सकती ... 

जल्दी जल्दी दवाई ली मैंने ... थोड़े बहुत बाल सही किए ... काजल लगाया ... बिंदी लगाई ...और बाहर चली गयी उससे मिलने दोबारा बाहर | 



वो मुझे आता देख मुस्कुरा रहा था ...मैंने उसे आँखे नीची करके दवाई दी ...सच कहूँ तो उसकी उन गहरी आँखों मे देखने की हिम्मत नहीं थी मेरी ... बिना कुछ बोले वो भी चला गया वहाँ से मुस्कुराता हुआ |

मैं बस उसको देखती जा रही थी वही खड़ी हुई मन तो हो रहा था वक्त को रोक लू और दौड़ कर चली जाऊ उसके पास |



मेरा तो उसके आज इतने पास रहने से मानो दिन सा बन गया हो ... अब तो बस मुझे उससे मिलने का ही इंतज़ार रहता ऊपर से वो राम बन रहा था और मैं सीता तो मुझे अब उसका साथ और भा रहा था ... उसकी दोस्त ने आना बंद कर दिया था उसके साथ क्योंकि उसकी तबियत ठीक नहीं थी सच बताऊ मुझे उस समय ये सुन कर अच्छा लग रहा था क्योंकि मुझे किसी और का उससे बात करना पसंद नहीं था और एक वो है जो मुझसे भी ज्यादा नहीं बोलता था | 

हम साठ में तो समय गुजराते पर वो मुस्कराता रहता ज्यादतर तो | 




जल्दी रामायण का समय भी आगया था और उसको श्रीराम के वेश भूषा में देख सच कहूँ मेरी दिल की धड़कन मानो रुक गयी थी मैं बता नही सकती वो कितना सुंदर लग रहा था ऊपर से उसकी वो मुस्कान ....आह !!!! मेरे दिल की धड़कन आज भी बड़ा देती है मैं भूल नहीं सकती उसके उस चेहरे को |


सब कुछ अच्छे से होगया था सम्पन्न मुझे बेहद खुशी थी ... सबको पसंद भी आई थी जब समापन के बाद हमने अगले दिन छोटी सी पार्टी रखी थी तो सच बताऊ मेरा उससे उस दिन काफी कुछ बोलने का मन हो रहा था पर वो था कुछ बोलता ही नहीं... शुरू शुरू में तो इतनी बकवास करता था और अब बस मुस्कुराता रहता पर हमारे बीच की यह चुप्पी भी मुझे पसंद थी मैं रात दिन बस उसके साथ रहने की कल्पना करती |


हाँ ...तो !! उस दिन शाम हो चली थी तब मैंने एक दोस्त की साइकल में उसको घर छोड़ने का बोला ... सच बताऊ बड़ी हिम्मत से बोला था मेरा दिल कांप रहा था बोलते हुए ... वो मान गया ... उसने मुझे पीछे बैठने को बोला ... मैं बैठ गयी |


"तुम आते हुए ले आना चलाकर अभी पीछे आजाओ !!"


"ठीक है ..." मेरे हाथ कांप रहे थे उसके पीछे बैठने में ... मैंने उसके कंधे में हाथ रखते हुए पीछे बैठ गयी ...वो धीरे धीरे चलाने लगा... वो वक्त स्वर्ग से भी सुंदर प्रतीत हो रहा था मुझको ऐसा लग रहा था आज संसार का सुख मिल गया हो सारा ... जिस पल की मैं इतने समय से कल्पना कर रही थी आज वो मेरे साथ हो रही थी | 



उसकी स्वेटर का वो कोमल स्पर्श ने मेरे शरीर मे तरंग से पैदा कर दी थी ... मैं तो अलग ही दुनिया मे खो गयी थी... हमारे बीच खामोशी तो थी पर फिर भी मैं उससे ढेर सारी बाते कर रही थी मन ही मन ... मेरा ध्यान तब अचानक से भंग हुआ जब बारिश की बूंदें मुझ पर गिरना शुरू हो गयी ... उसने साइकल रोकी और हम एक छप्पर के नीचे आगये | 



बाहर बारिश और इधर हम लोग साथ ... अहा!!!! ये एक दम सही मौका था ... मैं उससे थोड़ा दूर खड़ी थी पर मुझसे अब ये दूरी ज्यादा लग रही थी मेरा मन उसका हाथ पकड़ने का हो रहा था ... मैं सब कुछ सोच ही रही थी कि इतने में वो ही मेरे पास आया और अपने पास से मफलर जैसा कुछ निकाल कर बोला ... ये लो इससे सिर ढक लो ठंड न लग जाए तुमको ... उसने मफलर मेरे गर्दन में डाल दी ... मैंने हल्के से थैंक यू बोला ...मुझे कुछ समझ नही आरहा था क्या बोलू इतने में वो ही बोल पड़ा... " ये बेमौसम बरसात भी न!!... चलो हल्की होगयी चलते है अब "


उसने एक हाथ से साइकल पकड़ी और आगे की ओर चल पड़ा ... अब मुझसे और नही रहा गया मैंने पीछे से ही उसको रोक कर बोला सुनो ... 


इतने में वो पीछे मुड़ा और मैं अचानक से उसके गले जाकर मिल गयी "मैं तुमको पसंद करने लगी हूँ.... काशी ...."


थोड़ी देर तक हमारे बीच एक सन्नाटा रहा ...और अचानक से उसने मुझे पीछे की ओर धकेला ..." तुमको पता भी क्या बोल रही हो तुम !!" 



मैंने आश्चर्य की दृष्टि से उसकी ओर देखा ... "हाँ सच बोल रही हूँ मैं !!" 


"मैं पर ऐसा कुछ नही करता तुमको पसन्द... !!"



मेरी आवाज और शरीर कांप रहा था ... जो बारिश कुछ समय पहले मुझे सुंदर प्रतीत हो रही थी अब लग रही थी मानो मेरे साथ ही रो रही हो |


"तुम क्यों मेरी ये टोपी फिर संभाल कर रखते हो!!" मैंने रोती हुई आवाज में कहा उस समय मुझे नहीं पता मैं क्या बोल रही थी | 



"क्योंकि मुझे ये टोपी पसंद आई बस इसीलिए ... मैंने कभी तुमको उस नजर से देखा ही नहीं !! "



"तुमको क्या मैं पसंद नही? "मैंने पूछा उसकी आँखों मे देख |



" तुमको मैं पसंद करके क्या ही करू जब तुम पर मैं भरोसा ही रही कर सकता !! " उसने हल्की सी गम्भीर स्वर में कहा


"क्या मतलब  तुम्हारा... क्या किया है मैंने ऐसा !!" उसके ये शब्द मुझे पत्थर से कठोर प्रतीत हो रहे थे |



" तुम बस नाटक करती हो ये सब !! " उसकी आवाज कठोर लग रही थी मुझको !!



"तुम क्या बोल रहे हो ये सब..." मेरा सिर फटा जा रहा था ये सब सुन कर ...


" तुमको याद है न... पहले जब मिले थे तो तुम पूरा दिन अपने बांकेबिहारी का नाम लेती थी और आज कुछ समय से तुमने तो उनको देखा भी नहीं है ... मैं रोज आता हूँ मन्दिर झाड़ू लगाने तुम बस बाहर से चली जाती हो... जो बिहारी जी से रिश्ता नहीं निभा सकता वो मुझसे क्या ही निभाएगा !! "


इतना बोल वो मेरे पास आया और उसने मेरी आँखों मे देखा 

'' ताक्षी तुम केवल झूठ बोलती हो !! आज तुम मुझे प्यार करती हो कल किसी और से करोगी जो मुझसे सुंदर होगा ... पहले ये बताओ तुम कितना ही जानती हो मेरे बारे में ... तुमको तो मेरे माँ बाप का नाम तक नहीं पता होगा ... और सपने तुम इतने बड़े देखती हो !! ... मैं चला जाऊंगा अब अकेले और तुम भी घर जाओ..."


वो चला गया इतना बोल कर ...उसकी वो आवाज और शब्द मेरे कानो में गूंज रहे थे उस पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था ... जो कुछ समय पहले मेरे ह्रदय को शीतलता प्रदान कर रहा था आज वही ज्वाला उबाल रहा था |




मैं जोर से साइकिल के पैदल मारते हुए मन्दिर की ओर गयी ... और कृष्ण की मूर्ति के सामने गुस्से से खड़ी हो गयी ... मुझे बस उसकी वो आवाज सुनाई दे रही थी ... वो कैसे मेरे बारे में ऐसा बोल सकता है !!! मैं यही सोच रही थी बार बार ...


"कृष्ण वो खुद को क्या समझता है ...!! उसको क्या पता मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ तभी तो ये कंगन भी पहनाए है तुमको ... "इतना बोलकर मैंने वो कंगन उठाया वहाँ से और चुपचाप मैं चल दी घर की ओर ... मैंने रात को किसी से कुछ नही बोला ... सुबह मैं चुपचाप चल दी मन्दिर की ओर ... जब काशी वहाँ आया झाड़ू लगाने तो मैंने वो कंगन उसके बैग में डाल दिए ; फिर मैं खुद घर चली गयी और नानाजी जी के साथ अभी सुबह पहली बार मन्दिर में आने का नाटक करने लगीं | 



नाना जी अंदर गए और देखा वहाँ कंगन नही है तो उन्होने मुझे बुलाकर पूछा पहले तो मैंने नाटक किया कि मुझे नहीं पता पर फिर मैंने नाना जी से बोला कि ये काशी आया है न सेवा देने उससे पूछ लो एक बार ... नाना जी उससे पूछने नीचे चले गए ... वो उससे पूछ ही रहे थे कि इतने में मैं चिल्ला पड़ी अरे नाना जी इसके बैग में से ये चमक रहा है कुछ !! जब फिर मैंने ही बैग से कंगन निकाल कर उनके आगे कर दिए ... काशी आश्चर्य होकर मेरी ओर देख रहा था |


"पंडित जी मुझे नहीं पता ये यहाँ कैसे आए !!!"


"बस मुझे कुछ नहीं सुनना है ... तुमको हमने विश्वास करके यहाँ रखा और तुमने ... ये सब किया भगवान के घर चोरी पता है न कितना बड़ा पाप है ..."



"पर मैंने तो ...."


"चोरी भी और झूठ भी... निकल जाओ यहाँ से हमेशा के लिए मैं नहीं चाहता कोई तमाशा बने तुम्हारा ... याद रखना ठाकुर जी की नजर से तुम बच नहीं सकते ...!!गलती मेरी ही थी जो तुम ओर भरोसा किया बिना पता किये तुम्हारे बारे में"


इतना बोलकर वो मन्दिर के अंदर चले गए ... काशी पीछे मुड़ा उसने मेरी ओर देखा और एक रहस्यमयी मुस्कान दी ... "अब तो बड़े खुश कर दिए हूँगे न तुमने बिहारी जु को !!"

बैग उठा कर वो चला गया वहाँ से ... मेरी आँखें भर आईं थी ...अरे ये क्या कर दिया मैंने ... उसके शब्द और अपनी गलती मेरे आँखों के सामने आ रहे थे ... मेरे आँशु रुक नहीं पा रहे थे ... मैं भाग कर घर चली गयी कृष्ण के सामने जाने की हिम्मत नही थी मेरी ... मैं अब और वहाँ नहीं रुक सकती थी मैं बहाना बनाकर अगले दिन ही वहाँ से निकल गयी ... मैं चुप थी ... समझ नहीं आ रहा था अब किस से क्या बोलु ..., कृष्ण से नजरे नहीं मिला सकती थी मांफी भी किस मुँह से मांगू समझ नहीं आ रहा था | 



मैं उस समय के बाद फिर कभी वहाँ वापिस नही गयी मेरी हिम्मत नही हूई जाने की... कृष्ण और मेरे बीच अब एक दीवार आगयी थी ग्लिनी की ... मैं नही देख पा रही थी उनके नैनों की ओर ... रात दिन बस मैं रोती रहती और मांफी मांगती | 

समय बिता जा रहा था और मैं प्यार को समझ पा रही थी ... रह रह कर मुझे काशी की एक एक बात समझ आ रही थी सही ही कह रहा था वो तो ... पागल तो मैं थी जो उसकी बातों को नहीं समझी ... मैं रोती रहती कृष्ण को याद कर हर वक्त उनसे मांफी मांगती मुझे बस वही सब बार बार याद आता | 


मैं कृष्ण की सेवा करती रोज और साथ रोज मांगती मांफी पर अब भी कृष्ण के और पास जाने की हिम्मत नहीं होती मेरी ... डर लगता मुझको क्या वो मुझे अपनाएंगे |



6 साल बाद नाना जी एक दिन अचानक मुझे अपने पास बुलाने लगे उन्होंने कहा कि एक जरूरी काम है ... मेरी हिम्मत तो नहीं थी जाने की वहाँ वापिस ... पर फिर भी मैं चली गयी ... मैं बता नहीं सकती मुझे कैसा महसूस हो रहा था बार बार सब आँखों के सामने आ रहा था |


खैर मैं जैसे तैसे पहुँच गयी वहाँ नाना जी कुछ समय बाद मुझे अकेले में ले गए और बताने लगे ... की वो अपने कुछ शिष्यों को कुण्डली बनाना  और देखना बता रहे थे , अभ्यास के लिए पुरानी कुण्डली उन्होंने निकाल रखी थी उन्होंने तभी उन्होंने गौर किया कि काशी जिसने उस घटना के एक दिन पहले ही अपनी कुंडली बनाने को दी थी वो आज उन्होंने बनाई है क्योंकि उस समय उन्होंने नहीं बनाई थी ...और आश्चर्य इस बात का है कि वो कुंडली उसकी और कृष्ण की लगभग क्या पूरी ही एक सी है उनको भी पहले यकीन नहीं हुआ था पर हर बार यही ही हो रहा है जब भी वो देख रहे कुंडली को तो | 



"क्या पता ये ठाकुर जी का चमत्कार था कोई या इत्तफाक ... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था तो सोचा तुमको बता दु ... अगर वो बिहारी जी थे तो है राधे रानी मांफ करदे मेरेको ...मैं पापी हुँ जो उनको नहीं नहीं पहचान पाया ..." इतना बोलते ही मेरे नाना जी की आँखे भर गई और वो बाहर की ओर चल दिये | 



मैं चुप थी ...बिस्तर पर चुपचाप लेट गयी ... मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या कहूँ मैं ...क्या करूँ मैं... जब सब सो गए तो मेरी नींद गायब थी... मेरा हृदय फटा जा रहा था ... चुपचाप मैं मन्दिर की ओर गयीं ... आज सामने वही सीढ़ी वही मंदिर देख मर्रा ह्रदय पुनः रो पड़ा... मैं अंदर गयी और ... कृष्ण के चरणों मे जा गिरी...,' कैसे देखु तेरे नैनों में श्याम... मेरे हाथों ये क्या हो गया ... तू ही था वो क्या ... !! "



पहले ग्लिणी की दीवार काशी की वजह से थी पर आज जब काशी और वो एक ही है तो सब मिट चुका था मैं उनकी की चरणों मे गिर उनसे मांफी मांगे जा रही थी बेसुध होकर !! 

मुझे नहीं पता मुझे वहाँ कितना समय हो चुका था ... फिर से वही आवाज सुनाई दी ... मैंने ऊपर देखा सिर उठा कर... काशी खड़ा था मेरी वही टोपी पहने ...!! 


"श्याम आप !!! काशी ही हो " मैं रोने लगी 


"तुमने आखिर पहचान ही लिया मुझे !! " वो वही मनमोहक मुस्कान के मुस्कुराने लगे और अपने कोमल हाथों से उन्होंने मुझे उठाया ! ; 


"मुझे माफ़ कर दो !! श्याम .... "मैं फिर पैर पड़ गयी उनके 



वो मेरे पास ही आकर नीचे बैठ गए और बोलने लगे 


"तुमको पता है  इस दिन की मुझे कबसे प्रतीक्षा थी ... तुमसे मैंने पूर्व में वादा लिया था मनुष्य रूप में मिलने का ... पर जब मैं यहाँ आया तो तुम मनुष्य रूप में ही इटना खो गयी कि अपने श्याम को ही भूल गयी !! वो फूल जब मैंने पहली बार तुमको दिया था काशी के रूप में जब तुमने संभाल के किताब में रखा था तो मुझको बहुत अच्छा लगा था ... पर जब धीरे धीरे तुम मुझे भूल कर काशी को याद करने लगी तो मैं हैरान था कि तुम मेरे पास होकर भी इतनी दूर हो ... मुझे पीड़ा भी होती कब तुम्हारा सारा समय और प्रेम काशी को मिलने लगा ...ये मनुष्यों की माया सच मे कमाल की हैं न... खैर मैंने तो अपना पूर्व का वचन निभाया और तुमसे मनुष्य रूप में मिला... तो फिर अब तुम क्या पुरा जीवन इस मनुष्य रूप के साथ बिताना नहीं चाहोगी जब तुमको सब सच पता ही है मैं कौन हूँ ... पहले तो तुम नही जानती थी मुझको पर अब तो जानती हो न ताक्षी ...!!" वो अपनी जादुई मुस्कान के साथ बोले |



मेरे हृदय के भीतर छिपी आत्मा ने उन्हें उत्तर दिया

"आपको क्या लगता है ये खेल यही हो जाएगा समाप्त क्या ... आप अभी अगर मुझे मिलते भी हो मनुष्य रूप में तो मुझे यही सब याद आएगा और मैं प्रेम भक्ति में खुद उलझ जाऊँगी वही आपको मौका मिल जाएगा एक नया खेल रचने का ... जिस प्रकार अपने अपनी माया से अपने मनुष्य रूप के द्वारा प्रेम के खेल में मुझे फसाया ... देखना अगले जन्म में आपके यहीं मनुष्य रूप खुद प्रेम के खेल में ऐसा फसेगा की आप के साथ मुझे एक औऱ नाटक करने का अवसर मिलेगा !! इस जन्म मुझे प्राश्चित ही करने दीजिए !! "


ये बोल मैं उनके चरणों मे गिर गयी ... क्योंकि मुझे पता था कि मैं इनकी ही हू इस जन्म और ये मेरे साथ ही है... एक नए नाटक का अवसर मैं हाथ से नही देना चाहती थी तो मैंने उनसे ऐसा कहा था |



मेरी आँखें खुली थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि मेरे हाथों में कंगन थे ... कहाँ मैं उनको पहनाने का सोच रही थी और उन्होंने तो मुझे ही पहना दिया ...!! मैं मन ही मन मुस्कुराती हुई घर आई ... मुझे रास्ते मे आते हुए अपने आसपास हर चीज कर अंदर पता नहीं क्यों कृष्ण का आभास हो रहा था ... घर आते ही मैं अपनी कहानी लिखने बैठ गयी क्योंकि मुझे नहीं पता कल क्या होना है पर जो भी होगा वो कृष्ण का नया खेल ही होगा इतना जरूर पता है ... पता है आज शरद पूणिमा की रात है ... उन्होंने मुझसे मिलने का आज का ही दिन पता नहीं क्यों चुना ... शायद पहले कभी हम इसी दिन मिले हो... ऐसा मुझे आभास हो रहा था ... पूर्णिमा का चांद मुझे कृष्ण सा प्रतीत हो रहा है और ये कलम बाँसुरी ...ऐसा लग रहा मानो वो मेरा हाथ पकड़ मुझे लिखा रहे हो और मैं उनको निहार रही हूँ ||




● राधिका कृष्णसखी 💫



राधे राधे 🙏

शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं💙


Tashi part 2 












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