कृष्ण पगली
रात बहुत हो चुकी थी आसमान में काले बादल छाए हुए थे, ऐसा लग रहा था मानो किसी भी वक्त बरसात हो सकती हो | आसपास के सारे होटल बुक हो चुके थे जिन्हें देख हमे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा था क्योंकि समय ही कुछ ऐसा था ... 1 सप्ताह बाद जन्माष्टमी आने वाली थी | हिम्मत न हारते हुए , श्री राधे का नाम लेकर हम आगे किसी छोटे से सराहे की तलाश में निकल पड़े |
थोड़ी दूर जाकर हमें एक धर्मशाला दिखाई दी वह थी तो पुरानी पर उस वक्त हमारे लिए किसी फाइव स्टार होटल से कम न थी | अंदर जाकर वहां के मैनेजर से हम बात कर ही रहे थे कि तभी जोरदार बारिश शुरु हो गई झमाझम.... झमाझम ...! |
मैनेजर के द्वारा हमें पता चला कि वहाँ पर कोई कमरा कमरा खाली नहीं बचा हुआ था परन्तु वक्त की नज़ाकत और बारिश की कृपा को देखते हुए उन्होंने हमें छोटे से स्टोर रूम का कमरा दे दिया रात बिताने के लिए |
मेरे साथ मेरी दोस्त ईश भी आई हुई थी , वही माध्यम थी मुझे यहां वृंदावन में जन्माष्टमी पर लाने के लिए ; अचानक यह सब कैसे तय हुआ कुछ पता ही नहीं चला | किसी ने सच ही कहा है श्री राधारानी की कृपा निराली है ... वृंदावन आने के लिए एक बार वो जिसे बुलाले ... तो फिर पूरी कायनात लग जाती है इंतजाम करने में !|
तो मैं कहाँ थी ... हाँ छोटा कमरा !! जिसका एक कोना बाहर खिड़की की तरफ और दूसरा बगल कर कमरे की पतली हुई दीवार से जुड़ा हुआ था ; बारिश की तेज आवाज और उसकी छोटी-छोटी बूंदे जो खिड़की के छेदों से निकल कर बार बार मुझे तंग कर रही थी , इन दोनों ने मुझे सही से सोने ही नहीं दिया और वही ईशा लड्डूगोपाल वाला छोटा सा लॉकेट (जिसे हम गले में पहनते हैं ) उसे लेकर ऐसे सोई हुई थी मानो कृष्ण की ही गोद में सोई हो !! |
उसका चेहरा देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट अपने आप ही आ गई ! ईशा को देख मैं अभी मुस्कुरा ही रही थी कि तभी मुझे बाहर से हरे कृष्णा ...!हरे कृष्णा...! गुनगुनाने की आवाज आने लगी ; इतनी तेज बारिश में आखिर इस वक्त बाहर कौन हो होगा यह सोचकर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था | मैंने खिड़की के कोने से झाँकने का प्रयास किया पर मुझे कुछ साफ-साफ नहीं दिखाई दिया , थोड़ी देर बाद वही गुनगुनाने की आवाज तेज होने लगी ; मैंने भी अपना झाँकने का प्रयत्न आवाज के साथ तेज कर दिया ! , आखिरकार मुझे दिखाई दे दिया उस मीठी सी आवाज के पीछे का राज ... एक बूढ़ी सी स्त्री अपने सफेद और काले घने को बोरे से आधा ढके हुए मुझे हमारे धर्मशाला में से बाहर निकलती हुई दिखाई दी और गुनगुनाने की आवाज भी उन्ही के पास से आरही थी | इतनी देर रात उन्हें तेज बारिश में यूँ बाहर जाता देख ऐसा लग रहा था शायद कोई आपातकालीन परिस्थिति हो तभी उन्हें इस वक्त बाहर जाना पड़ा ! बारिश के कारण मैं उनका चेहरा तो नहीं देख पाई परन्तु उसने केश जो सफेद होने के बावजूद अद्धभुत रूप से चमक रहे थे , उन्हें देख कर मैंने अंदाजा लगा लगा रही थी कि उनमें कुछ तो खास है ...
मेरे मन में पता नहीं क्यों बार-बार कोई दिव्य सी छवि आकर्षण पैदा कर रही थी ...वो तो चली गयी किंतु उनकी छवि और उनकी मनमोहक आवाज अब भी मेरे कानों में थी ! उनके बारे में सोचते - सोचते पता नहीं मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला |
सुबह पक्षियों की चहचाहट के साथ मेरी नींद खुली , वृंदावन की पक्षियों की बात भी निराली ही है ; उनकी चहचाहट में न जाने क्यों मुझे राधे राधे सुनाई दे रहा था| आपने ख्वाबों में मैं खोई हुई ही थी कि तभी मुझे ईशा छेड़ते हुए बोली - " क्यों मैडम कैसा लग रहा है यहां आकर !"
मैंने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया बस मुस्कुरा दी शर्माते हुए , उसे मेरी मुस्कुराहट से अपना उत्तर मिल चुका था | ईशा फिर बोली - " अब यहीं बैठ मुस्कुराने का ही इरादा है क्या !?... अरे ! थोड़ी मुस्कान अपने श्याम के लिए भी बचा दो ...! अच्छा चलो ... नाश्ता करने ! फिर चलना भी है हमे ! " |
उसकी बात सुनकर मुझे हँसी और शर्म दोनों आरही थी ...पता नहीं क्यों ! |
हम लोग नास्ता करने धर्मशाले में ही बने हुएछोटे से ढाबे में तैयार होकर चले गए , मैं नास्ते के लिए ईशा के साथ खड़ी हुई थी तभी मेरे कानों में फिर से वही कल रात वाली हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण गुननाने की आवाज आई ; न जाने क्यों वो आवाज मुझे सुकून सा अहसास दे रही थी |
मैं इस बार भी पुनः चौकते हुए पीछे मुड़ी तो देखा एक वृद्ध सी औरत जिसके चेहरे में अद्धभुत तेज था , उनके सफेद - काले केश भी अद्धभुत रहस्मय ढंग से चमक रहे थे , परन्तु उनकी आँखों मे एक अधूरापन सा था ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी को ढूंढ रही हो !
वह हमारे पास आई और मेरी दोस्ती ईशा से कहने लगी "बेटी तुम मुझे क्या ₹11 दे सकती हो ?"
उनकी आवाज में जितनी मिठास थी उतना ही संयम भी था , उस वक्त तो ईशा पैसे अपने साथ नहीं लाई थी इसीलिए उसने मेरी ओर रुपये देने का इशारा किया | मैंने अपने पास से ₹11 निकाल कर काकी की तरफ बढ़ा दिए , वह हंसते हुए बोली " मंगवाया तो प्रभु ने इन्हीं के द्वारा ही है! " इतना कहकर वो ढाबे के मालिक ओर आगे बढ़ गई जो हमारे पास ही खड़े थे अपने हिसाब किताब के समान के पास | वृंदावन के लोगों से बहुत ईशा को बहुत प्यार था और उन पर वो विश्वास करती थी , तो जल्दी से अपने कमरे में पैसे लेने चली गई |
वो वृद्ध स्त्री के आगे बढ़ते ही मैं अकेली अपने खाने का इंतजार करने लगी और वही खड़े एकटक उन वृद्ध स्त्री को देख ही जा रही थी , सच बताऊं तो मेरी नजर उनसे हट ही नही पा रही थी ... ना जाने कैसा अलोकिक सा आकर्षण था उनके मुख पर और ऊपर से वह कृष्ण कृष्ण की गुनगुनाने की आवाज मन को एक दिव्य सा आनन्द दे रही थी |
उन्होंने मुस्कुराते हुए हिसाब किताब संभालने वाले सरदार जी से पूछा -" पीले फूल होंगे क्या आपके पास ?"
" पर आप तो सफेद फूल ले जाती है अम्मा जी !"
सरदार जी फूल ढूढ़ते हुए बोले |
" अब क्या करूं ...आज उन्होंने पीले फूलों की मांग कर दी ! " यह कहते हुए अम्मा जी की आंखों में नन्हे बालक के भांति चमक आ गई |
सरदार जी ये सुन मुस्कुरा दिए और हंसते हुए बोले " मैं अभी राघव के हाथों विजवा दूंगा आपकी कुटिया में ही चिंता ना करो ! "
"अच्छा ठीक है बेटा है ... सदा आनंद में रहो ...जय श्री कृष्ण ! " कहते हुए वह मुस्कुराते हुए हरे कृष्ण पुनः गुनगुनाते हुए बाहर की ओर जाने लगी ... मैं अब भी उन्हें देखी ही जा रही थी | अचनक तभी ईशा भागते हुए पीछे से आई और अम्मा जी को रोककर कहने कहने लगी - " यह लीजिए रुपये और ये ठाकुर जी के वस्त्र भी ले लीजिए ... ये मेरी माँ ने भिजवाए थे ठाकुर जी के लिए ... पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा है जैसे आप इसे उन तक पहुंचाने आई हो !! "
अम्मा जी ने मुस्कुराते हुए सामान पकड़ा और हरे कृष्णा बोलते हुए , मेरी दोस्त के सर पर हाथ रखा ! इतने में सरदर जी हंसते हुए पीछे से बोले - " तो आज फिर ठाकुर जी का मन पीतांबरी रूप धारण करना है ... अपने लिए पिले फूल तो मंगवा ही लिए थे अब पिले वस्त्र भी मंगवा लिए | अम्मा जी सरदार जी की बात सुन मुस्कुराते हुए और हरी नाम गाते हुए बाहर चली गयी |
मैं हैरान थी इस चमत्कार से ... मेरी दोस्त पीले वस्त्र ठाकुर जी को देने के लिए लाई थी ..। उनके बारे में तो मुझे भी नहीं मालूम था और आज ठाकुर जी के लिए वह अम्मा सफेद की जगह पीले फूल मांग रही थी ..... मैं बस यही सब अभी सोची रही थी कि तभी ईशा मुझे खाने के लिए बुलाने लगी , सब कुछ भूल मैं कृष्ण नाम लेते हुए पेट पूजा में जुट गई |
पता नहीं क्यों मेरा मन उन अम्मा जी के बारे में जानने के लिए हो रहा था | मैंने ईशा को अपनी मन की बात बताई , उसका भी यही मन हो रहा था ... आखिर हो भी क्यों न !! उन अम्मा जी के व्यक्तिव में एक अलग सा अद्धभुत आकर्षण था जो खिंच रहा था सबको अपनी ओर |
हम लोग हिम्मत कर सरकार जी के पास गए और उनसे अम्मा जी के बारे में पूछने लगे , " काका जी वो अम्मा जी कल रात को भी आई थी ... वो भी इतनी बारिश में !" मैंने उनसे पूछा |
मेरी बात सुन वो मुस्कुराते हुए बोले " ठाकुर जी को भूख लग गई थी इसीलिए अम्मा जी आई थी रात को ही ..." मैं और ईशा आश्चर्यचकित दृष्टि से उनकी ओर देख रहे थे |
" अरे ऐसे चौकों मत ...यहां वृंदावन में तो ठाकुर जी हर बृजवासी के साथ ही रहते हैं ! "
ये सुन हम बस जय हो बांके बिहारी लाल की इतना ही कह सके |
" काका जी उनका नाम क्या है ?!" ईशा ने उत्साहपूर्वक उनसे पूछा |
" नाम तो नहीं पता पर सब लोग उन्हें यहाँ कृष्ण पगली कहकर पुकारते हैं ! "
" कृष्ण पगली क्यों ...? " मेरे मुंह से एकाएक की निकल पड़ा |
सरदार जी बोले " यह तो नहीं पता मुझे सही से ... पर जब से आया हूं रोज बांके बिहारी मंदिर में सेवा करते हुए देखा है इनको ...और लोग कहते इनके साथ सच के ठाकुर जी रहते है !!"
" अच्छा ... और कुछ भी बताइए ना अम्मा जी के बारे में ?"
" और कुछ तो पता नहीं है... हाँ !! याद आया जब ये यहाँ नई नई आई थी तो यह शायद गली-गली ठाकुर जी को ढूंढ रही थी ... तभी से लोग इन्हें कृष्ण पगली कहकर बुलाते है ... पता नहीं कितना सच है !! "
" तो फिर आप क्या बोलते हैं ?" ईशा ने पूछा |
" मैं तो उन्हें अम्मा कहकर पुकारता हूँ यर अक्सर हमे लीलाए कथाएं ऐसे सुनाती है मानो ये भी साक्षी हो !! ... सच बताऊँ तो भक्ति का रस इनके स्निग्धय में और बड़ जाता है ... ऐसा लगता है मानो अपने साथ श्याम जी को भी लाई हो साथ हमसे मिलाने ..जय हो बांके बिहारी लाल की !!"
अभी यह सरदार जी बोले ही थे कि तभी उनके ग्राहक आ गए तो हम भी वक्त की नजाकत देखते हुए उनसे विदा लेकर और उनका आशीर्वाद लेकर आगे की
यात्रा में निकल पड़े |
पता नहीं क्यों पर मेरा मन बार-बार उन अम्मा जी से मिलने का कर रहा था |
"ईशा चल न... उन अम्मा जी के पास !! "
"पर आज तो हम मन्दिर जाने वाले थे क्यों ...?" तिरछी निगाहों से घूरते हुए ईशा मुझसे बोली |
" हाँ ... पर हम तो यहां 1 हफ्ते के लिए आए है और ठाकुर जी के भक्तों के पास ही तो उनका वास है क्यों ....!?"
" अरे मेरी मां चल ... अच्छा मैं समझ गई अब चलो ! " ईशा ने हँसते बोला |
हम लोग आसपास के लोगों से रास्ता पूछते पूछते चल पड़े उनको ढूढ़ने ,, आखिरकार उनकी कुटिया हमें मिली ही गयी थी | जब हम वहाँ पहुँचे तब उस समय वहां कोई नहीं था , हम निराश होकर वापस जा ही रहे थे कि तभी से मुझे फिर से वही हरे कृष्णा गुनगुनाने की आवाज आने लगी ; हम दोनों ने उत्साह के साथ एक साथ पीछे मुड़े ... पीछे देखा वह अम्मा आ चुकी थी , हम लोगों ने उन्हें सादर प्रणाम किया और हम उनकी कुटिया में उनकी आज्ञा से बैठ गए |
वहाँ ठाकुर जी की बहुत ही सुंदर श्याम रंग की मूर्ति भी थी , हम लोगों ने अपना सामान एक कोने में रख दिया जहां पर अम्मा जी का पहले से ही कुछ सामान पड़ा था क्योंकि कुटिया ज्यादा बड़ी नही थी , अम्मा हमारे लिए पानी लेने के उठने लगी पर हमने उन्हें प्यार से वही बैठा दिया ... हम उनसे सेवा नही लेना चाहते थे हम उनकी सेवा करना चाहते थे ... उनसे बाते करना चाहते थे ... उन्हें बस देखते रहना चाहते थे |
अम्मा हमे देख मुस्कुराते हुए कहने लगी ..." तभी मैं सोचूँ आज कान्हा जी सुबह से इतना क्यों मुस्कुरा रहे थे ... तुम लोग मिलने आने वाले थे ... तभी !!! "
हम लोग भी उनकी बात सुन मुस्कुरा दिए |
"अच्छा आप ....!" मैं बस बोल रही थी कि तभी वहाँ कुछ लोग उन्हें बुलाने आगये , मन्दिर में शायद उनकी सेवा का समय हो रहा था , मैंने अपनी बात को वही अधूरा छोड़ दिया ,
" अम्मा जी आप सेवा में जाइए ... हम अभी यही है !! कल को मिलते है !!"
"पर तुम लोग यहाँ किसी काम से आए थे न !!?" अम्मा जी हमारे तरफ देखते हुए बोली |
"अरे आप चिंता न करो वो काम हम बाद में कर लिंगे !! आपको ठाकुर जी बुला रहे है अभी आ जाइए !" ईशा समान उठाते हुए बोली !
" तुम्हारे ठाकुर जी तो हर काम समय पर पूरा कर ही देते है !!" ये कहते हुए अम्मा मुस्कुरा दी |
अम्मा जी को प्रणाम कर और आशीर्वाद लेकर हमने उनसे विदा ली | हम अपने लिए होटल देखने चले गए आखिर एक हफ्ते तक का सवाल जो था , राधेश्याम कृपा ही थी कि हमे अच्छा होटल जल्दी मिल गया ...सरदार जी के वहाँ तो रात कट गई थी पर अब आगे का भी हमे देखना था , खैर वो भी प्यारी राधारानी ने करवा ही दिया था इंतज़ाम | सुना तो था राधारानी मेहमान बाजी करती है ब्रज के मेहमानों की पर अब यकीन भी हो रहा था , कमरे में हम अपना सामान रख आराम कर रहे थे ; तभी मेरी नजर छोटे से बैग पर पड़ी जो मेरे बैग के साथ लटका हुआ था, "ईशा ये तेरा है क्या ...? " मैंने ईशा को बैग दिखाते हुए पूछा |
" नहीं तो मुझे लगा तेरा होगा ... तेरे पास भी तो ऐसा ही है एक ...!"
" अरे पर वो तो मैंने मम्मी को दिया है ... मैं लेकर नही आई हूं यहाँ ! ... तो ये किसका है ? "
"ये तो मैं ही लाई हुँ !! अम्मा जी के वहाँ से ... मैंने तेरा समझ तेरे बैग में लटका दिया था !!" ईशा सर पर हाथ रखते हुए बोली |
" अरे पागल ये कर दिया तूने !!" मैने ईशा को गुस्से से देखा |
" तो कल वापिस कर दिगें ... इसमें क्या हुआ!!" मासूम सी सूरत बना कर ईशा बोली |
" इसमें अगर जरूरी सामान होगा उनका तो !! " मैंने बैग टटोलते हुए पूछा
" अरे तो आज ही कर देना वापिस ... रात में ही ! " ईशा बोली
असल मे समय काफी बीत चुका था और होटल से हमारे अम्मा जी घर दूर था काफी तो हम तुरंत जा भी नही सकते थे ... इसीलिए दोनों दुविधा में थे |
" अच्छा मैं देखती हूँ कोई जरूरी सामान तो नही है न ... वैसे किसी का सामान देखना अच्छी बात तो नही होती पर अगर जरूरी समान होगा तो अभी दे दिगें वापिस ! ... कान्हा माफ करना !! " ये कहकर मैं बैग खोलने लगी |
" क्या है इसमें ...!! " ईशा बैग के अंदर झांकते हुए बोली |
" बस एक डायरी !!" ईशा को डायरी दिखाते हुए मैने कहा !!
" क्या लिखा है इसमें ... मुझे भी दिखा !! " मुझसे डायरी छिनते हुए ईशा बोली |
" किसी की डायरी पढ़ना अच्छी बात नहीं है !!" मैंने उससे डायरी वापिस लेते हुए कहा |
" अरे पहले देख तो ले है क्या ... फिर तय करना !!"
ईशा उत्साहित होकर , मुझसे पुनः वापिस लेकर पन्ने पलटने लगी |
"इसमें तो उनकी जीवन गाथा है ....देख !!!"वो चिल्लाते हुए बोली
"सच्ची ....मुझे भी दिख तो ....!!!"
" पर तु तो बोल रही थी कि दुसरो की डायरी नहीं पढ़ते है !!"
" अरे ... ऐसा मत कर अब दिखा दे !"
"सुन.... मेरा तो पढ़ने का बहुत मन है ... चल न कृष्ण की आज्ञा लेकर पढ़ते है ..."
"पर ......" मैं कुछ सोचते हुए बोली
" ठीक है तुझे नही पढ़ना तो मत पढ़ मैंने कृष्ण से पूछ लिया है उन्होंने आज्ञा देदी मुझे !!" ईशा मुस्कुराते हुए बोली |
"पर ये कब हुआ !?" मैने चौकते हुए पूछा
"अभी !! " वो मुस्कुराते हुए बिस्तर पर डायरी लेकर पढ़ने के लिए बैठ गयी |
" देखा जाए तो शायद कृष्ण की भी यही इच्छा होगी ... तभी तो हमे ये डायरी मिली क्यों...." मैं ये कहते हुए बस अपनें मन को सांत्वना देकर समझा रही थी , मेरा भी बहुत मन था उन अम्मा जी के बारे में जानने का ; मैं भी ईशा के साथ बिस्तर ओर बैठ गयी उनकी डायरी पढ़ने |
राधेश्याम का नाम लेकर हमने डायरी उर्फ अम्मा जी की आत्मगाथा पढ़ना आरम्भ किया ||
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दिनांक - 16 जनवरी 1980
मेरा नाम मेधा है और मेरा जन्म 16 जनवरी 1962 में महारष्ट्र के एक बड़े से शहर में हुआ है | आज मेरा 18 वा जन्मदिन है , मैं अपने कमरे में अकेले बैठकर रो रही हूँ , मुझे बहुत याद आ रही है माँ की ... आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब मैं 9 साल की थी और माँ मुझको बाजार घूमाने लाई थी , मेरी माँ मुझको बहुत प्यार करती थी , हम लोग बाजार में खरीदारी कर रहे थे तभी मेरी नजर कृष्णा जी की मूर्ति पर पड़ी उनकी आँखें चमक रही थी ... मैं अपनी माँ से जिद करने लगी उसे खरीदने के लिए और माँ भी पता नही क्यों उस वक्त बिन कुछ कहे ही मान गयी और मुझको वो मूर्ति हाथ मे पकड़ाते हुए बोली ... ये आज से तेरा नया दोस्त है ... इसका ध्यान रखना तू ... ये तेरा साथ कभी नही छोड़ेगा और मुझसे वादा कर तू भी कभी इसका साथ नहीं छोड़ेगी | मैंने उस वक्त तो माँ की हाँ में हाँ मिला दी ...,पर उस वक्त अनजाने में किया गया वादा मैं अब तक निभा रही हूँ | माँ इस घटना के ठीक एक साल बाद अचानक बहुत बीमार पड़ गयी और कुछ दिनों बाद ही मुझे कृष्णा के हाथ छोड़ बहुत दूर चली गयी थी और अपने साथ ले गयी मेरी सारी खुशियाँ ! | पिता जी ने एक साल बाद नई शादी कर ली ताकि मुझे नई माँ मिल सके , पर शायद मेरी नई माँ को पुरानी बेटी नहीं चाहिए थी , तभी तो वो मुझसे इतनी नफरत करती है ... वो मुझे मारती भी है ... मुझे बहुत अकेला लगता है ... काश ये मूर्ति वाला कृष्णा मुझसे बात कर पाता ... मैं अपनी कहानी बताते बताते थक चुकी हूँ ..वो कोई उत्तर ही नहीं देता है ... मुझे बहुत अकेला सा लगता है | मेरा आज जन्मदिन है और अब तक किसी ने मुझे शुभकामनाएं भी नही दी ... पिता जी को छोड़ कर उन्होंने ही मुझे ये डायरी दी है उपहार में | वो है तो बड़े अच्छे पर पता नही क्यों मुझसे बहुत दूर रहते है ... मैं क्या इतनी बुरी हुँ ...??? अब मुझसे नहीं रहा जाता है ... मूर्ति में से दोस्त तुम बाहर आजाओ न ..., कम से कम आज के दिन तो मुझे जन्मदिन की शुभकामनाएं देदो ...
मैं अब सोने जा रही हूँ ... तुम आओगे ??
★★★★★★★★
दिनांक - 14 फरवरी 1980
बहुत दिन होगये थे कुछ लिखा नही था मैंने , आज बहुत मन हो रहा था लिखने का ... आज तो 14 फरवरी है ..., अपने सबसे खास दोस्त को आज फूल देते है ... पता है मैने अपने मूर्ति वाले दोस्त को दिया गुलाब का फूल ... पता नही उसे पसंद भी आया होगा ....???
मेरी परीक्षा आने को है 12वी की ... मेरी तैयारी तो पूरी है फिर भी डर लग रहा है बहुत ...
पता नहीं क्या होगा ....
★★★★★★★★★
दिनांक - 15 जुलाई 1980
माफ करना डायरी जी इतने समय से तुमसे मैं मिलने नही आ पाई थी ... वो क्या है ... मेरी परीक्षा चल रही थी फिर छुटियों में मैं नाना जी के वहीं चली गयी थी तुम्हें यही छोड़ कर ... इसी लिए इतने समय से मिल नहीं पाई ... मेरे पास तुम्हारे लिए दो खबरे है एक अच्छी और बुरी ...
अच्छी ये है कि मैं परीक्षा में अच्छे अंको से पास हो गयी और दूसरी ये मेरी शादी की बात शुरू हो गयी है ...,
शादी मेरे लिए बुरी ही है ... मुझे नहीं करनी अभी शादी ... शादी के बाद मेरे दोस्त का ध्यान कौन रखेगा ... अभी तो मैं उसे खाना खिला देती हूं ... अगर मेरे ससुराल में इसे न रखा गया तो ..., मैंने सुना है ससुराल बहुत खतरनाक होता है ..., वहाँ के लोगो की सारी बात माननी पड़ती है ...
अरे !!तुम्हे जरूरी बात तो बताना ही भूल गयी ... नाना जी ने मुझे श्रीमद्भागवत और भगवद्गीता उपहार में दी है ... और पता है ये मेरे दोस्त की जुबानी और कहानी है ... चलो इस बहाने के सही उसकी मन की बात और कहानी मुझे जानने को तो मिलेगी ...,चलो अब मैं चलती हुँ ...
★★★★★★
दिनांक - 1 अगस्त 1980
मैं भागवत और भगवद्गीता रोज पढ़ रही हूँ ... घर के काम के साथ समय निकालना कठिन तो होता है पर मैं कर ही लेती हूँ ...लड़के वाले भी आ रहे है आए दिन देखने तो काम बड़ गया है ... अरे माँ बुला रही है मैं चलती हुँ |
★★★★★
दिनांक - 21 नवंबर 1980
जानती हूँ काफी दिन हो गए है तुमसे मिले हुए ... पर क्या ही करू मैं ... आगे अब पढ़ने की अनुमति है नही मुझे ..., भागवद और भगवद्गीता भी छिपते छुपाते पढ़ती हुँ मैं ... तुम्हे पता है मुझे मेरे दोस्त कृष्णा के बारे में ऐसी ऐसी चीजें पता चली है कि तुम भी चकरा जाओगी ... मैंने उसके लिए पता है आज श्रृंगार भी किया था ... मुझे तो पसंद आने लगा है ... मेरा बहुत मन है उससे मिलने का ... वो सारी लीलाएं देखने का ...
आज पता है क्या हुआ ...
मेरा रिश्ता पक्का होगया है ... हाँ जानती हूँ थोड़ा अजीब है ... क्योंकि आज ही पहली बार मैं उनसे मिली और रिश्ता आज ही पक्का हो गया ... मैंने तो गोपी श्रृंगार कान्हा के लिए किया था ... मुझे क्या पता था वो आने को हूँगे ... वैसे पता है बहुत सज्जन है वो लोग ...
जो लड़का है ... वो साइंस का प्रोफेसर है ... अच्छा है ...
मैंने उसको देखा ही नही ठीक से ... मुझे लज्जा जो आरही थी ... तुम्हे पता है मैं कभी कभी सोचती हूँ काश मेरा दोस्त मेरा हाथ मांगने आजाता ...खैर ...
शादी नई माँ ने इस बार एक झटके में इसीलिए तय करदी क्योंकि वो लोग दहेज नही मांग रहे थे ..., अब जो हो श्याम भरोसे ...
मैं चलती हुँ मुझे अब नींद आ रही है |
★★★★★★
दिनांक - 1 जनवरी 1981
नए साल की शुभकामनाएं .... पता है जैसे जैसे मैं पढ़ रही हूँ वैसे वैसे मैं कृष्ण से जुड़ती जा रही हु..., पहले तो उसे दोस्त मानती थी ... पर अब एक नया रूप ही सामने आ रहा है ... जबसे रिश्ता तय हुआ है नई माँ के व्यवहार में रूखा पन और बढ़ गया है..., अब तो रोज का हो गया है ये ... इस बार नया साल मैंने हरि नाम लेकर मनाया और पता है अपने दोस्त के लिए कंगन भी खरीदे चुपके से ... किसी को बताना मत ..., काश मैं उसे पहना पाती अपने हाथों से ...
अरे तुम्हे पता है क्या हुआ ..., मैं जब कंगन लेने बाजार गयी हुई थी ... तभी मुझे रास्ते मे वो मिल गए ... वही जिनसे मेरी शादी तय हुई है ..., असल मे वो हमारे घर को आ रहे थे ..., मैने तो उन्हें पहचाना ही नही ...उनकी माँ को देखा था ... तब पहचाना ...
उनके मम्मी पापा तो घर आगये ... हम लोग पानी पूरी खाने के लिए रूक गए थे ... देख रही हो कान्हा के कंगन के कारण ही मैं फस गयी थी आज ...,, मुझे तो समझ ही नही आ रहा था बात क्या शुरू करू ... बस पानी पूरी को लेकर ही बात हो रही थी ..., नजर उठाने की हिम्मत ही नही थी मेरी तो ... पता नहीं क्यों ..., वो मेरी दोस्त है न रीमा उसने ही ससुराल को लेकर डर बैठा दिया है मन मे मेरे ... और नई माँ ने भी !
पर वो तो काफी सज्जन है ... मतलब मुझे लग रहे है देखने मे ... मैंने आखिरकार हिम्मत करके उनसे पूछा
आप क्या पढ़ाते हो साइंस में ..., और कोई सवाल ही नही आ रहा था मन में उस वक्त ..., और ये खामोशी बहुत चुभ रही थी ..., न वो कुछ बोल रहे थे ...,मेरी तो बात ही मत करो ..., फिर उन्होंने बताया वो पढ़ाने के साथ खोज भी कर रहे है ... टाइम मशीन विषय पर ..., ,जब मैंने ये विषय सुना तो मेरी तो उत्सुकता ही बड़ गयी थी ...,तुम्हे पता है टाइम मशीन क्या होती है ... एक ऐसा यंत्र जिससे हम समय मे आगे और पीछे जा सकते है ...ये सुनते ही मेरे मन मे कृष्ण से मिलने की बात आगयी ..., और मैंने अब मन बना लिया है टाइम मशीन से पीछे जाने का ...
अब ये कैसे होगा ... वो मुझे पत्र लिख कर समझेंगे ... उन्होंने बोला वो अच्छे से बता पाएंगे क्योंकि उस वक्त उन्हें घर भी जना था ...,और लड़का लड़की कहाँ ज्यादा बात कर सकते है ... तुम तो जानती हो ...!!
मेरे दोस्त कृष्ण से अब मैं जल्दी मिल पाऊंगी ...
मुझे उनके पत्र की बेसब्री से प्रतीक्षा है ... वो सच मे बहुत अच्छे है ... और मेरा कृष्ण भी ..., मुझे उसको कंगन जल्द पहनाने है | मैं चलती हूँ मुझे अब नाम जप करना है |
दिनांक - 15 फरवरी 1981
तुम्हे पता है बीते दिनों में क्या - क्या हुआ मेरे साथ ... अगले साल मार्च में मेरा रिश्ता तय हो गया है ... घर मे काम भी बड़ गया है .. आखिर पहली शादी है घर की ... अब मुझे काफी कम समय मिलता है ... पर कृष्ण के लिए समय निकाल ही लेती हूँ ... आज उनका पत्र आया है ...
उसमे टाइम मशीन के बारे में बहुत कुछ लिखा है ... मुझे काफी समझ मे तो आ गया है ... पर मन में अजीब सी बेचैनी भी है ... पता नहीं क्या ..., मैं कैसे बंया करू समझ नही आ रहा है ... अच्छा मैं चलती हुँ ... मुझे अभी कुछ अच्छा नही लग रहा है !!
दिनांक - 16 मई 1981
मैं तुम्हे बता नही सकती कितना कुछ बदल गया है ...
आजकल तो कुछ लिखने का मन भी नही करता है ...
मन मे अजीब सी चिंता रहती है ... आज सुबह मैंने भागवत पूरी पढ़ ली ... अंत मे आँसू अपने आप आगये थे ... मेरा मन श्रीकृष्ण की झलक के लिए अथाह तड़प रहा है ... न जाने वो कैसे दिखते हुंगे ... कैसे हँसते हुंगे ... हर समय मैं यही सोचती रहती हूँ ... टाइम मशीन के बारे में मैंने काफी कुछ सिख लिया है ... मैं अक्सर उनसे मिलने जाती हूं लैब में उनके ... उनके साथ प्रयोग में उनकी सहायता करती हूँ ... पता नही कब परीक्षण सफल हो गया .. कब मैं भूतकाल में जाकर श्याम को कंगन पहना पाऊंगी ... जब मैं उनसे श्याम के बारे में बात करती हूँ ... तो वो हँसते है बात पर मेरे मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता है ... उनका मानना है भगवान नही होते है ... मुझे बस यही बात पसन्द नही है उनकी ... !!
दिनांक - 17 अगस्त 1981
थक चुकी हूँ मैं ... टाइम मशीन से ... और श्याम की दूरी से ... नही सहा जा रहा है अब... मैं बहुत परेशान हुँ ... मुझे क्या विवाह करना चाहिए ... बार बार मन मे ये सवाल आता है ... कुछ समझ ही नही आ रहा है ...
वो अब मेरी वजह से मन्दिर जाने लगे हैं ... वो बहुत अच्छे है ... पर पता नही क्यों मेरा मन बेचैन है ...
कुछ समझ नही आ रहा है ...क्या करूं मै !!
दिनांक - 9 नवंबर 1981
रात बहुत हो चुकी है ... ये विरह की तड़प बढ़ती ही जा रही है ... कुछ भी समझ नही आ रहा है क्या करूँ ... टाइम मशीन के असफल परीक्षणों के बाद मनोबल टूट रहा है ... ये विरह बढ़ता ही जा रहा है ...समझ नही आ रहा क्या करूँ ... भगवद्गीता का मैं रोज अब पाठ करती हूँ कृष्ण की वाणी समझ कर ... उनका हर समय जाप करती हूं ... ताकि इस विरह की अग्नि को थोड़ा आराम मिल सके ... पर सब व्यर्थ है ...मेरा मन सब से ऊब चुका है ...सबसे... !!
दिनांक - 1 जनवरी 1882
अब बस बहुत हो चुका है ...नही सहा जाता है मुझसे ... मैं जा रही हूँ अपने श्याम के घर उनसे मिलने ...उन्हें कंगन पहनाने , अपने प्रश्नो का उत्तर लेने ... !!
दिनांक - 10 जनवरी 1882
मैं आगयी वृंदावन से ... पता नही वहाँ जाने की कहाँ से मेरे पास हिम्मत आगयी थी ... मेरे साथ वहाँ कुछ अजीब सा हुआ ... मैं तुम्हे शुरूआत से बताती हुँ सब ..., जब मैं बस में बैठी तो मेरे साथ वहाँ 17-20 साल का लड़का भी बैठ गया था ... वो मेरे हाथ मे माँ की दी हुई कान्हा की मूर्ति को घूरे ही जा रहा था , मुझे समझ ही नही आ रहा था क्या बुलू उससे ... पर हिम्मत करके पूछ ही लिया मैने , कुछ चाहिए क्या आपको , ... मेरे इस सवाल पर उल्टा वो मुझसे ही सवाल करने लगा ... बेटा आप अकेले कहाँ जा रही हो ... उसकी ये बात सुन कर मुझे बहुत तेज गुस्सा आ रहा था ... मैं कोई बच्ची नही हूँ 19 साल की हुँ समझे ... मेरी बात सुन वो दूसरी ओर मुँह करके मुस्कुराने लगा ... वैसे इसमें उसकी भी कोई गलती नहीं थी ... मैं दिखने में ही 15-16 साल की ही लगती हुँ ... ये तो मुझे अक्सर सुनने को मिलता है ... मैं उस समय वृंदावन की बस में बैठी थी ... सफर थोड़ा लम्बा था ... मैं खिड़की के पास बैठी हुई थी , बाहर की ओर ताक रही थी ... वो लड़का मेरे कंधे में थपथपा हुआ बोला ... सुनो आपको कहाँ जाना है ... मैंने हल्की सी आवाज़ में पूछा क्यों क्या हुआ ... वो फिर मुस्कुराता हुआ बोला अरे ये कंडक्टर साहब टिकिट काट रहे है तो आप भी कटवा लीजिए ... वृंदावन का मैंने टिकिट कटवा लिआ ... और उस लड़के ने भी ... बातों ही बातों में मुझे उसका नाम पता चला ..., मोहन ... नाम जैसे ही उसकी मुस्कान भी मोहक थी ... वो योग का विद्यार्थी है ... वो वृंदावन राधारानी से मिलने जा रहा था ... कहता है राधारानी का ससुराल वृंदावन है तो वही से उपहार खरीदूंगा उनके लिए ...उनको अच्छा लगेगा ... वो राधारानी की बात करता ...मैं श्याम की ... हमारी तो बीच बीच मे लड़ाई भी हो गयी थी कि श्याम प्यारी या श्यामा प्यारी ... सच मे पहली बार मुझे लड़ाई में आनंद आया ... हम लोग जब मन्दिर के द्वार गए तो देखा वहाँ बहुत भीड़ है ... उसे राधारानी के लिए उपहार लेना था तो वो अपने रास्ते चल दिया और मैं अपने मन्दिर की ओर ... पर बीच मे ही मुझे चक्कर आगये ... कमज़ोरी के कारण क्योकि मैंने उपवास रखा हुआ था ... लोगो ने मुझे बाहर बैठा दिया ... मेरे पैर में मोच आगयी थी अचानक गिरने की वजह से .. मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी .. हाथ मे श्याम की मूर्ति थी ... आखों के आँशु लिए मैं मन्दिर की ओर देख रही थी ... तभी पीछे से किसीने मेरा नाम पुकारा ... मैंने पीछे मुड़के देखा तो मोहन था वहाँ ... अरे तुम मन्दिर नहीं गयी ... मैंने उसे अपनी हालात के बारे में बताया ...वो बोला कोई नही दर्शन कल परसो कर लेना ... पर मुझे पता था मेरे पास न ही इतने पैसे थे ... न अनजान जगह पर किसी पर भरोसा करने की ताकत ... मैंने मोहन को भी अपने बारे में ज्यादा कुछ नही बताया था इसी डर से ...
ये कंगन मैं उनको पहनाने के लिए लाई थी ...तुमने उनका नाप देखा है वो ये कहकर मुस्कुरा दिया ...अंदाज से लाई हु मैंने उसे बताया ... वो बोला कि नाप पता कर लेती उनका फिर देती ...मुझे उसकी बात ठीक लग रही थी पता नही क्यों उस समय और मैं बेवकूफ ने कंगन उसकी ओर बड़ा दिए ... श्याम जु मेरे बराबर ही हुंगे क्यों ... मैं देखता हु नाप ... मेरे हॄदय की श्याम की छवि की उम्र और उसकी उम्र समान थी तो मैंने उसे दे दिए ... उसने वो पहन लिए ... उसके हाथ में जाने में थोड़ी परेशानी हो रही थी तो मैंने मदद की उसकी... मैं ये बदल दूंगी ... नही नही काम चल जाएगा ये कहकर वो मुस्कुरा दिया ... और राधारानी के उपहार के बारे में बताने लगा कि उन्हें पायल बहुत पसंद हैं ...पर उसे समझ नही आरहा क्या ले ... तब मैंने उसकी मदद की राधारानी के लिए उपहार लेने में ... इसे तुम पहनाओगे कैसे ... वो मुस्कुराते हुए बोला जैसे तुम पहनाओगी ... पर मैं तो टाइम मशीन से जाऊंगी मिलने ...वो मेरी बात सुन कर हँस दिया ... मैं अपने तर्क देने लगी उसे ... वो मुस्कुराते हुए बोला हाँ मुझे पता है इसके बारे में ... पर मैं तो तुम्हारें विज्ञान पर हँस रहा हूँ ...हमारे ग्रन्थों में तो सब पहले से ही है ... तुम अपने सूक्ष्म शरीर से कही भी जा सकती हो ... ये जो बाहर तुम दुनिया देख रही हो ... ये असल मे एक छलावा जैसा ही है ... जब तुम सूक्ष्म शरीर से ये दुनिया देखोगी तब पता चलेगा तुम्हे क्या होती है दुनिया ... बंद चक्रो को मुक्त करके तो देखो!! ... मैने उससे पूछा तुम गए हो राधारानी से मिलने ... उनकी मर्जी के सिवा कोई नही मिल सकता उनसे ... कृपा बरसेगी जिसमे ...अगर कृपा बरस जाए तो रास्ता वो खुद दिखाने आ जाती है !!... हम दोनों इस बार एक साथ मुस्कुरा दिए ... वो मुझसे रहस्मई मुस्कान के साथ बोला ... जिसे तुम बाहर ढूंढ रही हो , एक बार अंदर ढूढ़ के तो देखो ... मैं समझ नही पा रही थी ... तभी राधे राधे की जयकारे की आवाज़ आने लगी ..., मैं झटके से पीछे मुड़ी ...मैंने भी साथ जयकारे लगाए जैसे ही दोबारा मोहन की तरफ़ देखा तो वहाँ कोई नही था ...न वो कंगन ... और न ही मोहन ... वहाँ उसकी जगह पर मोरपंख था जो उसके बैग में मैने रखा देखा था ... मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था ... अब क्या ही कर सकते थे... पैर दर्द कर रहा था और पैसे भी सिर्फ घर जाने लायक ही थे ... तो मैं प्रसाद लेकर जो बाहर मिल रहा था ... घर के लिए आगयी ... रास्ते मे मुझे मेरे मंगेतर मिले...जो परेशान नजर आ रहे थे ... कहाँ थी तुम दो दिन से ... मैंने उन्हें जब बतया की मैं वृंदावन गयी थी तो वो कुछ नही बोले ... बल्कि घर पर भी उन्होंने बात संभाल ली ... मैं सच में शुक्रगुजार हुँ उनकी !! मोहन की बात और वो मुझे बार-बार परेशान कर रहे है ...,वो अंदर वाली बात !! बहुत दिनों बाद तुमसे लंबी बात की है ...अच्छा अब मैं चलती हु ...सच बताऊ तो मुझे तुम्हे एक एक चीज बताने में आनंद आ रहा था ... क्योंकि वृंदावन सच मे अद्भत ही है !!
दिनांक - 16 जनवरी 1982
आज मेरा जन्मदिन था तो पहली बार मैंने मनाया ...वो मिलने आए थे मुझसे ...और मेरे लिए उपहार में श्याम की मूर्ति वाली माला लाए ... मैं अभी भी पहनी हुँ उसे ...सच मे बहुत सुंदर है ये ...हम लोग मन्दिर में गए थे ... उन्होंने मुझे बताया कि मेरी वजह से वो भी कृष्ण को महसूस करने लगें है ...मेरा धन्यवाद कहा उन्होंने ... और बोला कि मैं बहुत अच्छी दोस्त भी हुँ एक ... आज का दिन सच मे काफी अच्छा गया ...!! मेरा पहला जन्मदिन ...!! मोहन की बाते अब भी मेरा पीछा नही छोड़ रही है पता नही क्यों ... अपने अंदर ढूढो ... मैं अक्सर उसकी बातों के विचारों में खोई रहती हूं ... टाइम मशीन पर भी परीक्षण असफल हो रहे है ...तो क्या मोहन की बात में अनुसार मैं कृष्ण से मिल सकती हूँ ... कुछ समझ नही आ रहा है ..., एक तरफ़ विवाह की तारीख़ भी नजदीक आ रही है और ... मेरा हृदय भी घबरा रहा है ... !! क्या करूँ मैं !!
दिनांक - 20 फरवरी 1982
मुझे समझ नहीं आ रहा मुझको क्या करना चाहिए ... कृष्णा के लिए तड़प बरती ही जा रही है , वो कंगन तो गए ... कभी कभी लगता है वो लड़का ही कही कृष्ण तो नहीं फिर उसकी बात याद आ जाती हैं कृष्ण को बाहर नहीं अंदर ढूढों !! योग से क्या सच मे हम जा सकते है समय से पीछे ... मैंने अपने मंगेतर जी को ये बात बताई , वो अब मेरे अच्छे दोस्त भी है , विज्ञान प्रेमी होते हुए भी मेरे इस विश्वास को उन्होंने मौका दिया और मुझको वो योग के आचार्य के पास ले गए ! वहाँ जाकर पता चला इसमें समय काफी लग जाएगा पर मेरे पास है नहीं इतना ...मेरे श्याम अब आप ही कुछ रास्ता निकालो !!
27 फरवरी 1982
अरे तुम्हें खुशखबरी देनी है मेरी शादी की तारीख 1 साल आगे बढ़ गयी है वो भी कृष्णा की कृपा औऱ मेरे दोस्त की वजह से हुआ है ... घर मे बहुत लड़ाई हुई है ...माहौल तनाव का है फिर भी बात बन ही गयी जैसे तैसे !! योग विद्या सीखने के लिए मैं वृंदावन के एक आश्रम में जा रही हूँ ... तुम्हे पता है घरवाले कैसे माने क्योंकि उन्होंने अपना तबादला वही करवा लिया ... शादी भी मेरी हो जाती पर कुछ कारणवस वो देरी में टल गई है ... खैर अब जो होगा देखा जाएगा ... मैं वृंदावन कृष्ण की मूर्ति लेकर जाने वाली हु ... बहुत खुश हूँ मैं !!
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डायरी में बस इतना ही लिखा था इसके आगे के पन्ने खाली थे हमको आखिरी पन्ना भरा हुआ मिला उसमे लिखा था |
प्रिय डायरी ,
मेरे जीवन के कठिन मोड़ पर साथ देने के लिए धन्यवाद , जब सबने ठुकरा दिया था तब चुनिन्दा लोगो ने ही साथ दिया मेरा , मैं सच मे उन सभी की आभारी हूँ ! मैंने तुझे जिस जगह से छोड़ा था अब तक काफी बदल गया है ... जिसकी कभी चाहत थी अब वो पास है मेरे ... कृष्ण कृपा मेरे पास तब भी थी और अब भी है ... पर अंतर इतना है कि मैं कृपा को महसूस कर पा रही हूं !!
तुम अपना ध्यान रखना इससे ज्यादा मैं अब तुम्हें नही बता पाऊंगी अभी मुझे अचानक से जरूरी काम आएगा है !! जल्द मिलती हुँ |
हरे कृष्ण !
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मन मे हम दोनों के कई सवाल थे ... ये तो अधूरी ही काहानी थी , ईशा और मैं एक दूसरे को देखे जा रहे थे , हम लोगो को कहानी पढ़ते हुए आधी से ज्यादा रात होगयी थी , अधूरे प्रश्न लिए हमने आँखे बंद कर ली , मन मे फिर भी कई सवाल थे क्या उन्हें कान्हा मिले हुंगे ... क्या हुआ होगा उनका ... कृष्ण पगली बनने के पीछे की आखिर क्या है कहानी !!
उत्तर केवल श्याम और उनके ही पास था |
पता नहीं कब सुबह होगयी , हम लोगो को उठने में देर होगयी थी , जल्दी जल्दी नहाकर हम लोग उन अम्मा के घर निकल पड़े , मेरा मन पता नहीं क्यों बेचैन था | वहाँ जब हम पहुँचे तो देखा अम्मा की तबियत खराब थी , उन्हें भुखार आया हुआ था , हम दोनों ने उन्हें घड़े में से पानी पिलाया और डॉक्टर को बुलाने लगे , अम्मा आँख बंद कर केवल कृष्ण नाम जप रही थी , पता नहीं वो हमे सुन भी पा रही थी या नही ..वो अपनी धुन में खोई थी ...मैंने ईशा को आसपास के लोगो को बुलाने को भेज दिया ...आचनक अम्मा उठी और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ मुझसे कहा - मेरे कृष्ण का ध्यान रखना उन्होंने ये मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कहाँ , शायद ये वही कहानी वाली मूर्ति थी , मेरे आंखों में से आँशु निकल गए ... उन्होंने मुझसे दोबारा बोला कि कृष्ण को आज पीताम्बरी बनना है पंडित जी को बता देना ... हरे कृष्णा कहते हुए वो बेहोश हो गयी मेरी गोद मे |
लोग और डॉक्टर आ चुके थे ... पर ... शायद अब उनकी आत्मा भी कृष्ण नाम लेते हुए कृष्ण में ही समा चुकी थी !! कृष्ण पगली की कहानी राज ही बनी रह गयी थी न जाने क्या सच था !! सब रो रहे थे चारो ओर ... उनका अंतिम समय मेरी गोद मे बिता था मुझे बहुत रोना आ रहा था ... ईशा भी दुखी थी बेहद | तभी मुझे अम्मा जी के अंतिम शब्द याद आए और मैं ईशा को लेकर मन्दिर की ओर जाने लगी ... आँखों मे हमारे आँशु थे और मन बेहद भारी पर करना तो था अम्मा का काम |
हमने पंडित जी को सारी बात बताई उन्होंने कहाआज तो सहयोग वश पिले कपड़े ही है ठाकुर जी के श्रृंगार में ... पंडित जी भी खबर सुन के दुखी हुए फिर थोड़ा मुस्कयरते हुए बोले वो तो कृष्ण की ही थी कृष्ण में ही चली गयी ... उनके आँखों मे ये कहते हुए आँशु आगये थे |
हम लोग आरती में खड़े थे लाइन में सबसे पहले लगे हुए थे !! सब आँख बंद कर आरती में खोए हुए थे तभी मुझे पता नही क्यों आँखे खोलने का मन हुआ मैंने ठाकुर जी को देखा तो पाया कि अम्मा जी उन्हें कंगन पहना रही थी आश्चर्य की बात ये थी आज श्रृंगार में कंगन थे ही नहीं पंडित जी ही हमे बोल रहे थे ऐसा , और अम्मा यहाँ ठाकुर जी की मूर्ति के पास ... मैं कुछ करती या बोलती उससे पहले मुझे चक्कर आगये जब होश आया तो पास में ईशा थी और कुछ लोग और थे ... मैं भागते हुए मूर्ति के पास गई वहाँ अब भी वो कंगन थे !! मैंने ये बात पंडित जी को बताई उन्होंने भी माना कि ये कंगन आरती के बाद ही आए है |
ईशा और मुझको सब समझ आगया था मैं अम्मा की जी की कुटिया में वो मूर्ति लेने गयी जो उन्होंने मुझे सौंपी थी ... वहाँ उनके श्याम के अलावा कोई नही था ... साथ था तो बस अधूरापन , उनकी कहानी भले ही अधूरी रह गयी हो परन्तु उनकी यात्रा अवश्य पूर्ण हो गयी थी |
जय श्री राधे🙏
हरे कृष्ण🙏
● krishnali★Radhika
जन्माष्ठमी विशेष रचना
Harshita.radhika88@gmail.com
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ReplyDeleteवाह सखी इतनी सुंदर कहानी को इतने प्यारे ढंग से हम तक पहुंचने का धन्यवाद... अम्मा जी जब गई तब तो आंसू ही आ गए मेरी आंखों में... इतना जीवंत चित्रण किया तुमने सारे दृश्य मानो मेरे सामने हो रहे हो.. ये कहानी इसका एक एक किरदार अपना सा लगने लगा.. अम्मा जी से जैसा जुड़ाव उन दोनो का हुआ वैसा ही हमारा भी हो गया..����❤️���� मैं तो अपने को ईशा मान कर पढ़ रही थी ��
ReplyDelete।।राधे राधे।।
।।कुंज बिहारी श्री हरिदास।।
।।हरे कृष्ण।।