" कृष्ण की लीला "
" कृष्ण की लीला.... "
कृष्ण ... कहाँ हो तुम !! श्रेया एक बार फिर बोल पड़ी , दिन में न जाने वो ये बात खुद से पूछती | उसके मन मे कृष्ण के लिए जो भाव था वो किसी को भी नहीं बता सकती थी ... शायद वो सोचती थी कि लोग इसको समझेंगे या नहीं !! इसीलिए जब भी कृष्ण का नाम उसे कही सुनाई देता तो वो चुपचाप मुस्कुरा देती ... ऐसी मुस्कान देती मानो उसके सामने सच के कृष्ण आगये हो |
अपने मन मे भाव अक्सर श्रेया एक डायरी में कैद रखती थी ... क्योंकि उसे लिखते हुए विश्वास रहता था कि कृष्ण जरूर पढ़ रहा होगा ...कितनी बार तो वो मुस्कुरा देती लिखते लिखते ; न जाने क्या क्या लिखती वो उसमें , किसी को नहीं बताती थी |कितनी बार तो डायरी उसकी घरवालों के हाथ लगने वाली थी , पर हर बार न जाने कैसे वो बच जाती आने से ... शायद उसके साथ उसके और डायरी की बीच की बात कोई और भी बचाना चाहता था |
युही अपने जीवन मे और उम्र में आगे बढ़ते हुए श्रेया के दिन तो बीत रहे थे पर आज भी पुकार उसकी वही थी ...
कृष्ण तुम कहाँ हो !!? |
एक बार श्रेया अपने 24 जन्मदिन के दिन मंदिर से आरही थी , इस बार भी जाने क्या मांगा था उसने जो वो मंदिर से निकलते हुए मुस्कुरा रही थी , पास में एक मूर्तिकार की उसे छोटी से दुकान दिखी ... ' अरे ये पहले तो यहाँ नहीं थी !! ' वो ये मन मे सोचने लगी |
कितना अजीब था पूरी दूकान में केवल राधारानी के विग्रह ही बनी थी ...सबमें श्री राधे नाम का श्रृंगार किया हुआ था , श्रेया खुद को रोक ही नहीं पाई और चल दी उस ओर ! |
जब वो वहाँ पहुँची तो छोटी सी दुकान खाली थी और जिस पर मूर्तिकार मूर्ति बनाता है वो भी खाली ही था ,
" कोई है क्या ? " हल्की सी आवाज में श्रेया ने बोला , जब थोड़ी देर तक कोई उत्तर नहीं आया तो इस बार लगभग चीखते हुए वो बोली ..."है क्या कोई यहाँ !!??"
उसने इतना बोला ही था कि तभी एक लड़का जिसकी उम्र दिखने में 15-19 साल की होगी टेबल के नीचे से कान में हाथ रखते हुए और मुँह बनाते हुए निकल आया !!
"क्या है तुमको इतना तेज क्यों चिल्ला रही हो !! " वो मुँह बनाते हुए बोला !!
श्रेया लड़के को देखते ही पीछे की ओर बढ़ने लगी ..., पता नही क्यों वो बस लड़के को घूर रही थी !
"अरे कुछ बोलोगी या बस मुझको ही देखोगी " लड़का हँस दिया |
उसके घुंगराले बाल बार बार आँखों मे आरहे थे , चेहरे पर और लगभग पूरे पर मिट्टी लगी हुई थी ...बालो को हटाते हुए फिर से मिट्टी लग गयी उसके चेहरे पर इस बार थोड़ी मिट्टी आँखों मे भी चली गयी !!
"आह.....!!! मेरी आँख ...अरे जल्दी कुछ बोलो अब " आँख मलते हुए वो बोला |
"वो... मैं ... " श्रेया पता नही क्यों हिचकिचाने लग गयी थी |
"आह ....जल्दी कहो ... मेरी आँख!! "वो आँखों मला ही जा रहा था |
"वो मुझे भी मूर्ति ... विग्रह चाहिए था एक !!"
"जो चाहिए देख लो इधर अभी मेरी दुकान आज ही खुली है तो ज्यादा है नही मेरे पास !! पर मैं 10 मिनट कुछ भी बना सकता हूँ इतना आशीर्वाद प्राप्त हो गया मुझको "आँखों को पानी से धोते हुए वो मुस्कुरा दिया |
"तो ... तुम्हारे पास कृष्ण का विग्रह मिलेगा क्या !! ?"वो शर्माते हुए बोली |
"नहीं ...बनाना पड़ेगा वो... !! "वो फिर से आँख मलने लगा |
"ओह ..." श्रेया इतना ही बोल पाई |
"तुम इधर अंदर आजाओ ... इधर से और अभी बन जाएगी 10 मिनट में अच्छा कुछ बताना है तूमको कैसी चाहिए क्या चाहिए अभी बता दो !!" एक आँख से आँख को मलते हुए और एक आँख से अंदर आने का रास्ता बताते हुए वो बोला |
श्रेया अंदर आगयी ... "सोचा तो है काफ़ी मैंने ...!!" धीरे से वो बोली |
एक आँख में हाथ रखते हुए वो बोला "तो तुम बना दो एक काम करो मैं मदद कर दूंगा तुम्हारी क्योंकि मेरी एक आँख खुल नहीं पा रही " वो इस बार अपनी दर्द भरी आवाज के साथ बोला |
"पर मैंने कभी बनाया ही नहीं ...!! रुको तुम्हारी आँख देखती हूँ मैं ..." श्रेया ने कहा
"तुम डॉक्टर हो क्या ?? " वो हँसने लगा |
"नहीं ..." वो झूठी मुसकान के साथ बोली |
"हर चीज की शुरुआत पहली बार ही होती है ... आओ जल्दी मैं मदद कर तो रहा हूँ न तुम्हारी ...तुम इधर बैठो और मिट्टी इक्कठा करो मैं अपना मुँह धोकर आता हूँ ! "
श्रेया ने अपने आस्तीन ऊपर की और बैठ गयी नीचे मिट्टी को इकठ्ठा करने ;वो लड़का भी आगया थोड़ी देर में उसके घुंगराले बाल गीले होकर अब और भी ज्यादा चमकने लगे थे , चेहरे पर अब भी मिट्टी लगी हुई थी हल्की हल्की , आँख थोड़ी सी लाल हो चुकी थी |
" तुम इधर बैठो और मन मे जैसी कल्पनाह वैसे बनाने की कोशिश करो ... मैं आगे से तुम्हारा सहयोग करूँगा !!"
श्रेया लड़के की आँख में देखते हुए बैठ गयी ... मिट्टी इक्कठा करते हुए बनाने लगी , वो लड़का भी उसकी मदद करने लगा और उसको निर्देश देने लगा कैसे क्या करना है ; श्रेया अपनी कल्पना अनुसार हाथ घुमा रही थी और वो लड़का उसके सामने बैठा था उसकी कल्पना को आकार देने में मदद करने लगा , श्रेया को हाथों को सही दिशा दे रहा था |
श्रेया अपनी कल्पना में खोकर मुस्कुराने लगी , वो लड़का भी उसको देख मुस्कुरा रहा था पर कुछ बोला नही ... बनाते बनाते मूर्ति अपना आकर श्रेया के मन के श्याम की तरह लेने लगी ... लड़के के घुंगराले बाल अब सुख चुके थे तो एक बार फिर उसकी आँखों मे लगने लगे ...श्रेया की मुस्कान को देखते देखते लड़के का हाथ एक बार फिर बालो में चला गया !!
इस बार फिर से उसका हाथ लग गया आँख में ... इस कारण आँखों में आँसू की कुछ बूंद मिट्टी में जा गिरी जिसमे मूर्ति बन रही थी ...उसके आँशु गिरते ही ऐसा लग रहा था मानो अब मूर्ति विग्रह बन गयी हो ... क्योंकि आँशु सीधा मूर्ति की आँखों मे जा गिरा ... विग्रह अब चमक रहा था ...क्यों ये तो नही पता !! आँशु तो घुल गया था मिट्टी में पर अपनी एक अनदेखी छाप छोड़ दिया था |
वो लड़का पीछे होकर आँख फिर से मलने लगा ! , ये हो गयी तुम्हारी मूर्ति तैयार , इसको तुम उधर भट्टी के पास रख दो जल्दी सूख जाएगा ; और 5 मिनट में घर चले जाना लेकर |
श्रेया हैरान थी अपनी कल्पना को सच मे देख उसको यकीन नहीं हो रहा था कैसे वो बना दी पहली ही बार इतना सुंदर !!
"पैसे ...!!" श्रेया मूर्ति की तरफ देखते हुए बोली उसकी नजर मूर्ति से हट ही नहीं रही थी !!
"मेरी माँ को दे दे ना तुम वो ... कल शायद मैं दुकान न लगाऊँ काम ह मेरेको थोड़ा ... वो देख नही सकती है लड्डू गोपाल की मूर्ति होगी उनके हाथ मे !! उन्ही को 1001 रुपये दे देना तुम |" आँखों मे पानी लगाते हुए बोला |
" 1001 ?? "
"तुम्हारी कल्पना को जिंदा जो करा है अब ... पहली बार मे ही देखो तुम क्या बना दी !! " वो मुस्कुरा दिया |
"आ.... ठीक है मैं कल दे दूंगी अभी रात हो गयी है तो अदि वापिस नहीं आपाउंगी" कृष्ण का विग्रह और बाहर की ओर देखते हुए बोली |
"अपना अभी फोन नंबर लिख दो ... क्या पता तुम भाग गई तो ... !! और ये जो नंबर लिखा है उसमें कॉल भी लगाओ ताकि सही नम्बर है या नही ये पता कर सकू मैं "
मुँह धोते हुए बोला |
जैसा उसने कहा श्रेया ने जल्दी जल्दी वैसा ही कर दिया क्योंकि अभी रात पास होने के कारण उसको देर भी हो रही थी ... विग्रह को हाथ मे लेकर वो सावधानी से बाहर की ओर जाने लगी , पता नहीं उसके मन मे क्या आया वो पीछे मुड़ी और लड़के को देखने लगी ... वो उसकी आँखों मे न जाने क्या ढूढ़ रही थी ... बस चुपचाप देख रही थी | पर थोड़ी देर बाद खुद को संभालते हुए चुपचाप चली गयी घर की ओर ... हाथ मे विग्रह को लेकर |
सारी रात उसने विग्रह को देखते हुए निकली ... वो चुप थी ... शांत थी ... न जाने क्यों आज कृष्ण को सामने देखते हुए भी कुछ नहीं बोली ... कितना अजीब है वैसे तो हमेशा पूछती चिल्लाते हुए कहाँ हो कृष्ण तुम , आज जब सामने है तो चुप है ! |
नींद में भी शायद कृष्ण ही उसको दिख रहे थे ... स्वप्न देखते हुए वो मुस्कुरा रही थी , सुबह जल्दी जल्दी नहाकर तैयार होकर मंदिर जाने लगी ... कृष्ण का स्थान उसने फूलो से सजा दिया था ... और सुबह सुबह खीर भी बनाई थी |
पर्स में पैसे और कटोरे में खीर लेकर वो मंदिर चली गयी ... पंडित जी से उसमें से भोग लगाया और बची हुई खीर मुझको दे दी | कल जिधर दुकान थी मैं उधर जाने लगी ...पर आज वहाँ कुछ नही था , कान्हा कहाँ गया वो ... नन में ये बोलकर वो ढूढ़ने लगी | उधर दुकान के पास जो पेड़ था वहाँ लड्डू गोपाल लिए एक औरत बैठी थी ... वो छोटी छोटी मूर्तियां बेच रही थी , इनमें से कुछ कल वाली भी थी ... श्रेया पहचानने की कोशिश करने लगी ... आगे बढ़ते हुए उसने देखा देखा कि वो देख नही सकती है ... श्रेया को लड़के की बात याद आई ...उसने अपने मन मे कहा " कही ये उस लड़के की माँ तो नहीं !! "
वो उनके सामने निचे बैठ गयी और उनका चेहरा देखने लगी ... "ये आपके बेटे के पैसे !! कल मैने उससे कृष्ण की मूर्ति ली थी !! "
श्रेया ने पैसे उनके हाथ मे रखते हुए कहा |
इतने में पास एक आदमी जिसकी फल की दुकान थी वो बोला 'शायद मैडम आपको गलत फहमी हुई है ... इनका तो कोई नही है !! ये तो पास की चाल में रहती है | "
"पर उस लड़के ने तो यही ही बताया कि उसकी माँ अंधी है और इधर ही मिलेगी .. कल यहाँ जिसकी दुकान थी ..याद नहीं क्या आपको !! " श्रेया दूसरी ओर ईशारा करने लगी कल जिधर उसने दुकान देखी थी |
"अरे ऐसा नहीं हो सकता मैं तो कई सालो से इधर ही हुँ ... हाँ पर एक हफ्ते से मैं अपनी तबियत खराब होने के कारण नही आ रहा था !! " वो आदमी अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोला |
"मेरा लल्ला ...!!! रहता है मेरे साथ !! " वो अम्मा इतने में बोल पड़ी , अभी तक उन्होंने पैसे लिए नहीं थे ... उनके हाथ मे लड्डू गोपाल थे |
"अरे ये लड्डू गोपाल को मानती है अपना बेटा ... उम्र के साथ शायद अब ठीक नही इनके मानसिक हालात ...मैं तो इनका पड़ोसी हुँ तो हम सब मिलकर मदद कर देते है खाना बनाने में बाकी काम मे ... कई सालो से ये अकेले है... खुद से करती है ये बात लल्ला लल्ला करके ... तो हमको तो आदत है अब !! " उस आदमी ने हल्के से बोला ताकि वो सुन न पाए |
श्रेया बस उन औरत की ओर बिन कुछ कहे देखी जा रही थी ... "ये नम्बर दिया था उस लड़के ने !! " अचानक से उसको याद आया ।
"अच्छा लगाओ कॉल " वो आदमी बोला
कॉल लगते ही उन औरत के पास बजने लगा !! श्रेया हैरान होकर देख रही थी !! , वो आदमी झटपट अम्मा के पास बैठ गया और उनका फोन देखने लगा ...
" ये 79 ..... तुम्हरा नंबर है ?? "
"हाँ !! " श्रेया हैरान होकर बोली |
"वो लड़का तुमको इनका नंबर पर क्यों दिया !! " उन्होंने इतना बोला ही था की तभी उनके ठेले पर ग्राहक आगये और वो उठ कर चले गए |
"अम्मा ये पैसे आपके बेटे ने कहा है आपको देने के लिए " श्रेया के मुहँ से निकल पड़ा ये |
ये सुन उन्होंने इस बार पैसे ले लिए !, श्रेया उनको और उनके लड्डू गोपाल को देखने लगी , उसे कुछ समझ नही आ रहा था |
"अम्मा ये मूर्ति कौन बनाता है ?" श्रेया ने उनसे पूछा |
"इन सबका इंतज़ाम मेरा लल्ला करता है | " ये कहकर वो मुस्कुरा दी , और कृष्ण कृष्ण नाम का जाप करने लगी मुस्कुराते हुए , फिर बोलने लगी " बहुत सेवा करता है लल्ला मेरा " पता नहीं क्यों इतना कहकर उनकी आँखों मे आँसू आगये |
अब इससे ज्यादा श्रेया कुछ न बोल पाई ..." बाहर से वो कितना भी खुद को कठोर दिखा दे ... पर अंदर से वो मोम की थी , वहाँ से वो उठ गई ... पर अचानक से उसे खीर का याद आया ! , " ये आपके और आपके लल्ला के लिए बनाई है !! " उनको देकर वो उठ खड़ी हुई !! ,
"ये मूर्ति कौन बनाता है इनके लिए !! " श्रेया ने उस आदमी से पूछा |
"काकी को भीख मांगना पसंद नहीं और ये कृष्ण भक्त है तो हमारे ही चाल के कुछ मूर्तिकार है वो देते है इनको मूर्तिया ... अदभुत ही है जो रोज ही सब बिक जाती है सारी, न जाने कैसे ... ये हम चाल वालो को अपने परिवार जैसा मानती है और हम इनको माँ जैसा |"
वो इतना ही बोल पाया था कि फिर ग्राहक आगये उसके |
श्रेया उन अम्मा को देखते देखते पीछे घर की ओर जाने लगीं ... उसके में प्रश्न तो थे पर पता नहीं वो पूछना क्यों नहीं चाहती थी ...चुपचाप वो घर चल दी |
घर पर मूर्ति के सामने चुपचाप बैठ गयी ... अचानक उसके मन मे कुछ आया और बाजार चल दी , कुछ वहाँ से सामान लाई और बाकी के काम मे लग गयी ... पर उसका ध्यान वो विग्रह अपनी ओर बार बार खिंचता मानो कुछ बोल रहा हो उससे |
अगले दिन फिर से नहाकर तैयार होकर ,और कुछ स्वादिष्ठ पकवान बनाकर वो चल दी मंदिर , पूजा करके और भोग लगाकर वो अम्मा के पास चल दी |
"आपके लल्ला की दोस्त हुँ मैं ....तो आप उसकी माँ हो तो मेरी भी हुई न माँ जैसी ... ये छोटा सा उपहार लाई हुँ आपके लिए और आपके लल्ला के लिए !! "
श्रेया मुस्कुराते हुए बोली |
अम्मा भी मुस्करा दी और धन्यवाद कहते हुए उपहार लिया |
" हमारे घर भी आना बेटा ... !!"
उनका हाथ पकड़ते हुए श्रेया बोली .... जरूर अम्मा !
जब श्रेया उठकर जाने लगी तो वो आदमी बोला |
"अम्मा और उनके लल्ला का जादू तो है ... जो हर बार कोई न कोई उनके लल्ला का दोस्त बन ही जाता है ! "
श्रेया मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गयी ... और उस दिन के बाद से वो रोज अम्मा के लिए कुछ न कुछ ले जाती ... उनसे बाते करती , अब उसने प्रश्न पूछना भी बंद कर दिया था ...' कहाँ हो कृष्ण !!'
अब वो उस कृष्ण के विग्रह के सामने यही पूछती 'कैसे हो कृष्ण तुम !! ' |
क्या पता कृष्ण उत्तर देते भी हो उसे ... श्रेया बताती नहीं थी किसीको ... क्या है उसके मन मे ... बस मुस्करा देती वो ||
~ राधिका कृष्णसखी
राधे राधे❤️
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Radhe Radhe 🙏🙏
May krishna bless you 💝
Hare Ram Hare Ram Hare Krishna Hare Krishna 🙏🙏