लालीलाल जु ....
श्री लाली जु आज शर्माते हुए श्रृंगार कर रही थी...आखिर उनके परम् प्रिय प्रीतम ने यमुना किनारे कुछ खास बात के लिए मिलने का वादा जो किया था.... लाली जु श्रृंगार करते हुए अपने प्रीतम को याद कर रही थी... ऐसा लगता वो श्रृंगार खुद का नहीं आप के प्रीतम का कर रही हो...अपने प्रीतम के ख्याल में इतनी खो गयी कि अपने प्रतिविम्भ मे उनको अपने प्रीतम की स्वर्ण रूपी छवि दिखने लगी.... ये देख वो और शर्माने लगी... प्यारी लाली जु जब भी शर्माती उनकी आँखे छोटी हो जाती...और गालों की लालिमा अपने आप बढ़ जाती...मानो उनकी सुंदरता में पूर्णिमा सा चाँद जन्म ले लिया हो!!!
वो अपने ख्यालों में खोई ही थी तभी उनकी माता श्री ने किसी काम से रसोई घर मे बुलाया...अब प्रीतम से मिलने की चाह में गो इतनी खो रही थी कि उनके हाथ से बर्तन अपने आप गिर जाते.... माँ को लगा शायद उनकी लल्ली को कमजोरी हो गयी हो... उन्होंने उन्हें दूध गर्म करके उनके कमरे में ऊपर जाने को कहा.... परन्तु लाली जु कोई भोला सा बहाना बनाकर घर से जैसे तैसे निकली...उनके कोमल पैर तीर्व गति से अपने गंतव्य की ओर चले जा रहे थे...यमुना किनारे वो कृष्ण को इधर उधर देखने लगी.... अब तो अंधेरा भी हो चला था... समय बीतता जा रहा था और लाली जु की धड़कन भी.... वो सब कुछ जानने के बाद भी ये खेल खेलना चाह रही थी.... शायद प्रेम रूपी नाटक में कुछ तो आनंद होगा....जो अलबेली सरकार को ये प्रेमिका का किरदार इतना प्रिय है!!लाली जु बेचैन मन से इधर उधर भागने लगी... यमुना किनारे आज जल भी उनके समक्ष ज्यादा शांत लग रहा था.... वो अपने चुन्नी को तेजी से दबा कर... कृष्ण को याद कर रही थी.... उनकी आँखें भर आने से पहले ही.... उनको अपने प्रीतम की बांसुरी की आवाज दूर एक पेड़ के पीछे से आई...वो दौड़ कर वहाँ गयी... सुध बुध खोकर....पेड़ के पीछे कोई नही था... न जाने उनके प्रीतम अब कौनसा नया लेख जोड़ रहे थे .... लाली जु को जब कोई नहीं दिखा तो उन्होंने उस पेड़ को जोर से गले लगा लिया... अपने प्रीतम का नाम लेकर.... उन्होंने इतना किया ही था तभी एक और पेड़ के पीछे से बाँसुरी की आवाज आई....लाली जु पुनः दौड़ कर गयी पेड़ के पास और इस बार बिना कुछ सोचे पुनः पेड़ को गले लगा लिया.... इसके बाद एक के बाद एक .... पेड़ो के पीछे से बाँसुरी की आवाज आती और लाली जु सबको गले लगाती जा रही थी.... अचानक से एक यमुना घाट का आखिरी किनारे वाले पेड़ को जैसे ही वो गले लगाने जा रही थी...वहाँ पर उस पेड़ की जगह उनके प्रीतम प्रकट ही गए.... जिस प्रकार लाली जु पेड़ को कस कर गले लगा रही थी ... वैसे ही उन्होंने अपने प्रीतम को गले लगाया और उनका नाम लेती रही... उनके अश्रुओं की धारा बह रही थी....मानो वो सिंचाई कर रही हु अपने प्रेम रूपी खाद से.... लाल जु उनके अश्रु पोछने का प्रयास करने लगे .... इतने में लाली जु उनका हाथ हटाते हुए बोली.... "बहने दो इनको.... जितना इतना रोकने का प्रयास करूंगी... उतना ही ये और तड़प बढ़ाएंगे तुम्हारे लिए....!!"
"तो अच्छा है न.... फिर तो और भी ज्यादा प्रेम बढेगा !!" लाल जु मुस्कुराते हुए उनको अपने पास बैठा कर ....अपने हाथों से उनके अश्रुओं को पोछते हुए बोले!!
"सागर को कही सूखते हुए सुना है क्या... भले ही नदी अपना रास्ता बदल लें.... सागर उसी जगह उसका इंतजार करना नहीं छोड़ता.... उसी प्रकार तुम भले ही हमारे प्रेम को भूल जाओ मैं नहीं भूलूंगी.... ये अश्रु मुझे याद दिलाते रहेंगे सागर रूपी प्रेम की...!"
"नदियां रास्ता जरूर बदल सकती है पर उसका गंतव्य कभी नही बदलता... उसको मिलना सागर में ही होता है.... हे!! मेरी प्राणों से भी प्रिय... जिस प्रकार जीव चाह कर भी स्वास लेना नहीं भूल सकता .... उसी प्रकार तुम मेरी स्वास हो.... जिस दिन मैं तुम्हें भूल जाऊंगा... मैं खुद का अस्तित्व खो दूंगा.... तुम और मैं एक ही तो है... बस दो अलग कोण के प्रतिभीम्भ....!!"
लाली जु लाल जु के आँखों मे देख कर कुछ कहने ही का रही थी... तभी उनकी सखी की आवाज आगयी की उनकी माँ उनको ढूढ़ रही है.... लाली जु बस एक मुस्कान के साथ उठी... लाल जु की आँखों मे देख उन्होंने एक बार आँखे इस प्रकार झपकाई मानो मुख के शब्द कम समय के कारण आँखों से कह दिए हो....लाल जु भी मुस्कुराहट के साथ उठे और जैसे ही लाली जु जाने को मुड़ी.... उन्होंने उनके बालो में फूल लगा दिए... लाली जु पीछे मुड़ कर उनको देख मुस्कुराने लगी.... और धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए.... पीछे पलट पलट कर लाल जु की मुस्कुराहट देखते हुए वो सखी के पास चली गयी...जल्द मिलने का वादा लेकर!!||
©राधिका कृष्णसखी
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Radhe Radhe 🙏🙏
May krishna bless you 💝
Hare Ram Hare Ram Hare Krishna Hare Krishna 🙏🙏