रमणा सखी

 




हे कृष्ण ...

                तुमको प्रिय लिखने का साहस नहीं है अभी मेरे अंदर ... क्योंकि प्रिय अपना तुम्हें किस हक से कहूँ  मुझे तो ये भी नहीं पता !! ... पर फिर भी ये पत्र तुमको इसीलिए लिख रही हूँ क्योंकि अब मुझसे रहा नही जाता है ... मैं अब और बोझ नहीं रख सकती मन मे ... और न ही पछतावा भी ... कल मैं यहाँ से हमेशा हमेशा के लिये जा रही हूँ मुझे पता ही नहीं चला कैसे इतने समय यहाँ बीत गया और अब अंतिम दिन भी आगया |

मैं ये जानती हूँ हम कभी नहीं मिल सकते क्योंकि मिलने के लिए पहले बराबर का होना होता है न... कहाँ तुम राजकुमार और मैं ... तुमको तो शायद याद भी नहीं होगी हमारी पहली मुलाकात ... पता है जब एक बैलगाड़ी रास्ता भटक गई थी और तुम खुद उसमे बैठ रास्ता बताने आगये थे ... मैं उसी में बैठी तुमको पीछे से छुपके ताक रही थी ... तुम्हारी आवाज जब मैंने पहली बार सुनी तो ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई शहद को जिव्हा की जगह कानो में मिला रही हूँ ... तुम्हारा वो खिल खिलाना मुझे वसन्त के समान लग रहा था ऐसा लगता मानो आसमान से पुष्पो की वर्षा हो रही हो ... तुम्हारा चेहरा तो उस दिन अच्छे से नहीं देख पाई थी  ... पर तुमको पीछे से देख ही मैं मानो सब कुछ भूल चुकी थी ...मन कर रहा था बस देखते ही रहु तुम बस युही सामने बैठे रहो और मैं तुम्हारे पीछे  !!

तुम्हारे हाथ जब रास्ता दिखाने के इशारे कर रहे थे तो मैं उनको निहार रही थी ... तुम्हारा शरीर इतना कोमल प्रतीत हो रहा था कि मन कर रहा था तुमको सभी कठोर वस्तुओं से दूर ही कर दु ... सफेद वस्त्र तुम पर चांदी जे समान लग रहे थे ... और तुम्हारी सुंगध मुझ पर जादू कर रही थी ... मुझे खुद भी समझ नही आ रहा था की रोग मुझे होगया है या स्वयं तुम ही रोग का कारण हो !!

जब तुम चले गए थे ... तो मेरा मन बेचैन हो उठा ... मुझे क्या हो रहा था मैं क्या कर रही थी मुझे समझ ही नहीं आ रहा था ... बार बार मैं तुम्हारे शब्दो को मन मे दोहराती ... तुम्हारी उन अधूरी झलको की दोबारा कल्पना करती और फिर खो जाती एक अलग दुनिया मे ...मैं अपनी कुटिया के दरवाजे को पता नही क्यों ताक रही थी ऐसा लग रहा था जैसे तुम अभी अंदर आओगे !! 

रात को मुझे नींद ही नही आ रही थी थकान के कारण घरवाले सो चुके थे और मै टूटी खिड़की से चंद्रमा को निहार रही थी कि तभी पता नहीं कैसे अचानक से तूफान आ गया और मैं खिड़की बन्द करने के उपाय देखने लगी ... खिड़की जैसे तैसे बन्द हुई की वैसे ही बाहर किसी चिड़िया की ची ची करने की आवाज आने लगी ... मैं हिम्मत करके बाहर गयी वहाँ घुप अंधेरा था ... बादल से बिजली निकल रही थी इस कारण रोशनी से बाहर के पेड़ और डरवाने लग रहे थे ...मैंने एक पेड़ तक जाने की हिम्मत जुटा ली जैसे तैसे ... क्योंकि आवाज उसके पीछे से आ रही थी ... अपना घागरा पकड़ते हुए मैं धीरे धीरे आगे बड़ रही थी ... बार बार बिजली की बदल की आवाज से मेरा दिल जोर जोर से धड़क भी रहा था ...मैं जल्दी से उस पेड़ के पास जाकर उससे चिपक गयी क्योंकि वो काफी बड़ा और चोड़ा था ... मैंने हल्के से झांक कर आगे की ओर देखा कि कहाँ है वो चिड़िया आखिर क्योंकि अचानक से ही आवाज कम होगयी थी ... मैंने देखा कि ... वहाँ वही था लड़का ... जो मुझे पहले मिला था जिसकी वजह से मेरी नींद गायब थी अब उसको सामने देख लग रहा था मानो दिल भी गायब हो जाएगा क्योंकि वो बहुत तेज धड़कने लगा था ... मैं चुपचाप से उसको देख रही थी ... वो उस चिड़िया और उसके बच्चों को अपने ऊपर के वस्त्रों में लपेट कर रख रहा था ... आसमान से बिजली की रोशनी से वो चंद्र के समान प्रतीत हो रहा था ... पहले मुझे उसका फिर से पीछे का हिस्सा दिख रहा था ...पर अचानक से वो मुड़ा ... और मैंने उसका मुखड़ा देखा ... बिजली भी तभी चमकी ... एक पल के लिए मुझे तो लगा जैसे कोई वो स्वर्ग से उतरा देवता हो ... उसकी आँखें जो पक्षियों की चिंता में डूबी हुई थी वो मुझे सागर लग रही थी ऐसा लग रहा था कि जितना इस सागर में डूबने के प्रयास करूँगी उतना ही आंनद का आभास होगा ... उसके कान और उसके छोटे से कुंडल मुझे सुंदर पेड़ो की डाली लग रही थी कि मानो धरती माँ का सुंदर सृंगार हो ... उसकी छोटी सी नाक को देख मैं मुस्कुराई जा रही थी पता नहीं वो मुझे किसकी याद दिला रही थी ... शायद मैं जहाँ से आई हूँ वहाँ की ...इसीलिए मुझे उससे और अपना पन लग रहा था ... उसके होंठो को देख मैं समझ ही नहीं आ रहा था किससे उनको जोड़ कर व्याख्या करुँ ... !!

सफेद वस्त्र उसने अपनी ऊपर के तन से हटा कर चिड़िया एवं उसके बच्चों को उनमे लपेट लिया था ... अब तो उसका चंद्र सा शरीर मुझे सूर्य के समान सा प्रितित हो रहा था !...बारिश के कारण उसका शरीर भीग चुका था ... उसके गीले केशो में बूंदे मोती के समान चमक रही थी ... और उसका तन ऐसा लग रहा था मानो उगता हुआ सूर्य नदी में अपने प्रेम ई छाप छोड़ रहा हो ... ये बारिश के कोमल बूंदे ... कहीं उसको चोट न पहुँचा दे पता नहीं क्या क्या मैं तब सोच रही थी ... मुझे पहली बार अपने मनुष्य होने पर अफसोस हो रहा था ... काश मैं वो चिड़िया होती तो ...!!



उसको देखते देखते न ही मुझे समय का भान हुआ न ही ये पता चला वो कब गया ... बारिश में भीगने के कारण शायद मैं भीग चुकी थी और बेहोश हो गयी थी ... सुबह उठी तो देखा सब कुछ आसपास तहस नहस है ... कही घरवाले मेरे लिए परेशान तो नहीं हुंगे ये सोच मैं घर की ओर भागने लगी ... पर इतने में मुझे ध्यान आया कही उसका ...तो मैं दौड़ कर उसी पेड़ कर नीचे गयी जहाँ वो बैठा था ... वहाँ अभी भी बहुत हल्के से उसके चरणों के छाप थे ... मैं उनको स्पर्श कर मुस्कुराने लगी पता नहीं क्यों ... मैंने देखा वहाँ उसके वस्त्रों का पतला सा धागा भी गिरा था शायद कल रह गया हो ... मैंने वो अपने हाथों में बांध लिया और उसके चरणों के छाप को अपनी चुन्नी से ढक कर घर की ओर चली गयी |


फिर पता है क्या हुआ ... हम कल ही तो आए थे तो घर वालो के साथ मैं व्यस्त थी काम करने में ... इतने में माँ अचानक से मुझे बुलाने लगी पानी के लोटे के साथ... जब मैं बाहर आई तो देखा कि तुम आए हुए थे अपने सखाओं साथ कुछ काम से ... हम इससे पहले तुम्हारे राज्य से होकर आ रहे थे तो माँ तुमको जानती थी ... वो मुझे तुम्हारे चरणों को धोने के लिए बुला रही थी क्योंकि तुम अतिथि थे और हमारे वहाँ नियम था ... मुझे नहीं पता का समय मैं कैसे खुद को संभाल रही थी ... तिरछी नजरों से तुमको देख रही थी नजरे मिलाने की हिम्मत नही थी मेरे अंदर ... तुम्हारे सखाओं के चरण तो मैंने धुला दिए थे जब तुम्हारी बारी आई थी तो मेरे हाथ काँपने लगे थे... चरणों मे जल डालते डालते लोटा मेरे हाथों से नीचे गिर गया ...और उसको उठाने में तुम्हारे चरण स्पर्श हो गए थे ... चरण तुम्हारे ऐसे लगते जैसे कि माखन हो ... पता नहीं कैसा लगता होगा हर उस माटी के कणों को जिन पर तुम्हारा स्पर्श हुआ होगा ... उन कुछ छणों के स्पर्श ने तो मेरी स्वास ही अटका दी थी ... ये धरती माँ की स्वास न जाने कितनी बार तुमने अटकाई हो !!


मुझे तो तुम्हारी बातें , तुम्हारी मुस्कान , तुम्हारा चेहरा ...बस वही दिखाई दे रहा था पता नही कब तुम्हारे जाने का वक्त भी आगया ... जाते हुए तुमने पानी मांगा जब मैंने काँपते हुए हाथों से तुमको पानी दिया तो उस वक्त पहली बार मैंने तुम्हारी आँखों मे देखा ... भले ही कुछ छणों के लिए जब हमारे नयन टकराये तो मुझे लग रहा था मानो प्राण ही निकल गए हो ... !!

तुम्हारे कोमल हाथ लोटे को पकड़ते हुए मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था मैं क्या क्या देखु ... जब पता है तुम लोटा ऊपर करके पानी पी रहे थे तो कुछ बूंदे तुम्हारी ठोडी में से तपकर नीचे गिर रही थी ... तुम्हारे वस्त्र हल्के भीग चुके थे ...मैं तो ये सोच रही थी कि ये लोटा नसीब वाला है या ये जल ... आँखे नीची कर मैंने लोटा लिया और उसको हृदय से लगा तुमको जाता हुआ देख रही थी !!




मैं पता है सारा दिन उस धागे को ...उस लोटे को देखते हुए गुजारती थी ... और कभी तुम्हारी ज्यादा याद आती तो वहाँ चली जाती उस वृक्ष के पास जहाँ तुम्हारे चरणों के चिन्ह थे ... मेरा मन तो यहाँ से जाने का कर ही नहीं रह था पर ज्यादा दिन यहाँ नहीं थे मेरे तो ये सोच अक्सर उदास भी रहती पर तुम्हारे बारे में सोच अक्सर मुस्कान आ ही जाती !...तुम तो अपने गुरु के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने आए हो ... इसीलिए अक्सर बाहर ज्यादा नही निकलते हो ... कितनी मुश्किलों से तुमको देखना होता था बता नहीं सकती ...अपने सखाओं के साथ तुमको मुस्कुराता देख मेरा भी मन करता काश कभी तुम भी मुझे देख मुस्कुराओ ...!!



तुमको याद पता नहीं होगा कि नहीं जब भंडारे में तुम आए थे और मैं खाना परोस रही थी ... तुमको खाते हुए देख लग रहा था जैसे मेरा पेट भी उस दिन तृप्त हो गया हो ...तुम्हारी उंगलियां जब भोजन में भीग जाती तो मै सोचती ये काश मैं तुम्हारे हाथों की अंगूठी होती कम से कम तुमको और पास से तो देख सकती  ... तुम मुझे हर काम करते हुए भाते हो...चाहे तुम्हारा बोलना हो ...चलना हो ... समान उठाना हो ... लड़ना हो ... सब कुछ ... मैं अक्सर सोचती पता नहीं मैं तुमको कैसी लगती हूँगी ... फिर मुझे याद आता एक राजकुमार को साधारण लोग कैसे ही लग सकते है !! 




दिन पता नहीं कैसे बीत गए और जल्द ही मेरी और तुम्हारी अंतिम मुलाकात भी आगयी जिसको शायद मैं अपने अंतिम समय या फिर अपने हर जन्म तक याद रखूं ... जब मैं तुम्हारे आश्रम में आई थी फूल देने और तुम आए थे गुरु जी की आज्ञा से मेरे पास फूल लेने ... तब एक सफेद फूल मेरे केशो के धागों से अटक गया था ... तब तुमने हल्के से उसे वहाँ से हटा कर मेरे हाथ मे रखते हुए मुस्कराते हुए बोला था " शायद ये पुष्प तुम्हारे लिए ही रुका है ... इसीलिए जाना नही चाह रहा ... क्यों सखी !! "  मेरा तो सारा तन ही कांप रहा था सुन कर ये ... एक तो तुम्हारी वाणी इतनी मधुर है ऊपर से तुम अब इतने मधुर शब्दो का अगर प्रयोग करोगे वो भी मेरे लिए ...तो तुम ही बताओ क्या ही हाल होगा मेरा !! 

इतना बोल तुम मुस्कुराते हुए पीछे मुड़ गए और तुम्हारा एक सखा जो तुम्हारे पीछे खड़ा था वो तुमसे पूछने लगा था कि मैं तुम्हारी सखी कैसे होगयी तो तुमको याद तो होगा न ... " इन्होंने मूझको जल पिलाया था याद न ...तो मैं किसीका ऋण नहीं रखता इसीलिए इनको सखी बना लिया !!" और फिर तुम अपने सखा साथ चले गए थे वो अंतिम बार था जब तुमको मैं देख रही थी क्योंकि अब कल प्रातः ही मैं वापिस अपने गाँव जा रही हूँ पता नहीं अब कब होगा मिलना ... मिलना पता नहीं संभव भी होगा या नहीं ... पर जो भी है मैं वापिस अब अकेले नहीं जा रही तुम्हारी यादों को ले जा रही हूँ ... तुम्हारे उस वस्त्र के धागे को जिसने मेरे  हृदय को जकड़ लिया है ... तुम्हारे उन चरणों की धूल को ... जिसका स्पर्श याद कर आज भी मेरी ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती है ... तुम्हारे उस नाम को भी ले जा रही हूँ जो तुमने मुझे दिया है ... तुम्हारी सखी होने का ... मेरा नाम अब जो भी हो उसके आगे मैं सखी लगा कर हमेशा तुम्हारी यादों को अपने अस्तित्व के साथ जीवित रखूंगी ...!! 



तुम्हारे जीवन मे जानती हूँ मेरा कोई स्थान नहीं है फिर भी मेरे जीवन मे तुम्हारा स्थान हमेशा रहेगा क्योंकि तुमसे मिलकर मुझे जो मिला मुझे भी नही पता क्या हो गया है मूझको ... मैं इतने दिन सो भी नहीं पाई ठीक से क्योंकि तुम्हारी यादें कभी मुझे सोने ही नहीं देती थी ...अब तुमसे दूर जा रही हूँ तो सारा जीवन उठी ही रहूँगी तुम्हारी याद में ... क्योंकि मैं नहीं चाहती अब कोई और तुम्हारे सिवा मेरे सपनों में भी आए !! 



भले ही भविष्य में मैं किसी की भी हो जाऊँ  ... तुम्हारी सखी मैं हमेशा ही रहूँगी ... मैं प्राथना करती हूँ अपने महादेव से की तुमको वो ढेर सारा प्रेम दे ... तुम्हारे जीवन मे प्रेम ही प्रेम हो ... तुम्हारी मुस्कान कभी भी गायब न हो ... और तुम्हारी आँखो में हमेशा प्रेम का सागर बहता रहे !!



ये पत्र मैं चाह कर भी तुमको नहीं दे सकती ... न जाने तुम क्या सोचोगे मेरे बारे में इसको पढ़कर ... कही उसके बाद तुम घृणा तो नहीं करने लगोगे मुझसे ? ये सोच मुझे घबराहट होती है ... जानती हूँ तुम मुझे कभी याद नही रखोगे पर मैं तुम्हारी नफरत का कारण नहीं बनना चाहती ... मैं खुश हुँ तुम्हारी वो सखी बन कर जो तुम्हारा हिस्सा न बन कर भी तुम्हारी दीवानी बन चुकी है !! 



बस इतना कहूँगी ... की तुम्हारे जीवन के कठिन समय मे भी तुम मुस्कुराना मत भूलना ... क्योंकि तुम्हारी मुस्कान देख कर तो दुख भी सुख बन सकता है ये कठिन समय क्या है !!





तुम्हारी सखी

रमणा सखी 


❤️


रमणा सखी पार्ट 2

रमणा सखी पार्ट 3



©राधिकाकृष्णसखी

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Comments

  1. अति सुंदर वर्णन 🌷🍁
    राधे राधे

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Radhe Radhe 🙏🙏
May krishna bless you 💝
Hare Ram Hare Ram Hare Krishna Hare Krishna 🙏🙏


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