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कृष्ण का फोंनम्बर!! ( एक उपाय कृष्ण के लिए...)

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  कुछ दिन पहले मेरे पास एक मेल (mail) आया था... जिसमे उन्होंने उनके ठाकुर जी से जुड़ा कुछ अनुभव सांझा किया था और उसके साथ ही उन्होंने एक विधि भी सांझा की थी.... जिसके द्वारा उन्होंने ठाकुर के साथ अपना जुड़ाव और ज्यादा प्रबल महसूस किया.... ये बिल्कुल कृष्ण का फोंनम्बर जैसा ही है....उनकी(सखी) ही इच्छा से मैं आप सभी के समक्ष भी वो विधि सांझा कर रही हूँ....श्री लाली लाल की कृपा से !! ★ रात को सोने से पहले अपने ठाकुर को जरूर याद करे.... क्योंकि नींद एवं स्वप्न की दुनियां को जादुई दुनियां भी कहते है.... और ये भी कहा जाता है कि इसके जरिए आप दूसरी दुनिया मे प्रेवेश भी कर सकते है.... तो सोने से पहले ये सबसे ज्यादा लाभदायक होगा| ★ सोने से पहले अपने ठाकुर से जुड़ा कोई भजन सुने.... उदहारण के लिए - गीत गोविंदम.... कहा जाता है ये ठाकुर का सबसे प्रिय गीत है.... बाकी आप अपने अनुसार कोई भी भजन, या नामजाप भी सुन सकते है| ★भजन सुनते समय अब आपको.... चिंतन करना आरंभ करना है... ऐसा चिंतन जिसमे आपकी सभी इंद्रिया सम्मिलित हो.... उदहारण के लिए.... गीत गिविंदम सुनते हुए आप मानसिक चिंतन कर रहे है आँखे बंद क...

कौन हो तुम जग्गनाथ?

  हे जगन्नाथ कौन है आप ?? आखिर कैसा जादू कर दिया मुझ पर.... बस मन कर रहा है आपको ही देखती रहूं.... पहले मुझे भीड़ पसंद नही थी.... मुझे नही पसंद था कि जब मैं आपसे मिलने आऊँ... तो भीड़ का हिस्सा बनू.... पर आज....आज तो मुझे भीड़ भी नही दिख रही.... अगर कुछ दिख रहा है तो.... बस आपकी दो बाहें... दो नयन.... दो कुंडल....और एक हृदय.... जो मुझे पुकार रहा है....मानो कह रहा है कि.... इस अधूरे हृदय को पूर्ण करदो....मेरे थोड़ा और समीप आ जाओ....!! जानती हूं प्रेम के बारे में किताबो में यही लिखा है कि प्रेम में दो नही एक होना होता है... पर हे प्राणनाथ.... मेरा ये हृदय तो पहले से आपका ही है.... तो कैसे करूंगी आपके अधूरे हृदय की पुकार को पूरा.... किताबो के हिसाब से मुझे आपमे मिलकर पूर्ण होना है...पर मेरे पूर्ण होते ही.... आपको कैसे निहारूँगी.... कैसे पहले ही भांति आधी रातों तक जगकर इंतज़ार करूँगी.... कैसे तुमको ताने दूँगी....और कैसे तुमसे अपने प्रेम का इजहार करूँगी ??? मुझे किताबो वाला प्रेम नहीं.... केवल तुम्हारा प्रेम चाहिए....जैसे मेरा हॄदय पहले से ही तुम्हारा है....मैं बस चाहती हु ये स्वास भी तुम्...

कृष्ण रोग

कृष्ण रोग    आज पता नहीं क्यों लग रहा है कि ये कोई सपना है.... यकीन नही जो रहा अभी इस वक्त मैं वृंदावन में हूँ.... मतलब सब पता नहीं कैसे अपने आप हो गया....सफर तो मेरा उत्साह में ही बीता आखिर क्या होगा कैसे दर्शन हूंगे.... वहाँ पहुँच कर भी आनंद महसूस हो रहा था.... मुझे तो पहले लगा था कि ठाकुर बारात लेकर करेंगे स्वागत पर जब कोई न दिखा तो लगा शायद व्यस्त हूंगे....अब यही है भगवान से प्रेम करने का परिणाम.... उनके हर फैसले को ऐसे ही कुछ बहाना बनाकर दिल बहलाना पड़ता है.... अरे माफ करना अभी जो मैं लिख रही हूं ये मैं अपनी नहीं किसी और कि कहानी लिख रही हूँ....और यहाँ अलग अपना रोना लेकर बैठ गयी... तो हुआ ये की हम जब वृंदावन पहुँचे तो उस वक्त शाम हो चली थी... तो हम दर्शन कही नही कर पाए औऱ एक धर्मशाला जैसी जगह रुक गए थे... अचानक सब सो रहे थे तब रात में आंधी शुरू हो गयी.... बाहर से डरावनी आवाज के कारण मुझे नींद नही आ रही थी.... तो फोन के टोर्च जलाकर मैं बाहर निकली .... वहाँ के बंद आंगन जैसी जगह में....और काँच जी खिड़की से बाहर की ओर देखने लगी....सब सो ही गए थे .... रात के 3 बज रहे थे.... मैं ...

सोच ले अच्छे से !!!

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  हल्के हल्के मैं तुम्हारे तरफ बढ़ रही हु....जानती हूँ ये तुम नहीं तुम्हारी मूर्ति है...वो मूर्ति जिसकी सब पूजा करते है.... जिससे सब प्रेम करते है.... पर मैंने तो प्रेम तुमसे किया है न कि तुम्हारी तस्वीर से....ये तो वही बात हुई.... प्रेमिका को विवाह से पहले बस तस्वीर दिख दी अपने प्रेमी की जो कि उसका दूल्हा है.... और कहने लगें.... अब इसी से विवाह करो... यही है तुम्हारा सब कुछ.... धत्त!!!!!.... हमको बेवकूफ न बनाओ....माना मैं थोड़ी बुधू सी हु.... पर अंतर पता है हमको असली नकली में....अरे रे....जानती हूँ ....अब कहेगा तू .... अरे ओ पगली हम भगवान है मूर्ति में भी वास है हमारा.... तो सुन मूर्ति में रहने वाले बड़े साहब...मूर्ति में तू भले ही रहेगा पर रूप तो तेरा मूर्ति वाला रहेगा न.... जैसे तू मूर्ति में कैद है.... आजकल की तस्वीर जैसे.... तो एक बात बता जब तुझे गले लगाने को मैं आगे बड़ूंगी तो ये तुम्हारे प्रिय पंडित जी तो मुझे मंदिर से डांठ कर बाहर निकाल दिंगे न.... ऊपर से तुझे देखने को लाइन ही इतनी ज्यादा लगी रहती है.... तो तू उस समय मुझे लाइन क्यों मरेगा ??? सबके सामने तो तुझे दस किरदार एक स...

कब भी आ सकते है मिलने वो...!!

  आह....कृष्ण....तुम पर ये पिला कपड़ा कितना सुंदर लगता है.... उनके मूर्ति के सामने खड़े होकर मैं उनको निहारते हुए बोल रही थी.... पिला रंग तुम्हारे तन पर सोने जैसा चमकता है...मंदिर में इतनी भीड़ हो रही थी कि... मेरा वाक्य अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि किसने मुझे धक्का मारकर आगे की ओर धेकेला... जिससे मेरा सर उनके गर्भरह की चौखट पर जा लगा... और मेरे आखों के सामने अंधेरा छाने लग गया.... मैं ऐसा लग रहा था मेरापुर शरीर घूम रहा है... पता नही चल रहा मेरे साथ क्या हो रहा है...अचानक से मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कोई है मेरे पास...मैं इससे पहले अपनी आँखें खोलती .... ऐसा लगा किसी ने मुझे छुआ.... और उसके छूते ही... एक अलगसे अहसास हुआ मानो पूरे शरीर मे तरंगे दौड़ गयी हो...मैंने घबराकर आँखे खोली.... तो पाया.... की वो ही मेरे पास थे... जिससे मिलने मैं आई थी.... पर एक ऐसे रूप में जो कल्पना से भी परे था... उनकी आँखें जादुई सी.... जो किसी नन्हे बालक के भाती निष्छल हो... जब वो अपनी पलके झपका रहे थे... तो मानो लग रहा था... मेरे हॄदय पर बाण चला रहे हो...उनका मुख ऐसे चमक रहा था मानो कोई पुष्प अपने यौवन के चरम सीमा प...

क्या लगता है? आएगा कृष्ण....!!

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  क्या लगता है? आज कृष्ण आएगा मिलने.... या फिर नही.... ये प्रश्न मैं खुद से कर रही थी या कृष्ण से पता नहीं.... पर द्वार पर नजर टिका कर बस मन मे कुछ न कुछ बड़बड़ाई जा रही थी.... कभी कृष्ण को कोसती तो कभी प्रेम जताती... आज बाहर मौसम खराब था.... पर मेरे हृदय की आंधी ज्यादा तीर्व थी बाहर के मौसम से.... " तुम भगवान हो न कान्हा... इसलिए न आते हो न .... मैं तो तुछ हु.... काहे करोगे प्रेम.... ये मैला तन.... ये मैला मन.... तुमको कीचड़ समान लगता होगा.... इसिलये नहीं आते हो न.... मैं भिखारिन हूँ.... इसीलिए रोज तुझसे प्रेम की भीख माँगती हूँ.... और तू राजा है तभी तो अकड़ में रहता है.... आखिर राजा रंक का कैसे प्रेम संबंध हो सकता है ?? क्यों सही कह रही हूँ मैं?.... क्यों देगा तू जवाब.... तेरा गला दर्द करने लगेगा....अपनी जुबान को मेरे लिए क्यों देगा तकलीफ तू??.... तेरी क्या लगती हु मैं.... और रिश्ता क्यों जोड़ेगा.... क्योंकि तेरा कोई फायदा थोड़ा होगा रिश्ता मुझसे जोड़ कर.... मुझे पता है तू क्यों नही आता मिलने मुझसे....तुझको शर्म आती है क्योंकि मुझको अपना कहने में....तभी तो प्रेम का इजहार करने में कतराता...

कृष्ण और उसका वृंदावन !!

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  कुछ देर हम ट्रेन पर बैठे रहे .... बाहर देख रहे थे तभी मथुरा जंक्शन आने को ऐसा मोबाइल से मुझे पता चला... उसी समय मैंने जबर्दस्ती कृष्ण के कान में एरफोन डाले और खिड़की पर्दे से ढक कर उसका ध्यान भटकाने लगयी.... बड़ी मुश्किल से अपने कारनामो में सफल होने के बाद .... बृन्दावन स्टेशन भी आगया... मैंने जल्दी से कृष्ण  को उतरवाया ... ट्रेन से उतरते हुए उन्होंने मुझसे कहा "ये तुम क्या हर चीज में जल्दी जल्दी करती हो... पहले बता देती यहाँ उतरना है... इतना धक्का तो नहीं मिलता...वैसे हम है कहाँ........" वो  ये बोल ही रहे थे कि तभी वृंदावन नाम म बोर्ड पढ़ते हुए अचानक से रुक गए.... "कुछ कह रहे थे आप ??" मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा "चलते है...आगे... !!" उन्होंने एक दम धीरे से कहा फिर हम स्टेशन से बाहर निकल कर ऑटो में बैठ गए... कृष्ण पूरे रास्ते शांत था..., वो बस बाहर देख रहा था... लग रहा था जैसे कुछ खोया हुआ ढूंढ रहा हो....जब ऑटो वाले ने हमे हमारी मंजिल पर उतारा... तो कृष्ण ने उतरकर सबसे पहले ... वृंदावन की माटी को बैठ कर छुआ... ऐसा लग रहा था... जैसे किसी पुराने दोस्त से ...