आँख मिचौली (birthday speciallll )
बहाना ही होती है हर चीज ...जो हमको जगत के स्वामी से दूर ले जाती है ...असल में ... वो बहाना ही रास्ते का एक भाग है उन तक पहुँचने का !! ... जिस माया से हम बच कर भाग रहे है उनकी शरण मे जाने के लिए ...वो उसी माया के पति है ... वही ही माया है !! ... तो उनसे दूर आखिर कैसे भाग पाओगे ? ... माया से डरो मत ... माया के साथ जो मायापति है न .... उन दोनों को साथ मे देखो !! भागना नहीं पड़ेगा फिर ... फिर बस ...महसूस करना पड़ेगा ...उसको !! जिसके बारे में तुम अभी सोच रहे हो !!
ये सब ....मैं नहीं कह रही ये सब मुझसे उसने कहा जिससे मैं मिली थी वृंदावन मे , वो कौन है ... कैसे मिली ये सब शुरू करने से पहले मैं उसकी बोली हुई एक सुंदर बात बताना चाहूँगी ..." प्रेम में केवल प्रेम ही होता है !! जहाँ पर .... लेकिन ... शायद ... आ जाए वो भी एक तरह से प्रेम हो सकता है पर फिर भी प्रेम नहीं है !! "
जब उसने मुझसे ये पहली बार कहा था तब तो मुझे इसका मतलब समझ नहीं आया ... पर अब मैं हल्का हल्का महसूस करने लगी हूँ, पहले मैं कृष्ण के बारे में सोचती थी कि श्याद वो मुझसे प्यार करते हूंगे पर अब मैं महसूस करती हूँ उस प्रेम को जो पहले मैं कल्पनाओं में जीती थी आज असल में उसको स्पर्श कर पा रही हूँ केवल और केवल उसकी वजह से !!!!
मैं पहली बार तो नहीं... पर काफी समय बाद उस बार शरद ऋतु की बेला के आसपास वृंदावन गयी थी , एक तरह से वो ग्रुप ट्रिप जैसा था, मुझे पहले से ही कृष्ण अच्छे लगते थे तो मैं उत्साहित थी उनके दर्शन और वृंदावन घूमने के लिए ... आखिरी बार तो बचपन मे गयी थी जो कि अब मुझे याद भी नहीं, हम लोगो ने मिलकर बस को बुक किया था, सब साथ मे गाते हुए झूमते हुए राधेकृष्ण के गानों पर आगे बढ़ रहे थे ... सच मे आनंद आ रहा था ...मन मानो उत्सव से भर उठा था !
जब मैंने बस के बाहर कदम रखा तो एक लंबी सांस ली... ऐसा लग रहा था मानो घर ही आगया हो मेरा ... सबके साथ मैं धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी, आसपास देखते हुए... याद करते हुए की शायद बचपन की यादों से कुछ याद आजाए ! ... सब कुछ मुझे आसपास रहस्य से भरा लग रहा था ... मतलब की ... मैं कृष्ण जी को रहस्य के रूप में देखती हूँ तो मुझे लग रहा था कि वो यही है ...और अभी कुछ करेंगे... जैसे वहाँ के बंदर को देख कर मैं सोच रही थी जब उसने मेरा प्रशाद छीन लिया कि ये भी उन्होंने किया है ... जब भी हवा चलती तेज तो मैं उनके बारे में सोच मुस्कुरा देती ... बाहर एक अलग दुनिया चल रही थी और मेरे भीतर दूसरी |
मैं ट्रेवल एजेंसी के साथ आई थी तो उधर ऐसा था कि कहीं भी कभी भी जा सकते है ... और साथ मे टूर गाइड का भी विकल्प था , अभी तो मैं अकेली कहाँ जाती तो मैं टूर गाइड और बाकी लोगो साथ आगे बढ़ गयी ... उस दिन हमने कुछ मंदिर के दर्शन किए आसपास जगह देखी कृष्ण जी से जुड़ी ... पता है उस समय मे भी मैं खोई हुई थी अपनी दुनियां में ... मैं हर जगह उनकी कल्पना करती और मुस्कुराती रहती !! ...सोचती मैं तो उनसे मिलने आगयी पर वो कब आएंगे !!
जब रात हुई तब तो मुझे नींद ही आ रही थी, पेट मे गुदगुदी सी हो रही थी , कृष्ण जी जल्दी आओ मिलने ... कभी ये सोचती ... तो कभी मैं भावुक हो जाती सोच की मैं उनकी अपनी भूमि पर हुँ ... पता नहीं क्या क्या सोचते हुए मुझे नींद आगयी |
सुबह जब उठी तो मैं इस बार दर्शन करने के लिए सज धज कर गयी क्योंकि मैंने सुना था वो श्रृंगार को काफी महत्व देते है ... मैंने सोचा क्यों न ये भी कर लिया जाए ... क्या पता तीर लग जाए निशाने पर !!
मुझे तैयार होते हुए देरी हो गयी थी ... सब लोग पहले ही निकल चुके थे, मैं फिर अकेले ही गूगल मैप के सहारे चल पड़ी, वहाँ का प्रसिद्ध मंदिर ......... के बारे में सुना था मैंने काफी, तो मैं चल दी उसी ही ओर , जब पहुँची तो भीड़ देख कर सर चकराने लगा ... मतलब... मेरे दिमाक में तो कृष्ण जी बाहें फैलाए खड़े हुए है ... और इधर उनसे मिलने की इतनी गजब प्रतियोगिता देख मेरा दिल टूट चुका था ... मुझे लग रहा था शायद मैं कोई खास नहीं हूँ उनके लिए.... खास तो सभी ही है...मुझमे क्या है ऐसा ... मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था ... मैं बाहर ही बैठ गयी ... और मन मे पता नहीं कौनसी लड़ाई करने लगी उनके मंदिर को देख!!
इतने में मेरे कंधे पर मुझे किसी का हाथ महसूस हुआ ... मैं उस ओर मुड़ी तो पाया , एक प्यारी सी लड़की जिसकी उम्र शायद 18 आसपास हो ... वो मूझको ही देख कर बैठी हुई थी ... मैंने उसकी ओर चौंक कर देखा, क्योंकि अभी तक तो मैं मन की दुनिया मे थी अचानक से बाहर निकलने में थोड़ी तो दिक्कत होती ही है !!
वो मुझसे मुस्कुराती हुई बोली - " क्या हुआ ... यही से मिलने का इरादा है क्या उनसे !!?"
मैंने हिचकिचाहट के साथ उत्तर दिया - "वो नहीं... बस जा रही थी अंदर ही ..." मुझे समझ नहीं आ रहा था और क्या ही कहुँ उनसे |
"उनके लिए भीड़ तो कभी कम नहीं होगी... बल्कि बढ़ती ही जाएगी ... तुम जिसका इंतज़ार कर रही हो ... वो भीड़ में ऐसे तो गुम हो जाएगा न!!" वो हँसते हुए बोली
"तो फिर क्या ही कर सकती हूँ इंतज़ार के इलावा !" मैंने मुँह बनाते हुए उत्तर दिया |
"उनके साथ एक खेल ...खेल सकते है !! "
"बिना उनके कैसे खेलेंगे ?" मैंने उदास होकर पूछा
"अच्छा तुम देखना चाहोगी ?... इस वक्त मैं भी उनके साथ खेल रही हूँ... तुम चाहो तो मेरे साथ चल कर आनंद ले सकती हो !!"
"कौनसा खेल ?? पर...."
"आँख मिचौली का ....!!"
मैं बस उसको देखी जा रही थी... क्योंकि मूझे उत्तर कुछ समझ नहीं आ रहा था !
" अरे .... तुम क्या सोच रही हो !! भीड़ से हटके उनका एक अलग रूप दिखाती हूँ तुमको ... चलो मेरे साथ !!"
वो खड़ी होकर चलने लगी मैं भी उसके साथ चल दी...चलते चलते मैंने उनसे पूछा !!
"ये भीड़ से हटके ... अलग रूप ? इसका क्या मतलब हुआ ...कितने रूप है उनके आखिर ?"
"अच्छा... तुम्हारे बहुत सारे दोस्त हूंगे ...तो सबके साथ तुम क्या एक सा व्यवहार करती हो ?... नही न.... सबके साथ अपने रिश्ते के अनुसार ही तो करती हो व्यवहार ... किसी के साथ तुम ज्यादा मजाक करती होगी तो किसी से केवल काम की बात !!"
मैंने मुस्कुराते हुए हाँ में अपना सर हिलाया |
"तो उसी प्रकार वो भी ऐसे ही है ...खुद से कुछ अलग मत समझो ... दर्द उनको भी होता है ...और खुशी उनको भी होती है ... फिर भी वो इनसे परे है ... पर फिर भी इन सबमें सम्मलित है!! "
"भगवान है न वो ?!!" मैंने उनसे प्रश्न किया
"हाँ भगवान तो है वो... तभी तो मंदिर में भीड़ के बीच है ... तुम भी मिल सकती हो उनसे वहाँ पर ... पर अगर उनसे अपना मान कर मिलना है ... तो फिर ...चलो मेरे साथ ... !!"
मैं मुस्कुराई और चल दी उनके साथ, रास्ते मे मुझे वो कृष्ण जी से जुड़ी हुई अलग अलग जगह और उनके बारे में बता रही थी ... और उनकी बातों में एक अलग सा उत्साह था... मतलब ऐसा लग रहा था वो किसी अपने की बाते कर रही हो ...बीच बीच मे सरमाए भी जा रही थी ... मुस्कुराए भी जा रही थी !!
हम चलते चलते एक ऊपर शिखर जैसी जगह में पहुँच गए जहाँ से बृज पूरा लगभग हमको दिख रहा था |
"तो यहाँ से तुमको भीड़ दिख रही है क्या ?" उन्होंने मुझसे पूछा
"नहीं तो....!!"
"और वो ...?? दिख रहे है !!"
"नहीं..."
"उनसे मिलने के लिए फिर तैयार हो जाओ !!... "
"सच्ची में वो आएंगे ?? कैसे मिलेंगे पर ?"
मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वो नीचे वापिस ब्रज की गलियों की तरफ |
" तुमको पता है वो इतनी आसानी से क्यों नही मिलते है ?"
"क्यों....!!" मैंने उत्साह साथ पूछा
" जब वो सामने आते है तब अंत आरम्भ कुछ शेष नहीं रहता ... प्रेम को करने के लिए पहले प्रेम को महसूस करना होता है !! उनको हमेशा खुद के सामने देखना क्या यहीं है प्रेम ? ... प्रेम तो वो है न... उनको हमेशा मुस्कुराता हुआ देखना !!"
"तो इसमें क्या है...हमको देख कर सामने तो वो खुश ही रहेंगे न हमेशा !!"
" हमेशा तो सामने ही रहते है... पर हम ही नहीं देख पाते उनको... क्योंकि वो भी उस दिन क्या इंतज़ार करते है जिस दिन हम उनको पहचानेंगे... जैसे तुम जब रोज अपने घरवालों के साथ रहती हो ... तब तुमको उनके साथ का उतना आभास नहीं होता है... और जब काफी समय बाद मिलती हो...तब उनका प्रेम, मिलने का उत्साह , साथ की खुशी !! वो अलग होती है न...."
वो मेरा हाथ पकड़ते हुए साथ साथ चल रही थी ... मैने अचानक से रुक कर पूछा " उनको दूर भेजना ही क्यों है जब वापिस मिलना है ही !!"
वो मुस्कुराई और मेरी आँखों मे देखते हुए बोली .... " जब बच्चे बड़े हो जाते है तो एक समय बाद वो भी तो माँ बाप से दूर इसीलिए जाते है न... ताकि आगे जब भी मिले तो उनको गर्व महसूस करा सके ... कुछ पाने के लिए कुछ बनने के लिए तो जाते है न ... तुम बताओ जरूरी होता है ... क्या जाना !! "
" ठीक ठीक है माना जरूरी है ... पर इतना क्यों समय लगाते है ... !! भगवान है तो जल्दी नहीं मिल सकते क्या ...उनके लिए तो सब मुमकिन ही है !!"
"इसका जवाब मैं तुमको थोड़ी देर में दूँगी ... अभी चलो मेरे साथ !!"
वो मुझे अपने साथ ले जा रही थी ... एक जगह अचानक रुक कर उन्होंने कहा "ये गाय और कुत्ते का बच्चा देख रही हो... इसको लो ये खिलाओ" बैग में से दो रोटी निकाल कर उन्होंने मुझे दी |
मैंने वैसा ही किया , मुझे काफी अच्छा लग रहा था अपने हाथ से खिलाते हुए...वो मुझे देख रही थी खड़े होकर , खिलाकर मैं उनकी ओर मुड़ी |
"जानती हो ये लोग कौन है ?" उन्होंने पूछा
"जानवर ...!!"
"इन्हें भी उन्होंने ही बनाया है जिनसे तुम यहाँ मिलने आई हो !! ... तो क्या उनको सिर्फ वो भीड़ ही प्रिय होगी ? ये नहीं है क्या उनके ?? एक कलाकार को अपनी हर एक कला से जुड़ाव होता है !! ये तो सब उनके दिल के टुकड़े है !!"
"हाँ ... ये तो है ... पर मैं समझी नहीं आप क्या कहना चाहती हो !"
"उनसे मिलना है तो ... उनकी बनाई हुई चीजो से मिलो ... उनको समझने का ... प्रेम करने का नया नया तरीका मिलेगा ...प्रेम शब्द सुनने में बहुत छोटा है... पर मतलब सागर से गहरा है...जब उनसे जुड़ी हर चीज को भी अपना मानने लग जाओगे ...तो वो ही हर जगह मिलने लग जाएंगे ... क्योंकि तुम जो उनकी हर पसन्द की वस्तु से मिल रही हो !!"
वो आगे बढ़ गयी ये बोलते हुए , मैंने पीछे से आते हुए उनसे फिर से एक प्रश्न किया ! "अब इस संसार मे हर कोई तो अच्छा नहीं है ... अगर हमको ही हानि होगयी तो...!!"
" कर्म मनुष्य के हाथ में है .... तुम कर्म करो ... बाकी हिसाब किताब उन पर छोड़ दो !! क्योंकि .... "
"क्योंकि ????" मैंने उनकी ओर देखा
अचनक से मेरी आँखों मे देख कर वो बोली ... तुमको "उनके साथ नृत्य करना है ??"
"हाँ... क्यों नहीं" मैंने उत्साह के साथ उत्तर दिया
मेरी बात पूरी भी नहीं हुई तो वो मेरा हाथ खिंचते हुए यमुना किनारे ले गयी |
"अपनी आँखें बंद करो... इस हवा को महसूस करके उनको याद करो !!"
मैंने वैसा ही किया था तभी वहाँ पर बारिश अपने आप शुरू होगयी , मैंने आँखे खोलकर देखा तो वो गुनगुनाते हुए गोल गोल घूम कर अपनी ही दुनिया मे खोई थी ...मैंने भी वैसा ही किया ... कुछ पल के लिए लगा जैसे मैं दब सुख दुख भूल गयी हुँ ... बारिश की बूंदों का स्पर्श शरीर मे एक तरंग महसूस करा रहा था... कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण बस यही कहने का मन कर रहा था मेरा !!
फिर अचानक से उन्होंने मेरा हाथ खिंचा और एक पेड़ के नीचे ले गयी और मुझसे बोली - "अगर मैं तुमसे कहुँ तुम्हारे पीछे वो खड़े है जिनसे तुम मिलने आई हो तो...!!"
मेरा दिल जोड़ से धक धक करने लगा .. पीछे मुड़ने की हिम्मत नही नही हो रही थी पर मन भी था... कुछ तो अजीब हो रहा था महसूस ...मतलब ये समझ लो... जिसका आप इतने समय से इंतज़ार कर रहे हो...और कोई कहे वो बस घर के बाहर ही है !! मन तो करता है भाग कर चले जाओ...पर एक घबराहट भी होती है !!!!!
वो मेरी आँखों मे देख कर मुस्कुराने लगी !! "डरो मत उनसे ... वैसे भी वो यहाँ नही आ पाएंगे मुझे ढूढने ... अरे तुमको बताना भूल गयी ... मैं और वो आँख मिचौली खेल रहे है... और यहाँ वो जब आएंगे तो मैं इस ब्रज की बेला के पीछे छिप जाऊंगी ... और देखना वो ढूंढ़ भी नहीं पाएंगे" वो शर्माते हुए बोली !
मैं उनकी बातें सुन समझने की कोशिश कर रही थी ... इतने में उन्होंने मुझसे फिर से कहा " ये जो ब्रज की लता है न ... एक बार उनको समझ गले लगा कर देखो...ब्रज के हर एक कण में उनका साक्षात वास है ... देखना तुमको बहुत अच्छा लगेगा !!"
मैंने बिना कुछ सोचे उनकी बात मान ली...अहा !! गज़ब आनंद था... आनंद भी नहीं परमानंद... बारिश की आवाज आ रही थी और मुझे लता को गले लगा कर लग रहा था ... जैसे वो फुसफुसा रहे हो ....!!!
"अरे कुछ बाद के लिए भी छोड़ दो...!!" मुझे छेड़ते हुए वो बोली ...मैं शर्मा कर दूर हट गई और मैंने आँखे नीची कर ली , इतने में मेरा फोन बज गया , पता चला बस रात को बरसाना जाने को है तो मुझे अब जल्दी निकलना होगा क्योंकि शाम हो चुकी थी , मैंने उनको ये बताया तो वो मुस्कराते हुए बोली ... "जाने से पहले यहाँ आओ !!"
पास में यमुना जी का घाट था ... बारिश अब रुक चुकी थी तो हम चल दिये आराम से, वहाँ पहुँच कर वो यमुना जी के किनारे बैठ गयी और बोली - "तुमको पता ये यमुना जी क्यों खास है !??!!"
"क्योंकि कृष्ण जी इनसे बहुत प्रेम करते है !!"
"न....क्योंकि ये उनसे से बहुत प्रेम करती है... उनका किसी से प्रेम करना कोई विचित्र बात नहीं है...सब उनके है ... तो वो प्रेम तो करेंगे ही न अपनो से... पर वो प्रेम उनको कई गुना ज्यादा करके वापिस कौन लौटता है ये बात है खास ... और वो प्राण अपने आप ब्रह्मांड का भी खास बन जाता है !! "
ब्रज की माटी अपने हाथ पर लेकर उन्होंने मेरे माथे पर लगाते हुए कहा "तुम कह रही थी न... वो भगवान होकर जल्दी मिलने क्यों नहीं आ सकते ...!!? पता है क्यों... क्योंकि हमारी कहानी लिखी जा चुकी है... एक फल को अगर तुम पकने से पहले खा लोगी ... तो क्या ? वो स्वादिष्ट होगा ?अपने असली स्वरूप में तो वह निर्धारित समय अनुसार ही आएगा न...!! उसी प्रकार उनका भी है... वो आज अगर मिलने आगये तो कल जो समय निर्धारित है जिसमे उन्होंने तुम्हारे लिए कुछ विशेष उपहार सोचा होगा... वो कैसे मिलेगा तुमको !! अगर वो रुक्मणि जी से पहले ही मिल लेते ... तो क्या कभी उनको वो प्रेम पत्र मिलता ?क्या कभी वो हरण करने आते ...!!?"
मैं उनकी बातें बस एकटक होकर सुनी जा रही थी ... मेरे मन मे उनकी छवि बनी जा रही थी... !!" आप मिलो हो उनसे ?? "मैंने उनसे प्रश्न किया |
"उनसे मिलना या उनको ढूढ़ना तो तुम कही भी सुन सकती हो... पर उनको पता है उनको कैसा लगता है जब वो मिलते ये या ढूंढते है ये सुन्ना चाहोगी ?"
मैंने झट से हा में सर हिलाया !!
"तो सुनो...
तैयार तुम होती हो...
पर शृंगार वो बनते है!!
नृत्य तुम करती हो...
पर धुन में समाहित वो होते है !!
मुस्कुराती उनके नाम से तुम हो...
पर उस समय तुम्हारे गालों की लाली
वो हो होते है ...
नाम भले ही तुम उनका लेती हो...
पर स्वास उनकी अटकती है!!
उनका बस चले तो सब छोड़ वो आजाए...
फिर भी कुछ वादों के जरिए वो खुद को रोकते है!!"
कैसा वादा मैंने उनसे प्रश्न किया ?
"जब वो आएंगे तुम्हारे लिए तुम वादा ... क्या उनको भी पहचान जाओगी !!... पर उनकी वो हालत न ... बता नहीं सकती मैं ... जो वो उनका उतावला पन होता है... और जो वो उनका मुस्कराना होता है... वो देखते भी ऐसे है जैसे मानो जाने नहीं दिंगे कही ! "
अहा... अब तो मुझे उस समय उनकी आसपास होने की बात से ही शर्म आ रही थी... बात घुमाते हुए मैंने उनसे पूछा - "अरे आपका नाम तो पूछना ही भूल गयी मैं !!?"
"नाम... मेरा नाम भी , काम भी सब कुछ उनको देदिया ... अब जो मेरा है वो ही है ...!!"
मैंने उनकी बातें सुन हल्का सा मुस्कुरा दिया... इतने में दोबारा आने का फोन बज गया ..."अच्छा अब मैं चलती हुँ... वापिस जाने का फोन आगया है !!"
उन्होंने मुस्कराते हुए मुझसे विदा ली और वो यमुना जी की ओर आँख बंद करके बैठ गयी, मैं वही थोड़े पास ऑटो में बैठ गयी बस के पास तक जाने के लिए ...थोड़ा दूर था वो वहाँ से... ऑटो वाला और सवारी का इंतज़ार कर ही रहा था इतने में एक बच्चा मेरे पास आकर एक कागज देते हुए बोला - "ये उन भौजाई को दे देना ... कहना भैया दिए है !!" वो जिनसे मैं अभी अभी विदा लेकर आई थी उसने उधर उनकी ओर इशारा करके बोला और फिर झट से भाग गया , मैंने पता नहीं क्यों बिना सोचें ही जिज्ञासा वस उसको खोला और उसमें लिखा था .......
"आखिर ढूंढ ही लिया न तुमको !!"
मेरा दिल... स्वास रुक सी गयी ... पता नही क्यों उसको पढ़ते ही...ऑटो वाले तभी ही चल पड़ा और एक तेज हवा के झौंके के साथ वो कागज भी वही उड़ गया जहाँ उसकी मंजिल थी... मैं पीछे मुड़ मुड़ कर देख रही थी...समझने की कोशिश कर रही थी हो क्या रहा है ... और जब समझ आया तब तक काफी देर हो चुकी थी ... मैं वहाँ से तो निकल गयी पर वो खास जगह और कुछ खास लोग उनकी बातें नहीं निकल पाई मुझसे!!
अभी ये लिखते हुए मुझे उनकी बहुत सी बातें तो याद भी नहीं रही है... पर वो आभास वो अहसास मैं चाहकर भी भूल नहीं पा रही... वहाँ से आने के बाद सब कुछ बदला सा लगने लगा है... समझ नही आ रहा मैं बदल गयी हुँ या फिर वो ...!! या फिर ये भी कोई नया खेल है उनका ||
● राधिका कृष्णसखी
✨राधे राधे✨
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं मेरे कान्हा ...!!💐 तुमको क्या दू ... समझ नहीं आता ... ये भी तुम्हारे द्वारा ही लिखाई गई है... तो ये गिफ्ट तो नहीं मान सकते है ... तो तुम ही बताओ तुमको क्या चाहिए ??
देखो कुछ मेहँगा मत मांगना अब तुम... क्योंकि तुमसे मेहँगा तो कुछ है ही नहीं न इस दुनिया मे...और तुमको ही कैसे देदु अब उपहार में !!
सॉरी मेरे बेकार जोक के लिए... पर मुझे पता है तुम इसको पढ़ रहे होगे... और सोच रहे होगे... खुद के जन्मदिन पर तो हंगामा करती है गिफ्ट गिफ्ट करके और मेरे खुद के में बड़ी बड़ी बातें करके मुझे टरका रही है...!!
हाँ अब क्या ही बताऊँ तुमको ... My dear thakur सा अब आपमे वो बात नहीं रही... क्योंकि अब आप बहुत खड़ूस होते जा रहे हो !! (Sorry 😂 मुझे पता है ये झूठ है ...पर जन्मदिन के दिन ज्यादा तारीफ करूँगा तो तुमको diabetes भी हो सकती है न...इसलिए balance करी हूँ)
अच्छा इसको मैं पब्लिक भी इसीलिए करी हुँ क्योंकि मुझे sorry कहना है तुमको... आजकल तुमको इग्नोर करती हूँ और अभी भी गिफ्ट का बहाना मार रही हूँ ... पर don't worry मेरे पास तुम्हारे लिए सरप्राइज है ...तुम तैयार रहो !!!!
Your time starts now !!
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Happy birthday kiiiiiiiiiissuuuuuuu🎉🎊✨🌸🌷❤️💟🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🤩😍😍🌻🌻🌻👻👻👻👻
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Manmohak sakhi
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