कृष्ण का पत्र

 सखी ...

तुम मुझसे पूछती हो न ...
कैसा होता है प्रेम !!
पता है जब पहली बारिश
धरती पर गिरती है ...
और जो अहसास
उस मिट्टी के कण को मिलता है...
वैसा ही लगता है प्रेम में...
बंजर हॄदय में
जब किसी के नाम की
फसल उग जाए...
तो वो बस उसके
प्रेम के स्पर्श से फलती है...,
वैसा ही मुझको लगता है !!
जब भी तुम मुझे याद करती हो ...
तुमको यही ही लगता होगा...
मैं कहाँ ही हुँ तुम्हारे पास ...
पर मैं ...सच में हुँ
समय के परे
ब्रह्माण्ड में समाया हुआ
गिनती में अनन्त
और विचारों में शून्य हूँ मैं !!
तुमको लगता है न
मेरा और तुम्हारा क्या रिश्ता है...,
तुमसे ही मैं हूँ
और मुझसे ही तुम हो !!
तुम को यकीन नहीं होता है न...
तो एक बार आँख बंद करके
शांत भाव से खुद से प्रश्न करो ...
तुम अगर नहीं होती ... तो तुम्हारी सोच मे
तुम्हारे हृदय में
तुम्हारी बातों में
कैसे होता मैं ?!!
हाँ ... मैं ही पूरा संसार हुँ...
पर मैं वो भी हुँ
जो तुम्हारे हॄदय में है ...
मेरे लिए ये बहुत खास जगह है...
मैं बता नहीं सकता कैसे
... जैसे नदी सागर से मुँह नहीं  मोर सकती है
उसी प्रकार आत्मा और परमात्मा
का मिलन भी निर्धारित है
फर्क बस रास्तों का होता है !!
और मुझे हर वो रास्ते जो तुमने चुने है
वो सभी पसन्द है
मुझे तुम पसंद हो!!

~ तुम्हारा अपना सखा ★

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