कृष्ण की सखी
कृष्ण की सखी
मैं आज बड़ी ही मन्नतों बाद आई थी रथ यात्रा में ... हर बार जब भी आने का प्लान बनाती थी कुछ न कुछ हो जाता और इस बार मैंने सुना था कि रथयात्रा वृंदावन से होते हुए आ रही है...,मैं बता नहीं सकती मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था .... इस बार मैंने सोचा जब मिलूंगी तो उनको उपहार में भी कुछ दूंगी ही आखिर मेरे सखा जो है वो ... तो मैंने उनके लिए खीर तैयार की और मैं चल दी रथ यात्रा के उत्सव की ओर ... पता है इस बार मैंने सृंगार भी किया हुआ था काजल लगते हुए मुझे शर्म आ रही थी क्योंकि मैं कभी कभी ही लगाती हुँ ... शीशे के सामने मैं खड़ी खड़ी मुस्कुराई जा रही थी सोच रही थी वो मूझको देख आखिर क्या सोचेंगे मेरे बारे में ... बार बार देखने पर भी मुझे कुछ अधुरा सा लग रहा था समझ नहीं आ रहा था आखिर क्या ...!!
यात्रा में भीड़ काफी थी और हर तरफ उनके देखने की होड़ थी ... मैं भी उस भीड़ का हिस्सा बन जुट गई दर्शन की ओर ... दर्शन तो मिले पर केवल कुछ ही समय के लिए ... और जो खीर मैं उनके लिए लाई थी भीड़ के कारण वो भी मेरे हाथों में राह गयी ... न मैं उनको ठीक से देख पाई न ही उनको खीर दे पाई ये सोच मेरी आँखें भर गई थी ... तप तप आँसू बहने लगे " क्यों रे कनुआ ... जब मिलना ही नहीं था तो बुलाया ही क्यों मूझको !!" मैं यात्रा को जाते हुए देख मन ही मन सोच रही थी ... मैं ज्यादा आगे नहीं चल सकती थी क्योंकि भीड़ में मेरा पैर दब सा गया था और अभी कुछ समय पहले ही वहीं चोट लगी थी मूझको तो वहाँ से खून निकलने लगा ... मैं साइड में बैठ कृष्ण को कोस रही थी ... उसको ताने देती जा रही थी और आँखे मेरी आँसू टपकाएं जा रहे थे |
खुद को संभलाते हुए मैंने उठने का सोचा पर उतने में ही मेरे बगल में कोई आकर बैठ गया ... वो कोई मेरी ही उम्र की लड़की थी ... नैन नक्श उसके काफी सुंदर थे ... माथे पर उसका टिका शोभा बढ़ा रहा था उसकी सुंदरता की ... मैं उससे कुछ कहती या वहाँ से उठती उससे पहले ही उसने बिना कुछ बोले मेरे माथे पर छोटा सा लाल टीका लगा दिया बिंदी सा लग रहा था वो ...
"अब आप लग रही हो पूर्ण रूप से उनकी प्यारी ...!!" मूझको मुस्कुराते हुए देख कर वो बोली |
" पर आपको कैसे पता कि मैं कृष्ण की.... "मैं शर्माते है बस इतना ही बोल पाई उससे
"इसमें पता क्या करना ... ये तो कोई भी बता सकता है अब इतनी धूप में इतना सज धज के ... रथ यात्रा को जाता देख कोई मन की आँखों से उनको पुकारेगा ...तो चलेगा ही न पता ... की वो उनका ही है ...!!" वो इतना बोल फिर से मुस्कुराने लगी
" हाँ ... उनके तो सभी ही है ... मैं कोई खास नहीं हूँ उनके लिए ... तभी तो मुझे धक्का मार कर भगा दिया उन्होंने " मैं आँखे नीची कर आँसू टपकाते हुए बोली हल्की सी आवाज में |
" सखी री ... क्यों उन्होंने आज नाराज कर दिया क्या आपको ...आपसे वो पर सच मे बहुत प्रेम करते है यकीन मानिए " मेरी आँखों मे देखते हुए वो बोली
"हाँ भगवान है सबसे ही करते है वो...!! नया क्या है इसमें ..." मैं आँसू पोछने लगी
"नया कुछ नहीं है ... है तो सब पुराना ही ...चलो एक छोटी सी कहानी सुनाती हुँ शायद नयापन महसूस हो कुछ आपको "
मैंने उसको देख छोटी सी मुस्कान के साथ सर हिलाया !
" तो ....एक सखी थी ... कृष्ण की ... मतलब कृष्ण की सखी ... प्रेम था उसको सवांरे से ... दिन रात सवांरे की याद में जाता उसका ... कोई भी काम करती तो किसी न किसी बहाने से उनकी याद उसे आजाती ... और जब भी ऐसा होता तो वो उनकी तस्वीर की तरफ देख कर उनसे उपहास करती की "का रे बावँरे इतना याद करता है क्या मोको तू ...नहीं जा री तोको छोड़ कर ...चल अब करने दे मोको काम !! " उसको पता भी नहीं चलता और
न जाने कितनी बार दिन में वो टाँग खिंचती रहती उनकी ... गुस्से में तो न जाने क्या क्या कहा करती थी ...पर पता है रात को ... वो खूब सारा श्रृंगार करके सोती थी क्योंकि उसने कही सुना था कि स्वप्न में श्याम आता है मिलने उनको याद करने वालो के ... और उसका ये सोचना था की अगर उससे मिलने आए और उसको कही साथ घूमने ले जाए तो वो कही से कही तक देखने योग्य ही नहीं है .... कहीं उसके सखा को लगा कि उसकी सखी तो ऐसी है और उनको ही लाज आएगी कही साथ लेजाने में ... तो खास तैयार होकर वो सोती थी... वो कल्पना करती की जब उसके सवांरे आएंगे तो जरूर करेंगे श्रृंगार की तारीफ शायद उसको देखते ही रह जाए ...यही सब सोचते सोचते उनका नाम लेते लेते वो सो जाया करती ... एक दिन उसकी उसके श्याम से लड़ाई हो गयी शाम के समय किसी बात पर ... तो वो उस रात श्रृंगार नहीं की ...'तू तो वैसे भी न आवे मोको देखने खातिर काहे करुँ अब तेरे लिए श्रृंगार मैं ... इत्ती भी न हुँ बावरी तेरे खातिर ... जा जा मत आ ... न मरी जा री मैं भी ' आँखों के मोती तो उनको बुला रहे थे पर उनकी जिव्हा मना कर रही थी... और शायद इस मना करने के पीछे कुछ और भी था जिसकी वजह से उस रात उसके वो आगये !! वो जब मिलने आए स्वप्न मे तो उन्होंने देखा कि वो किन्ही गलियों में है शायद सखी वो बृंदाबन ही होगा ... तो सखी वो सबसे पहले श्याम के चरण देखी..., इतने दिव्य चरण देख वो समझ गयी थी कि वो उसके ही सवांरे है ...इतने दिनों से मिलने की आस थी न उस के मन मे ... सोचो क्या करी होगी वो इसके बाद ...!!! "
"उनसे मिली होगी न ..." मैंने उत्साहित होकर कहा
"अरे सखी .... वो भाग गई वहाँ से ... और वो सावँरा उसका बावँरा होकर पीछे भाग रहा था...और वो पीछे ही नहीं मुड़ रही बस चलती ही जा रही ... भागते भागते जब उसने पाया कि अब नहीं है श्याम पीछे तब उसने चैन की सांस ली ... थोड़ा ही आगे बड़ी थी गलियों को देखते हुए की उसने देखा कि एक छोटा सा बच्चा अपनी माँ और शायद मासी या बहन की गोद मे था ... पता नहीं क्यों उसको वो अपनी ओर खींच रहा था वो उन तीनों के पीछे पीछे चल दी बिना कुछ सोचे समझे और वो लोग मन्दिर में पहुँचे वहाँ बच्चा नीचे धरती पर बैठा था माँ के साथ पूजा कर रहा था ...वो सखी उसको गोदी उठा ली क्योंकि उससे रहा नहीं गया था ऐसा बार बार लग रहा था जैसे वो जानती हो उसको और वो उसको बुला रहा हो ... जैसे ही उसने गोदी उठाया तो पाया कि बच्चे के माथे से दिव्य रोशनी निकल रही है और सर पर मोर पंख भी चमक रहा है जो पहले था ही नहीं...और उस बच्चे में से आवाज आने लगी थी ... 'क्यों री सखी कहाँ भागी जा रही थी मोसे क्यों मैं तोको न आया क्या पसंद ...इतना बुरा लागे हूँ का मैं तोको ...जो बिना पीछे देख भागे जा रही थी ... और मूझको भगाए जा रही थी'
'रोज जब करुँ हुँ श्रृंगार तब कभी न आवे हो... आज मै जब ऐसे भूत बनी पड़ी हूँ तो काहे आयो हो मिलने मोसे ... मजाक बनाना है न तोको मेरा !!'
'अरे वो बाँवरी सी ... तू कैसा भी श्रृंगार करले मैं तो हर बार बस तोरे खातिर ही आवे हुँ ...आहे रे !!! तेरी जे प्यारे प्यारे बोलो का श्रृंगार बिल्कुल रस मलाई सा लागे मोको ... जे तन को तो सब ही सजावे है सखी गहनों से ... पर जे आत्मा को प्रेम से कम लोग ही सजावे है ... और तेरा प्रेम तो आज इतना सुंदर लागे है कि क्या ही बताऊँ'
'बोलो न ... क्या लागे है तोको' सखी शर्माती हुई पूछने लगी बच्चा उसकी ही गोद मे रहकर बोल रहा था
'तू न भूतों की रानी जैसी लागे मोको सखी ' इतना कहकर छोटे रूप के बालक श्याम उसके गालो को खींचने लगे और अपने प्यारे से मुंह से जिनसे अभी दांत भी नहीं निकले थे ठीक से उनसे सखी के गाल में प्यारी कर दी ... ये कहते हुए की उनको शर्म आवे है ऐसे सबके सामने मिलने में !! और उन सखी का स्वप्न टूट गया फिर जब वो सो कर उठी तो पाया उन्होंने की उनके हाथों में मोर पंख था ... और वो फिर उसको सीने से लगाए अश्रुओं के श्रृंगार के साथ मुस्कराने लगी थी ...!!"
"फिर फिर क्या हुआ ..." मैंने उत्साह के साथ उनके चुप होते ही पूछा
"मूझको क्या पता " वो रोड की तरफ देखते हुए बोली
"मतलब... आगे की कहानी तो बताओ ...!!" मैं आशा की दृष्टि से उनकी ओर देख रही थी
"आगे वो जाने और उसका साँवरा जाने ..."
"मतलब..."
"आप इतना मतलब मतलब काहे पूछती हो ... अब आप बताओं क्या आपअपनी घर की हर बात पड़ोसियों को बताती फिरती है ?? सिर्फ वही बातें ही बताती हो न जो जरूरी हो ... वैसे ही ... उनकी और उनके अपनो की भी बातें है !! अब घर के राज सबको थोड़ा बता देंगे वो उतना ही बताएंगे जितना वो चाहते है ...!!"
"अरे ... ठीक है .... समझ गयी मैं" ग्लानि की मुस्कान साथ मैं बोली
"सखी री ... आप अब क्यों उदास हो रही हो ... आपका ये श्रृंगार देखने न जाने किस भेष में वो आए हुंगे ... अब आप ऐसे रोवोगी तो वो मुस्कान नहीं देख पाएंगे ... जिसको देखने इतनी दूर से आ रहे है !!"
इतना सुनते ही मेरे चेहरे में अपने आप मुस्कान आ गयी !!
"दर्शन देने के लिए वो कोई अब रथ यात्रा तक थोड़ा है सीमित ... भूलो न सखी आपके वो कौन है ... अगर उनको मिलना है तो किसी न किसी रूप में मिल ही लिंगे पर बस वही है उनको पहचानना भले ही मुश्किल हो... पर उनको महसूस करना बहुत आसान है ...!! "
"मतलब...!!??"
"मतलब की ... आपको वो अहसास खुद ही बता देगा !! क्योंकि सखी हर बात कही नहीं जाती है ..."
मैं बस मुस्कुरा दी उनकी बात सुन क्योंकि जवाब नहीं था मेरे पास कुछ भी ...!!
इतने में वो उठ कर जाने लगी "अच्छा री सखी अब थोड़ा कम डांटना उनको... बेचारा सारा दिन अपने प्रेमियों की डांठ खाते खाते दुबला होता जा रहा है !! "
"अच्छा ... एक बात पूछनी थी क्या वो कृष्ण की सखी आप हो ..." मै भी खड़े उठते उठते बोली |
" कान्हा सखी कुछ बाते किसी को भी नहीं बताता तो मैं आपको अब क्या ही बताऊँ ... क्या फर्क पड़ता है ... वो कोई भी हो ... बस वो कृष्ण की सखी है ये जरूरी है जानना ... !! राधे राधे जय जय श्री राधे!! "
इतना कहकर वो जाने लगी ...मैंने भी राधे राधे बोल उनसे विदा लिया... मैं अभी उनको जाते हुए देख ही रही थी कि तभी मेरे सामने माँगने वाली दो औरते एक छोटे बच्चे के साथ आगयी ... वो मुझसे खाने को कुछ मांग रही थी तो मैंने वो खीर जो मैं प्रभु के लिए लाई थी वो देदी क्योंकि मेरा मन मुझसे बोल रहा था ...वो लोग मेरे थोड़े पास ही बैठ खीर खाने लगे ... वो बच्चा शायद 1 साल का होगा तो खीर खा सकता होगा... जिस प्रकार से मैं उसको खीर खाता हुआ देख रही थी मुझे बार बार वो कृष्ण की सखी की कहानी ही याद आती ... उन तीनो को खाता देख आज लग रहा था हा ... मेरे सखा का भी अब पेट भर गया होगा ... मेरा दिल यही बोल रहा था ... शायद यही ही अहसास हो ... कही वो पेड़ बन मुझपर पत्ते तो नहीं बरसा रहे ...कही हवा बन मेरे बालो को तो नहीं सहला रहे ... यही सोच सोच मुस्कुराते हुए पता ही नहीं चला मैं कब घर पहुँच गयी और कब मेरा गुस्सा उनके लिए प्यार में बदल गया ... अभी खुद को शीशे के सामने देख रही हूँ और ऐसा लग रहा है कि अब सही मायने में मेरा शृंगार पूर्ण हो गया है ||
जय जय श्री राधे ❤️✨🙏
● राधिका कृष्णसखी
Radhe Radhe
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