श्यामा

     ||   श्यामा   ||







आज भी मैनें और दिनों के भांति अधूरा ही श्रृंगार किया हुआ था , इस आस में शायद वो इसे पूरा करने के बहाने से ही मिलने तो आएंगे ही ! | हाँ !! दिन तो काफी हो चुके थे ... पर फिर भी मन मे आस थी ही उनके आने की , मैंने रोज की तरह ही उनके लिए भोजन बनाया और बैठ गयी हमारे छोटे से घर को सजाने के लिए , अभी सजावट चल ही रही थी कि तभी मेरी नजर उनके कंगन पर पड़ी जो एक कोने में अकेला पड़ा मुझे ताक रहा था ... मैं समझ चुकी थी फिर से ये उनकी ही करामात होगी , हल्की सी मुस्कान के साथ मैं उनकी ओर मुड़ी |
" अब क्या नई लीला करनी है तुम्हें !! "
मैंने बनावटी गुस्से सा मुँह बनाते हुए उनसे पूछा ... हाँ औरो के लिए होंगे वो मूर्ती पर मेरे लिए तो संसार ही थे , मन कई बार सवाल भी करता उनके अस्तिव पर लेकिन आत्मा अपने विश्वास से हर बार उसे हरा ही देती !! खैर मुझे औरो से क्या मतलब था ! बात तो यहाँ उनकी और मेरी हो रही थी ...
" अच्छा !! तो फिर तुम्हे नहीं देना है उत्तर , ठीक है कुछ मत कहो ... याद रखना पर तुम मैं तुमसे अब भी नाराज़ हुँ "
मुँह फिरते हुए मैं बोली |
"अरे ! ये कंगन तुम्हारा ... लो इसे अपने पास ही रखो ... आइंदा मुझे अपने पास बुलाने के लिए ये फालतू बहाने मत ढूढ़ना... समझे !!"
कंगन उनको पहनते हुए मैं बोली , मैं कंगन पहना ही रही थी कि तभी गलती से मेरे कपड़ो से उनके कपड़े अटक गये और खिंचाव के कारण उनके वस्त्र थोड़े से उधड़ गए |
" क्यों मुझे तंग कर रहे हो तुम !? मैंने बोला है तुमसे जब तक तुम खुद मुझसे आकर नहीं मिलोगे तब तक मैं तुमसे नाराज हुँ ... तो ये अपने नए नए तरीके अपने पास ही रखो | "
सच में उस वक्त मैं परेशान भी थी और प्रसन्न भी , उनसे यूँ बार-बार टकराना मुझे बेहद अंदर ही अंदर भा रहा था ... परतुं पूर्व का गुस्सा अब भी वैसा ही बना हुआ था |
मुँह बनाते हुए मैं सुई धागे का डिब्बा लेकर उनकी ओर आई और बड़ी सावधानी से गुस्से वाले भाव के साथ उनके वस्र को सिलने लगी ; अचानक से मेरी उंगीली में वो सुई चुभ गई और उस सुई के चुभते ही मेरे मुख से कृष्ण और उंगली में से रक्त की बूंद निकली |
रक्त को पोछते हुए मैंने अपनी उंगली को थोड़ी देर दबाया और फिर पुनः जुड़ गई उनके वस्त्र सिलने के काम में ; काम खत्म होने के बाद मैंने गुस्से से उनकी आँखों मे देखा ... तभी मुझे बाहर से किसी की बुलाने की आवाज़ आने लगी , मैनें दौड़कर देखा तो पाया मेरी पड़ोस वाली एक काकी आई हई थी |
उन्होंने मुझसे माँ को बुलाने को बोला ,  मैं अपनी उस उंगली को दबाते हुए अपनी माँ को बुलाने अंदर चली गयी ... मैं दूसरे कमरे में से उन दोनों की बातें चुपचाप सुन रही थी ; काकी की वृंदावन जाने की योजना बनी हुई थी और वो मेरी माँ को भी जोड़ना चाहती थी , न जाने कैसे पर माँ उस वक्त इतनी जल्दी मान गयी ... औऱ थोड़ी देर बाद मेरे पास ये खबर खुशी-खुशी बताने आई |
" मेरा मन नहीं हैं वृंदावन जाने का !!"
मैं मुँह बनाते हुए माँ से बोली |
" अरे! वैसे तो हर समय वहाँ जाने के सपने देखती है आज जब जाने को है तो मुँह बना रही है !"
माँ मुस्कुराते हुए दोबारा बोल पड़ी , " अब नहीं जाना अपने कृष्ण से मिलने ? "  मैं जानती थी माँ मुझे छेड़ रही थी |
मैं कुछ उत्तर न देते हुए अंदर चली गयी , मेरा खून अभी रुक चुका था उंगली में से पर अंदर मन बेचैन था... मैं खुश थी वृंदावन के लिए पर मेरा गुस्सा अब भी वैसा ही था  ; मेरा निर्यण इस बार पक्का था ...घर मे थोड़ा रहा था तनाव का माहौल मेरे इस फैसले से !!  पर बाद में सब मान गए और मैं घर पर अकेली रह गयी उनके संग |


" तुम्हे क्या लगा था ठग लोगे तुम हमें !! इस बार भी ... बोला था मैंने इस बार मैं सच नाराज़ हुँ पर तुम तो अपने रौब में रहते हो ना !! वैसे भी तुम्हे क्या ... मैं तुमसे मिलु या न मिलु ! मैं खुश हूं तुमसे दूर  ... और वृंदावन तब तक नहीं आऊंगी जब तक .... खैर छोड़ो कौनसा तुम्हे फर्क पड़ता है !"
मैं अपने अश्रुओं को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए रसोई की ओर चली गयी , मुझे अंदर ही अंदर दुख था ... पछतावा भी , पर मैं सच में उस वक्त बहुत परेशान थी क्या करूँ , किसकी सुनु समझ नहीं आ रहा था और उनके लिए क्रोध शांत होंने का नाम ही नही ले रहा था |


घर पर अकेले मैं अपने लिए भोजन की व्यवस्ता कर रही थी कि तभी मुझे वो ... हाँ वही दिखाई दिए दरवाजे से अंदर आते हुए ;
"मुझे पता है ये फिर से मेरा भरम है ...  तुम कौनसा सच मे हो जो आओगे "
मुँह फेरते हुए मैं अपने काम मे जुट गई ! ; मेरी आँखें भर चुकी थी ... मैं काँपते हाथों से खाना प्लेट में रख रही थी ,  यूँही काँपते-काँपते अंदर कमरे में बैठ गयी , निवाला जैसे ही मुँह में डालने ही वाली थी कि तभी मेरे पीछे से मधुर आवाज आई ! " क्यों इतनी नाराज़ हो गयी क्या जो आज अपने  श्याम को खाने के लिए पूछा भी नहीं ?!"
मैं वही जम चुकी थी !! मेरे खाने का निवाला हाथ में ही था और मैं जोर से चिल्लाते हुए बोली ..." ये सब क्यों कर रहे हो मेरे साथ !! मुझे पता है मैं जैसे ही पीछे देखूंगी तुम वहाँ नहीं होगे , आखिर कब तक मेरे साथ ये आँख मिचौली खेलते रहोगे ... तुम्हारी ये खामोशी अब नहीं सही जाती ... "
मैं बस ये कहकर रोती जा रही थी , मुझे पता था वो वहाँ थे पर मेरे पास पीछे मुड़ने की हिम्मत नहीं थी !! मुझे डर था कही वो चले न जाए !!
मैंने आँख बंद कर खाने का निवाला अपने हाथ में उठाया और पीछे मुड़कर  आगे की ओर बढ़ा दिया ..., मुझे उनका दिव्य स्पर्श महसूस हो रहा था !!, मेरी आंखे बन्द होने के बावजूद नम हो चुकी थी ; न उन्होंने कुछ बोला न मैंने ... मैं आज उनसे अपनी आत्मा से बात कर रही थी ... शब्दों की आवश्कता फिर भला कहाँ थीं ! मैं उनके मुख पर यूँही आँखे बंद कर निवाले डाल कर अपनी सारी नाराजगी दूर कर रही थी !! खा वो रहे थे पर तृप्त मैं हो रही थी |
इतने समय से मेरे नयन उनकी एक झलक को तरस रहे थे और आज जब वो सामने थे तो ये नयन उन्हें बिना देखे ही तृप्त हो चुके थे ... क्योंकि आज मैं उन्हें अपनी आत्मा के नेत्रों से देख रही थी ... मुझे नहीं पता फिर कब मैं सो गई उनकी गोद में ...  मुझे ऐसी नींद आई कि मानो जन्मो जन्म से मैं इसी। विश्राम की प्रतीक्षा में थी |

सुबह मेरी नींद मेरी पड़ोस की दोस्त की आवाज़ से खुली , आँखे मलते हुए मैंने  अपने आसपास देखा तो वहाँ कोई नहीं था , परन्तु खाने की प्लेट में से खाना तो खाया जा चुका था , प्लेट के साथ मेरा हृदय भी साफ हो चुका था | सर हल्का सा भारी था और आँखे भी ... कही वो सब मेरा सपना तो नहीं मैं अभी ये सब सोच ही रही थी कि तभी मेरी दोस्त ने दोबारा से आवाज़ लगाई , जल्दी जल्दी मुँह धोकर मैं उसके पास बाहर गई |

" सुन ! जल्दी तैयार हो जा  फिर मंदिर चलेंगे !!"
वो मुझे देखते हुए बोली |
" पर क्यों ? "  मैंने आश्चर्य के साथ पूछा |
"अरे बुद्धु ! भूल गयी क्या आज शरद पूर्णिमा है और तेरा ही तो प्लान था मंदिर जाने का ... और आज शाम को  वहाँ रंग से भी खेला जाएगा ... जल्दी चल यार !! तैयार हो अब | "
वो जोर देते हुए कहने लगी |
" अच्छा ठीक है मैं तैयार होकर आती हुँ !"
मैं चाह कर भी न जाने क्यों उसे मना नहीं कर पाई , मन मे अभी भी कल की बात को लेकर सवाल थे पर पता नहीं क्यों आज मुझे हल्का-हल्का सा लग रहा था ! ... मेरा शरीर तैयार हो रहा था और आत्मा गुम थी ...| नहाकर मैं मंदिर जाने की तैयारी में जुट गई  ;थाल मैं सजा चुकी थी अब मेरी तैयार होने की बारी थी बाकी दिन की तरह आज भी मैंने अधूरा श्रृंगार किया ... अपना एक झुमका अपने श्याम के सामने छोड़ दिया और बिंदी भी  नहीं लगाई ... मैं चल पड़ी उनके मन्दिर की ओर फिर से उसी आस में ...|


"अरे !! ये क्या तुम्हारा एक झुमका कहाँ गया ?" मेरी दोस्त ने मुझे घूरते हुए पूछा |
" वो ...वो... पता नहीं ... तू अभी चल तुझे देर नहीं हो रही अब ! वो मैं बाद में ढूंढ लुंगी | "
मैंने कैसे भी करके उसे मना लिया और हम चल पड़े मन्दिर की ओर ; वो मेरे वहाँ का प्रसिद्ध बाँकेबिहारी का मन्दिर था घर से करीब 1 घंटे की दूरी पर स्तिथ था इसीलिए घर को मैनें अच्छे से बंद करके चाभी पड़ोस में देदी और बेफिक्र होकर गुम हो गयी ...|

मेरी दोस्त बोली जा रही थी मैं उसकी बस हाँ में हाँ मिला रही थी , पता नहीं क्यों मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था | हम जब मन्दिर पहुँचे तो वहाँ हमें काफी भीड़ मिली , आखिर हो भी क्यों न ... दिन भी तो शरद पूर्णिमा का था ; रास के गीत बज रहे थे , गुलाल उड़ रहे थे , राधेश्याम के नाम के जय जयकारों से वातावरण गूँज रहा था ... और मेरी धड़करने और भी ज्यादा तेज होती जा रही थी |
मेरी दोस्त मुझे खिंच कर गुलाल के रंगों की ओर ले जाने लगी ... पर मुझ पर तो श्याम रंग चढ़ा हुआ था शायद इसी कारण वो मुझे उस वक्त रंग नहीं पाई और मैं उसे वही रंगों से खेलता छोड़ बाँकेबिहारी की तरफ निकल पड़ी |

जैसे-जैसे मेरे कदम बढ़ रहे थे वैसे-वैसे मेरे नेत्रों में से अश्रुओं की बूंदे टपकती जा रही थी ... मैं उनकी तरफ देखते हुए आगे की ओर बढ़ती जा रही थी !! मुझे अपने आसपास की कोई खोज खबर नही थी ; उनकी आँखों में मैं लगातर एकतक देखी जा रही थी ... ऐसा लग रहा था जैसे वो मुझे बुला रहे हो ... मैं चलते-चलते उनके मूर्ति के बहुत पास आ गयी ... पता नहीं क्यों मैं बस रोती ही जा रही थी ... मुझे अपनी कोई सुध बुध नहीं थी |

मैं उनके पैरों में गिर गयी , अचनक न जाने कहाँ से मुझे मधुर बाँसुरी की धुन सुनाई देने लगी और मेरे पैर अपने आप थिकरने लगे बाँसुरी की तान को मिलाते हुए ... मैं खुद से कुछ नहीं कर रही थी उस वक्त मेरे साथ जो भी हो रहा था वो अपने आप ही चल रहा था |
बादलों की ढूंढ में , इंद्रधनुष के रंगों में , सूर्य के तेज में , चन्द्र के सीतलता में डूबे हुए मुझे वो दिखाई दिए ... हाँ !! मुझे मेरे कृष्ण दिखाई दिए !! ... न आज गुस्सा था और न ही होश... बस था ... वो मेरा कृष्ण ... केवल कृष्ण !! |

वो मुस्कुराते हुए बाँसुरी बजा रहे थे और मैं उनको देखते हुए उनके चारो ओर घूमकर नृत्य करने लगी , थोड़ी देर पश्चात  उनके चरणों में गिर उनसे अपने सारे कुकृत्यु की क्षमा मांग उनकी शरण मे आने की प्राथना करने लगी |
वो कुछ न बोले , उन्होंने मुझे हल्के से उठाया और मेरे कान में झुमका पहनाने लगे ... मैं शर्मा दी !! ... अपने नयनो के काजल में से थोड़ा सा काजल निकाल कर उन्होने उससे मेरी माथे पर बिंदिया सजा दी !! |
शर्म के मारे मेरे मुख से शब्द ही नहीं निकल रहे थे ... मन तो था कि उन पलो को वही ही रोके दुँ , आज मेरा अधूरा श्रृंगार पूरा हो चुका था और मेरा अस्थिव भी ...अब  मन में न ही कोई प्रश्न शेष थे और न ही कोई उत्तर ... शेष अगर कोई था तो वो केवल कृष्ण !"

" उस दिन सिलाई करते वक्त तुमने हमे तुम्हारे रक्त से  रंग दिया था ... तो आज हमारी बारी है ... मैं तुम्हे भक्ति रंग में रंग देता हूँ ... तुम्हे श्याम रंग में रंग कर श्यामा बना देता हूँ !! "

अपने कोमल हाथों में गुलाल लेकर उन्होंने मेरे गाल रंग मुझे श्यामा बना दिया श्याम की ,मैं बस उनका वो स्पर्श आँखे बंद कर महसूस कर रही थी | उनकी आवाज मुझे मुस्कुराते हुए सुनाई दी ..." अरे !! अब तो गुस्सा छोड़ दो ... आजाओ वृंदावन मेरे साथ !!"
मैंने भी मुस्कुराते हुए आँखे खोली ... सामने मुझे बाँकेबिहारी जी की मूर्ति दिखाई दे रही थी |
मैं उन्हें देख शर्मा दी और बाहर की ओर चलने लगी , मेरी दोस्त मुझे देख हँसते हुए बोली -" आखिर लग ही गया तुम पर भी रंग ... अरे !! तुम्हारा दूसरा झुमका कहाँ से आया ?? और तुम कुछ आलग नहीं लग रही ...."
मैंने उसकी बात बीच मे काटते हुए कहा
"अरे तुम्हारा वहम है ये सब ... अच्छा सुनो मैं वृंदावन जा रही हूँ !"
"यूँ अचनक ... और वो भी अकेले !?!"
उसने चौकते हुए पूछा |
"घरवाले भी वही है और फिर यहाँ से सीधे बस भी तो जाती है ... और सुनो मैं अकेली नहीं हूं ...बिहारी जी मेरे साथ है !!"
और फिर मैं मुस्कुराते हुए उत्तर देकर चल पड़ी अपने प्रेम धाम वृंदावन की ओर अपने श्याम संग उनकी श्यामा बनकर |




  ~ राधिका कृष्णसखी







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Comments

  1. Oo mere bihari kabhi toh.....😭♥️
    Bht pyari Leela hai sakhi bht pyari radhe radhe♥️

    ReplyDelete

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Radhe Radhe 🙏🙏
May krishna bless you 💝
Hare Ram Hare Ram Hare Krishna Hare Krishna 🙏🙏


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