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Showing posts from February, 2024

प्रिय अजनबी

 प्रिय अजनबी , मुझे तुम्हारा नाम पता है ... पर मैं नहीं लिखना चाहती कही गलती से इसको तुम्हारे सिवा अगर कोई और पढ़ लेगा तो तुम्हारे बारे में जाने क्या क्या सोचे ... ऐसा नहीं है मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है ... मुझे तुमसे शिकायत तो है पर मैं ये नहीं चाहती कोई और तुमसे करे !! | रिश्ता हमारा है तो हक भी मुझे ही है केवल तुमसे प्रश्न करने का क्यों ?  तुमको पता है भले ही मैं अपने से तुम्हारे बारे में कितने भी प्रश्न करलूँ पर तुमको देखते ही मैं मौन हो जाऊँगी ... मुझे वो तुम्हारी आँखों मे देख बातें करने की आदत बहुत अच्छी लगी थी ... पता है इसीलिए मैं आज भी तुम्हारी छवि से आँखों ही आँखों मे बात करने का प्रयास करती हूँ... पर अब तुम पहले की तरह मुस्कुराते नहीं वो अपनी कोमल सी पलके झपकाते हुए मुझे देखते नहीं हो  ... जिससे मुझे तुम्हारा हाँ या न पता चल सके तुमको याद है जब तुम पहली बार मुझसे मिलने आए थे...मैं तो तुमको छूने में डर रही थी ... मुझे लगता कही कही मेरा ये कठोर तन तुमको न चुभ जाए... मुझे तो तुम्हारे ये केश ... फूलो से लगते ... सोचती तुमको देख कही मुझसे टूट गए छूते हुए तो ... इस...

ताशी - 4 (अंतिम भाग )

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 ताशी - 4 ( अंतिम भाग ) दिनांक - __|__|____ प्रिय डायरी , तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद अब तक के लिए साथ देने का ... तुमको लग रहा होगा कि मैं ऐसा क्यों बोल रही हूँ ? क्योंकि अब मैं एक नए जीवन की शुरुवात करने जा रही हुँ ... और वहाँ बस मैं और मेरा श्याम ही हुंगे और हमारे आगे के सारे पल के साक्षी भी हम दोनों ही रहेंगे ...ऐसा नहीं है कि मुझे अब तुम्हारी जरूरत नहीं ... पर आगे के आने वाले समय मे शायद अब शब्दो की आवश्कता ही नहीं पड़ेगी ... मुझे नहीं बताना इस दुनिया को की मैं कौन हूँ ... क्योंकि अगर ऐसा होगा तो मेरा अस्तित्व कृष्ण से दूर हो जाएगा ... मैं बस कृष्णमय होना चाहती हूँ अब ... केवल और कृष्ण ही ... कृष्ण की ... कृष्ण से ... !! | तुमको याद है ...आखिरी बार जब मैं परेशान थी कि आखिर उससे मिलने ऊपर जाऊ या नहीं , पता है फिर क्या हुआ ?  घर वाले जब सब बाहर से आकर सो गए थे तो करीब 2-3 बजे मैं दबे पाव मैं ऊपर की ओर जाने लगी ... मेरा दिल उस वक्त भी ढक ढक कर रहा था ... मुझे नीचे इतनी बेचैनी हो रही थी मानो कोई कीमती चीज मैं चोरों के पास छोड़ आई हूँ ... मैं सीढ़ियों में हल्के हल्के कदम बढ़ा रह...

ताशी - 3

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  ताशी - 3   जब से मुझे पता चला था कि काशी ही कृष्ण है मेरा रो रो कर बुरा हाल हो गया था , हर वक्त केवल उसके साथ बिताए पल मुझे याद आते ... हर चीज में वो याद आता , अगर कभी सफाई करती तो याद आता कि कैसे वो जान बूझ कर कदम बढ़ाता था ..., और खाना बनाते समय वो उसका गाना याद आता जो वो गाया करता था जब भी उसको भूख लगती ... घर पर क्या कहूँ कुछ समझ नही आता ... अब मुझे अफसोस हो रहा था क्यों सब भूलने का बोला मैंने ... कमसे कम उससे अच्छे से विदा तो ले ही लेती मैं | उसका वो पत्र जब भी अकेले मौका मिलता तो सीने से लगा लेती ... शायद उसका वो स्पर्श मिल जाए इस उम्मीद में !! मुझे यही लग रहा था कि वो मुझसे अब दूर चला गया ... मैं बस अब दिन रात उसको ही याद कर रही थी ..., वो यादे और उसकी हर एक चीज मेरे हृदय को चीर रही थी ... मेरा रोम रोम बस कृष्ण नाम ले रहा था ... इसी वजह से मुझे भुखार भी आगया मैं बस अब बिस्तर में पड़े पड़े कृष्ण नाम जपती रहती और उनको याद करती कभी खुद को कोसती तो कभी वो सारे पल याद कर मुस्कुराती | ये सब कुछ दिन तक चलता रहा मेरे घरवाले भी परेशान ही थे हालात देख ... उनको लग रहा था ये सब सफर...