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रमणा सखी - 3(पत्र पढ़ने की अब उनकी बारी!! )

मेरे प्राणों से भी प्रिय, आज तुमको मैं हक से प्रिय कह सकती हूँ ..., क्योंकि ये हक तुमने ही तो दिया है मूझको ... हक तुमको याद करने का... तुम्हारे बारे में सोचने का .... और ?!!!! पता है अभी ये पत्र मैं कहाँ बैठ कर लिख रही हूँ... उसी पेड़ के नीचे जहाँ हमारी पहली मुलाकात हुई ... जब तुम चंद्रमा बन मेरे अंधेरी दुनियां में राज करने आए थे ! , वो पहला पत्र अभी भी यही है और दूसरा तो हमेशा से ही मेरे पास था ... अब ये जो मैं लिख रही हूँ !! चलो मैं अब कहानी शुरू करती हूँ ... क्योंकि मैं नहीं चाहती अब और देरी हो जाए !! जब उस दिन याद होगा तुमको ... वो सब करने में बाद मुझे तुम्हारे सामने आने में बहुत डर लग रहा था , तब मैंने अपने मन मे सोच लिया था कि अब तो तुमसे दूर ही रहना है ... क्योंकि अब छुपके भी आखिर देखूं कैसे तुमको !!... पर पता नहीं क्यों बार बार किस्मत तुमसे टकरा रही थी... हमारी अगली मंजिल अचानक से बदल गयी करीब एक माह के लिए ... और तुम वही ही जा रहे थे ... एक महल में , मैं वहाँ काम सीख रही थी और तुम राजाओं वाला आराम करना !! दो दिन तक हम लोग कितनी बार टकराए थे ... याद है न... और मैं हर बार अज...

रमणा सखी (पार्ट -2) एक गलती ...क्या यही समाप्ति है ?

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  रमणा सखी पार्ट 1 प्रिय..... समझ नहीं आता अब ... क्या कहूँ तुमको ... अपना कहुँ ... तो दिल की धड़कन बढ़ने लगे जाती है ... साँसे अटक जाती है ... और पराया कहुँ तो प्राण निकल जाते है ... ये मैं पत्र नहीं अपनी मन की हलचल लिख रही हूँ ... समझ नहीं आता किससे कहुँ ... तुमसे बोलने का मन तो करता है ... पर ... पर नहीं बोल सकती ... क्योंकि तुम जब भी सामने आते हो कुछ बोलने को बचता ही नहीं है ... और जब भी दूर जाते हो तो वो गयाब शब्दों में मानो जान आगयी हो ...मन तो करता है बस तुम्हारा नाम लेकर सारा दिन नाचती रहूँ ... तुम्हारे लिए सजती रहूँ ...!! तुम्हारी उस कुछ पलों की यादों ने जब मुझे इतना पागल बना दिया था ... मैं बता नहीं सकती अब की यादों ने क्या हालत की है ... और अब तो ऊपर से तुमने मिलने का भी वादा कर दिया है ... दिन क्या ... एक एक पल मेरा कैसे कट रहा है मैं बता नही सकती !! तुमको ये पत्र इसीलिए लिख रही हूँ ताकि तुमसे मन की वो हर बात कह दू जो तुम्हारी नयनों को देख मैं भूल जाती हूँ ... अगली बार जब तुम जाओगे तब तुमको ये पत्र दूंगी ताकि तुम ... जाओ भी तो ... मेरे इस एहसास को साथ लेकर जाओ !! ... भल...

आँख मिचौली (birthday speciallll )

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  बहाना ही होती है हर चीज ...जो हमको जगत के स्वामी से दूर ले जाती है ...असल में ... वो बहाना ही रास्ते का एक भाग है उन तक पहुँचने का !! ... जिस माया से हम बच कर भाग रहे है उनकी शरण मे जाने के लिए ...वो उसी माया के पति है ... वही ही माया है !! ... तो उनसे दूर आखिर कैसे भाग पाओगे ? ... माया से डरो मत ... माया के साथ जो मायापति है न .... उन दोनों को साथ मे देखो !! भागना नहीं पड़ेगा फिर ... फिर बस ...महसूस करना पड़ेगा ...उसको !! जिसके बारे में तुम अभी सोच रहे हो !! ये सब ....मैं नहीं कह रही ये सब मुझसे उसने कहा जिससे मैं मिली थी वृंदावन मे , वो कौन है ... कैसे मिली ये सब शुरू करने से पहले मैं उसकी बोली हुई एक सुंदर बात बताना चाहूँगी ..." प्रेम में केवल प्रेम ही होता है !! जहाँ पर .... लेकिन ... शायद ... आ जाए वो भी एक तरह से प्रेम हो सकता है पर फिर भी प्रेम नहीं है !! " जब उसने मुझसे ये पहली बार कहा था तब तो मुझे इसका मतलब समझ नहीं आया ... पर अब मैं हल्का हल्का महसूस करने लगी हूँ, पहले मैं कृष्ण के बारे में सोचती थी कि श्याद वो मुझसे प्यार करते हूंगे पर अब मैं महसूस करती हूँ उस प...

" आखिर क्यों बनी मीरा दिवानी !!"

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" आखिर क्यों बनी मीरा दिवानी !!" || कविता || याद आते हैं हमे भगवान ; जब भी आए हम पर कोई भी पीड़ा ,  क्या सच में! सिर्फ मुसिबतों में ही पुकारती  होंगी उन्हें मीरा? ||  खुशियों के सागर में डूब , खो दिया हमने परमप्रभु का स्वरूप , उस मीरा के तो थे नारायण हर सुख-दुख के साथी , तभी तो बन पाई मीरा गिरधारी के दीये की बाती | और हम तो सिर्फ बुलाते हैं उन्हें जब दिखती है हमे कोई भी पीड़ा,  क्या सच में ! ऐसे ही बुलाती होगी उन्हें मीरा? || हम तो छोड़ देते हैं कुछ ही क्षण में सारी आस,  पहचानते ही नहीं हैं परमपरमेश्वर को जो रहते हैं सदैव हमारे पास | फस जाते हैं इस जग की माया के अंदर, तब लगने लगता है यह मोह हमें बहुत ही सुंदर  | ईश्वर को तो सिर्फ बना देते हैं हम अपने स्वार्थ के साथी , क्या सच में! मीरा भी कृष्ण महिमा हमारी तरह स्वार्थ के लिए थी गाती ? || अपने दो दिन के प्रेम के लिए छोड़ने को सब कुछ रहते हैं हम तत्पर , पर भूल जाते हैं उस प्रेमी को जिसका हाथ था रहा जीवन भर हमारे सर पर | हममें और मीरा में यही था बस अंतर, कि जान लिया था उसने सच्चे प्रेम का मंतर  |  क्...

कृष्ण का पत्र

  सखी ... तुम मुझसे पूछती हो न ... कैसा होता है प्रेम !! पता है जब पहली बारिश धरती पर गिरती है ... और जो अहसास उस मिट्टी के कण को मिलता है... वैसा ही लगता है प्रेम में... बंजर हॄदय में जब किसी के नाम की फसल उग जाए... तो वो बस उसके प्रेम के स्पर्श से फलती है..., वैसा ही मुझको लगता है !! जब भी तुम मुझे याद करती हो ... तुमको यही ही लगता होगा... मैं कहाँ ही हुँ तुम्हारे पास ... पर मैं ...सच में हुँ समय के परे ब्रह्माण्ड में समाया हुआ गिनती में अनन्त और विचारों में शून्य हूँ मैं !! तुमको लगता है न मेरा और तुम्हारा क्या रिश्ता है..., तुमसे ही मैं हूँ और मुझसे ही तुम हो !! तुम को यकीन नहीं होता है न... तो एक बार आँख बंद करके शांत भाव से खुद से प्रश्न करो ... तुम अगर नहीं होती ... तो तुम्हारी सोच मे तुम्हारे हृदय में तुम्हारी बातों में कैसे होता मैं ?!! हाँ ... मैं ही पूरा संसार हुँ... पर मैं वो भी हुँ जो तुम्हारे हॄदय में है ... मेरे लिए ये बहुत खास जगह है... मैं बता नहीं सकता कैसे ... जैसे नदी सागर से मुँह नहीं  मोर सकती है उसी प्रकार आत्मा औ...

अधूरे खत

 5-6-24  【10:55pm】8  कृष्ण ... तुमसे कुछ कहना था !! समझ नहीं आता कैसे दिल की बात करुँ ... कभी लगता है तुम सुनने को हो नहीं और कभी लगता है सुनते होगे तो क्या सोचते होंगे मेरे बारे में ... मन तो मेरा भागता है तुम्हारे पीछे पर ... तुम पर ठहर नहीं पता ... तुम होते है भी मैं तुमको अनदेखा कर  तुमको ढूंढती हूँ और तुम बस मुस्कराते हुए पीछे से मुझे निहारते हो !! 6- 6 -24. {11:24am} अगर कभी बारिश हुई ... तो मैं समझ लू क्या ये तुम ही हो जो मेरे पास आने के बहाने  है तुम्हारे ...  जानती हूँ तुम हिस्सा हो मेरी कल्पना का ... पर तुम ये भी जानते हो मैं भी तुम्हारा ही हिस्सा हूँ ... यानी मेरी हर कल्पना अब वो चाहे जैसी भी हो ... वो सब तुम्हारी ही है अब ...!! और मैं भी ... 8-6-24 11:31 तुमको नहीं पता तुम्हारी हर झलक मेरे लिए कितनी कीमती है ... काश तुमको मैं बता पाती !! मैंने दूर से देखा तुम नदी किनारे सोए थे ... मैं हल्की सी मुस्कान के साथ तम्हारे पास आने लगी ...और मेरी दिल की।धड़कन भी बढ़ने लगी ...  तुमको जगाने का मेरा मन तो बिल्कुल नहीं था क्योंकि तुम लग ही इतने प्यार...

कृष्ण की सखी

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               कृष्ण की सखी        मैं आज बड़ी ही मन्नतों बाद आई थी रथ यात्रा में ... हर बार जब भी आने का प्लान बनाती थी कुछ न कुछ हो जाता और इस बार मैंने सुना था कि रथयात्रा वृंदावन से होते हुए आ रही है...,मैं बता नहीं सकती मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था .... इस बार मैंने सोचा जब मिलूंगी तो उनको उपहार में भी कुछ दूंगी ही आखिर मेरे सखा जो है वो ... तो मैंने उनके लिए खीर तैयार की और मैं चल दी रथ यात्रा के उत्सव की ओर ... पता है इस बार मैंने सृंगार भी किया हुआ था काजल लगते हुए मुझे शर्म आ रही थी क्योंकि मैं कभी कभी ही लगाती हुँ ... शीशे के सामने मैं खड़ी खड़ी मुस्कुराई जा रही थी सोच रही थी वो मूझको देख आखिर क्या सोचेंगे मेरे बारे में ... बार बार देखने पर भी मुझे कुछ अधुरा सा लग रहा था समझ नहीं आ रहा था आखिर क्या ...!! यात्रा में भीड़ काफी थी और हर तरफ उनके देखने की होड़ थी ... मैं भी उस भीड़ का हिस्सा बन जुट गई दर्शन की ओर ... दर्शन तो मिले पर केवल कुछ ही समय के लिए ... और जो खीर मैं उनके लिए लाई थी भीड़ के कारण वो भी मेरे हाथों में रा...