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ताशी 2 - "एक अनोखी मुलाकात"

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ताशी 2 - "एक अनोखी मुलाकात" दिनांक - _ | _ |20_ _ सबसे पहले तो प्यारी डायरी तुमको राधे राधे और ढेर सारा प्यार ... तो आज मेरा जन्मदिन है और आज ही एक दिन से मैं तुम्हारे साथ एक नई शुरुआत करने जा रही हूँ ... मैं रोज तो लिखना भूल जाती हूँ अपने आलास की वजह से पर कोशिश करूँगी तुम्हारे साथ कुछ खास और अहम पल बांट सकू ... तुमको तो पता ही है वो सब होने के बाद कितना अकेला महसूस हो रहा है ... चारो तरफ डर का माहौल है केवल ... मुझे समझ नही आता किस से करू दिल की बाते में ... तो अब तुम मिल गयी हो न...सब अच्छा होगा क्यों ?  ● दिनांक - _ | _ |20_ _ सुनो ... मुझे यहाँ अब अच्छा नही लगता कुछ भी पहले जैसा नहीं है ... पर पता नहीं आजकल मेरा दिल ज्यादा धक धक कर रहा है...लगता है कोई मेरा नाम लेता है कोई बुलाता है पता नहीं कौन ...!! शायद वो तो नहीं| ● दिनांक - _ | _ |20_ _ आजकल तो बाहर निकल पर भी पाबंदी हो गयी है ... बस डर का माहौल है ... तुमको पता है मुझे अब डर लगना बन्द होगया है जब से मेरे साथ वो हादसा हुआ है ... मैं अभी जल्दी में हूँ जल्दी तुमको सारी बात विस्तार से बताऊंगी ... जाती हुँ | ● दिनां...

ताशी

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                                 " ताशी " जनवरी के महीने की शुरुवात के साथ-साथ हमारी सर्दियो की छुट्टियाँ भी शुरू हो चुकी थी हर बार की तरह नानी के घर जाने की तैयारी हमने शुरू कर दी | पैकिंग लगभग पूरी हो गयी थी कि तभी मुझे अचनक से वो चीज याद आई और मैं दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ भागी | मेज पर से थैला उठाकर भागते हुए कार की तरफ जाने लगी ; मम्मी मुझे देरी करते देख गुस्सा कर रही थी | "सॉरी माँ ! देरी के लिए ... पर जिस वजह से जा रही हूं वही ही भूल गयी थी !!" कार में बैठते हुए मैं बोली | " अरे ! ये तू और तेरा कान्हा हर बार हमें देर ही करवाता है | " माँ ने हँसते हुए उत्तर दिया , मुझे पता था माँ कान्हा के नाम पर कभी गुस्सा हो ही नहीं सकती थी क्योंकि ये कृष्णप्रेम मुझे उनकी ही तो देन है ! मेरे नाना जी भी कृष्णभक्त है ... और कृष्ण भी उनसे इतना प्रेम करते है कि उन्होंने उन्हें पुजारी ही रख लिया अपने मन्दिर में ; कृष्णा की ही कृपा थी कि माँ की शादी पापा से हुई ... अरे ! ये कृपा नहीं तो और क्या मेरे पिता जी के पूर्व...

एक मुलाकात श्याम संग ...

  एक मुलाकात श्याम संग ... शायद अब मुझे जाना ही चाहिए उनसे मिलने ... ये बात मेरे दिमाक में पिछले कई समय से चल रही थी , मेरे दोस्त लोग हमेशा बात करते कि वृंदावन ऐसा है वहाँ ये है ...अब मुझसे रहा नही जा रहा था तो मैंने सोच लिया इस बार 2 दिन के लिए ही सही वृंदावन तो जाना ही है मुझको | मैं शहर में अपने घरवालों के साथ रहती हूँ ... उनसे मैंने कॉलेज ट्रिप का बहाना बना दिया और अकेले निकल गयी मैं वृंदावन की ओर , मेरा प्लान अचानक बना था इस कारण ट्रेन का जनरल टिकिट मिल पाया ... भीड़ को देख कर मेरा सर चकराया जा रहा था , बड़ी मुश्किल से मैं डिब्बे में चढ़ी जैसे तैसे एक कोने में सीट मिली !! कृष्ण नाम लेते लेते मैं सफर में आगे बढ़ने लगी | कभी राधारानी को धन्यवाद देती तो कभी कृष्ण को याद करती है , ट्रेन रुक रुक कर बढ़ रही थी इस कारण 4 घण्टा देरी से चल रही थी ... ये समय मेरा कट ही नही पा रहा था ... मन बेचैन हो रहा था ... न फोन चलाने का मन था और न ही उस समय किसी से बात करने का मन था | शाम में करीब 5 बजे मैं वृंदावन स्टेशन पर पहुँची धक्के के साथ नीचे उतरी ...आगे बढ़ते ही सब प्रेम मंदिर के रिक्से वाले भैय...