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" आखिर क्यों बनी मीरा दिवानी !!"

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" आखिर क्यों बनी मीरा दिवानी !!" || कविता || याद आते हैं हमे भगवान ; जब भी आए हम पर कोई भी पीड़ा ,  क्या सच में! सिर्फ मुसिबतों में ही पुकारती  होंगी उन्हें मीरा? ||  खुशियों के सागर में डूब , खो दिया हमने परमप्रभु का स्वरूप , उस मीरा के तो थे नारायण हर सुख-दुख के साथी , तभी तो बन पाई मीरा गिरधारी के दीये की बाती | और हम तो सिर्फ बुलाते हैं उन्हें जब दिखती है हमे कोई भी पीड़ा,  क्या सच में ! ऐसे ही बुलाती होगी उन्हें मीरा? || हम तो छोड़ देते हैं कुछ ही क्षण में सारी आस,  पहचानते ही नहीं हैं परमपरमेश्वर को जो रहते हैं सदैव हमारे पास | फस जाते हैं इस जग की माया के अंदर, तब लगने लगता है यह मोह हमें बहुत ही सुंदर  | ईश्वर को तो सिर्फ बना देते हैं हम अपने स्वार्थ के साथी , क्या सच में! मीरा भी कृष्ण महिमा हमारी तरह स्वार्थ के लिए थी गाती ? || अपने दो दिन के प्रेम के लिए छोड़ने को सब कुछ रहते हैं हम तत्पर , पर भूल जाते हैं उस प्रेमी को जिसका हाथ था रहा जीवन भर हमारे सर पर | हममें और मीरा में यही था बस अंतर, कि जान लिया था उसने सच्चे प्रेम का मंतर  |  क्...

कृष्ण का पत्र

  सखी ... तुम मुझसे पूछती हो न ... कैसा होता है प्रेम !! पता है जब पहली बारिश धरती पर गिरती है ... और जो अहसास उस मिट्टी के कण को मिलता है... वैसा ही लगता है प्रेम में... बंजर हॄदय में जब किसी के नाम की फसल उग जाए... तो वो बस उसके प्रेम के स्पर्श से फलती है..., वैसा ही मुझको लगता है !! जब भी तुम मुझे याद करती हो ... तुमको यही ही लगता होगा... मैं कहाँ ही हुँ तुम्हारे पास ... पर मैं ...सच में हुँ समय के परे ब्रह्माण्ड में समाया हुआ गिनती में अनन्त और विचारों में शून्य हूँ मैं !! तुमको लगता है न मेरा और तुम्हारा क्या रिश्ता है..., तुमसे ही मैं हूँ और मुझसे ही तुम हो !! तुम को यकीन नहीं होता है न... तो एक बार आँख बंद करके शांत भाव से खुद से प्रश्न करो ... तुम अगर नहीं होती ... तो तुम्हारी सोच मे तुम्हारे हृदय में तुम्हारी बातों में कैसे होता मैं ?!! हाँ ... मैं ही पूरा संसार हुँ... पर मैं वो भी हुँ जो तुम्हारे हॄदय में है ... मेरे लिए ये बहुत खास जगह है... मैं बता नहीं सकता कैसे ... जैसे नदी सागर से मुँह नहीं  मोर सकती है उसी प्रकार आत्मा औ...