ताशी

" ताशी " जनवरी के महीने की शुरुवात के साथ-साथ हमारी सर्दियो की छुट्टियाँ भी शुरू हो चुकी थी हर बार की तरह नानी के घर जाने की तैयारी हमने शुरू कर दी | पैकिंग लगभग पूरी हो गयी थी कि तभी मुझे अचनक से वो चीज याद आई और मैं दौड़ते हुए अपने कमरे की तरफ भागी | मेज पर से थैला उठाकर भागते हुए कार की तरफ जाने लगी ; मम्मी मुझे देरी करते देख गुस्सा कर रही थी | "सॉरी माँ ! देरी के लिए ... पर जिस वजह से जा रही हूं वही ही भूल गयी थी !!" कार में बैठते हुए मैं बोली | " अरे ! ये तू और तेरा कान्हा हर बार हमें देर ही करवाता है | " माँ ने हँसते हुए उत्तर दिया , मुझे पता था माँ कान्हा के नाम पर कभी गुस्सा हो ही नहीं सकती थी क्योंकि ये कृष्णप्रेम मुझे उनकी ही तो देन है ! मेरे नाना जी भी कृष्णभक्त है ... और कृष्ण भी उनसे इतना प्रेम करते है कि उन्होंने उन्हें पुजारी ही रख लिया अपने मन्दिर में ; कृष्णा की ही कृपा थी कि माँ की शादी पापा से हुई ... अरे ! ये कृपा नहीं तो और क्या मेरे पिता जी के पूर्व...